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जुमलेबाजी से वोटरों को फर्क नहीं पड़ता

सुपौल : किसी शायर ने खूब कहा है कि ‘पल-पल से बनता है एहसास, एहसास से बनता है विश्वास, विश्वास से बनते हैं रिश्ते, रिश्ते से बनता है कोई खास’. चुनावी समर में एहसास ,विश्वास और रिश्ते के मायने भी बदल गये हैं. पाला बदलने का होड़, नये-नये राजनीतिक समीकरण, वादे जैसे कई शब्द राजनीतिक […]

सुपौल : किसी शायर ने खूब कहा है कि ‘पल-पल से बनता है एहसास, एहसास से बनता है विश्वास, विश्वास से बनते हैं रिश्ते, रिश्ते से बनता है कोई खास’. चुनावी समर में एहसास ,विश्वास और रिश्ते के मायने भी बदल गये हैं. पाला बदलने का होड़, नये-नये राजनीतिक समीकरण, वादे जैसे कई शब्द राजनीतिक बिसात पर शतरंज के मोहरों की तरह इस्तेमाल करने की परंपरा तो रही ही है, लेकिन राजनीति में आज जो परंपरा सबसे ज्यादा प्रचलित है,

वह है शब्दों का बाण, जिसे चलाने से कोई नेता गुरेज नहीं करता. कारण, शब्दों के इस हवा महल पर राजनीति केंद्रित है. हो भी क्यों न क्योंकि भोली-भाली जनता को फंसाने का सबसे बढ़िया तरीका भी शब्द बाण ही है. इससे जनता के साथ एहसास, विश्वास और रिश्ते कायम कर वोट को अपने पक्ष में करने की जुगत में नेता लगे हैं.

भाषण के दौरान नेता पहले एहसास कराते है कि मुझसे बड़ा शुभचिंतक आपका कोई नहीं, फिर विश्वास में लेकर वोट पक्ष में करने तक,आपसे रिश्ते देखते ही बनता है. जो चंद दिनों का मेहमान भर होता है. चुनाव खत्म होते ही सभी रिश्ते नाते कम से कम पांच साल के लिए खत्म तो हो ही जाते हैं. नेताओं के शब्द बाण, एहसास, विश्वास और रिश्ते चुनावी समर में कितना प्रभावी होता है. इससे चुनाव में नेता किस हद तक सफलता प्राप्त करते हैं. आम जन पर नेताओं के शब्द बाण का असर होता है या अपने जनप्रतिनिधि चुनने के लिए वे खुद के विवेक का इस्तेमाल करते है. कैसा हो जनप्रतिनिधि, कैसे करें चुनाव इन्ही सारे सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए प्रभात खबर ने जनता से रू -ब-रू हो कर ली उनकी रायशुमारी.गणेश कुमार कहते हैं ये सही है कि नेताओं के शब्द बाण का असर होता है, लेकिन आज के दौर में शब्दों के खेल का उतना प्रभाव नहीं पड़ता है,

जितना पहले पड़ता था. कारण आधुनिक युग में राजनीतिक की समझ बच्चे-बच्चे को है. जनता को बेवकूफ बनाना आसान नहीं है. जनप्रतिनिधि ऐसा होना चाहिए जो केवल वादा ही नहीं उसको निभाने की क्षमता रखता हो.ललन कुमार कहते है कि राजनीतिक मतलब ही भाषणबाजी है, जिससे जनता का कोई सरोकार नहीं है.

ये बात दिगर है कि चुनाव में जुमलेबाजी बहुत ज्यादा हो रही है. जनप्रतिनिधि के चुनाव में जनता भी अब सजग हो गयी है. जनप्रतिनिधि ऐसा होना चाहिए जो रोटी, कपड़ा और मकान ही नहीं आधुनिक युग के जरूरत के हिसाब से विकास की गाड़ी को आगे बढ़ाने की सोच रखता हो.ललित यादव कहते हैं कि फिल्मों में जिस प्रकार हंसाने के लिए कामेडी सीन को डाला जाता है, उसी प्रकार नेता भी जनता को लुभाने के लिए शब्दों के बाण चलाते है. ये दर्शकों के मनोरंजन का साधन मात्र है.

इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि प्रत्याशी के नाम की घोषणा के साथ ही जनता मन बना लेती है कि कौन नेता कैसा है. उसी आधार पर जनप्रतिनिधि का चुनाव होता है.राजो शर्मा कहते है कि राजनीति में सब चलता है, लेकिन यदि किसी की चलती है तो वह है यहां की जनता. इसके आगे सभी बौने साबित होते है. बावजूद जनता अब तक अपने आप को ठगा ही महसूस करती रही है. क्योंकि नेताओं की फितरत रही है वादे करके भूल जाना. पर, अब वो जमाना गया.

अब जनता नेताओं की फितरत को अच्छी तरह से जान गयी है. मो जासीम उर्फ मुखिया कहते हैं कि नेताओं की जुमलेबाजी जनता के लिए अब मनोरंजन का मात्र माध्यम रह गयी है. आम सभा में उपस्थित भीड़ का मतलब यह नहीं होता है कि सभी उनके पक्ष में है. अब लोग सभा में नेता को परखने जाते हैं. जिसमें ज्यादातर संख्या हेलिकॉक्टर देखने वालों की होती है. जनप्रतिनिधि के चुनाव में जुमलेबाजी का ज्यादा मायने नहीं रहता है.

जनप्रतिनिधि के चुनाव के लिए जनता बहुत सजग है.कृष्णा कुमार कहते है कि दूध का जला छांछ भी फूंक -फूंक कर पीता है. नेताओं द्वारा जनता इतनी ठगी का शिकार हो चुका है कि अब जनता पांच वर्ष में एक बारा आये इस मौके को बेकार जाया नहीं करती. नेताओं को लगता है कि वोट अभी भी ठेकेदारी प्रथा पर मिलती है. लेकिन ऐसा नहीं है. अब लोकतंत्र के महापर्व में जनता वोट के महत्व को जानती है.

इसलिए जनप्रतिनिधि के रुप में जनता सेवक को चुनना पसंद करती है मालिक को नहीं.मो शाहजीत कहना है आधुनिक युग में संचार क्रांति ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया है. एक दूसरे से संवाद स्थापित करने में अब लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं होती है. इसलिए सही और गलत का आकलन अब आसानी से किया जा सकता है. अब नेताओं के खोखले वादे की पोल खोलने के लिए सोशल साइट है. जिस पर ज्यादातर आंकड़ें मौजूद है.

नेताओं द्वारा गलत आकड़े प्रस्तुत करने पर आम अवाम को पता चल जाता है कि नेता फेंक रहा है. इसलिए जनप्रतिनिधि के चुनने में ये सभी आंकड़े काफी काम आते हैं.विजय कुमार बताते है अब जनप्रतिनिधियों का चुनाव और भी आसान हो गया है. क्योंकि जनता अब जाति-पांत,धर्म और मजहब की बात नहीं करता. क्योकि जनता को चाहिए रोटी , कपड़ा , मकान के साथ आधुनिक युग में जीने के संशाधन , बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था.

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