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कुछ ख्वाब हुए पूरे, तो कुछ रह गये अधूरे

सुपौल: देखते ही देखते एक और वर्ष बीत गया और लोग नये वर्ष के लिए योजनाएं बनाने में भी जुट गये. नये वर्ष में पूरी होने वाली उम्मीदें भी बंधने लगी हैं. हर वर्ष ऐसा हीं होता है. इन सब के बीच गौर करना जरूरी है कि बीते वर्ष बंधी इस प्रकार की उम्मीदें इस […]

सुपौल: देखते ही देखते एक और वर्ष बीत गया और लोग नये वर्ष के लिए योजनाएं बनाने में भी जुट गये. नये वर्ष में पूरी होने वाली उम्मीदें भी बंधने लगी हैं. हर वर्ष ऐसा हीं होता है. इन सब के बीच गौर करना जरूरी है कि बीते वर्ष बंधी इस प्रकार की उम्मीदें इस वर्ष किस हद तक पूरी हो सकी हैं या फिर अधूरी रह गयी.

आकलन जरूरी है, अन्यथा साल तो ऐसे हीं बीतते रहते हैं. सीमित रहा उपलब्धियों का आंकड़ा जिला जजशीप की स्थापना वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. जिला बनने के करीब 23 वर्ष बाद यह सपना पूरा हुआ. नगर परिषद सुपौल ने शहर के प्रमुख सड़कों व चौक-चौराहों पर कचरा पेटी नियमित साफ-सफाई एवं डोर टू डोर सफाई की व्यवस्था कर मिशाल पेश किया है.

आम लोगों के सहयोग से इसे स्थायी बनाया जा सकता है. कृषि आधारित इस जिले में सुपौल डेयरी की स्थापना पशुपालकों के लिए हितकारी साबित होगा. गणपतगंज में करोड़ों की लागत से निर्मित विशाल विष्णुपद वरदराज मंदिर वर्ष की सबसे बड़ी सांस्कृतिक उपलब्धि मानी जा सकती है. दक्षिण भारत की तर्ज पर बना यह भव्य मंदिर श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों के भी आकर्षण का केंद्र बना है. अधूरे रह गये सपने रेल आमान परिवर्तन कार्य पूर्ण नहीं होने से जिलावासियों का बड़ी लाइन की रेलगाड़ी पर सवारी का सपना इस साल भी अधूरा रहा गया. ज्ञात हो कि वर्ष 2003 में योजना का शुभारंभ किया गया था. विभागीय उदासीनता की वजह से यह महत्वाकांक्षी योजना आज भी अधूरी है.

वर्तमान वर्ष में लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली की गद्दी और मिजाज बदलने से लोगों की उम्मीदें बढ़ी थी, लेकिन नये रेल बजट में इस रेलखंड को अपेक्षित राशि नहीं मिलने से जिलेवासी निराश हैं. कोसी की विभीषिका आज भी क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या है. बाढ़ के निदान की अपेक्षित पहल नहीं हो पायी है. सियासतदानों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि वर्ष 2008 में कुसहा त्रसदी में विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास कार्य छह वर्ष बीत जाने के बाद भी अधूरा है.

नहीं लगे उद्योग धंधे

सुपौल का नाम सूबे के सर्वाधिक पिछड़े जिले में शुमार है. कृषि परक रोजगार की अपार संभावना भी है. बावजूद सरकार उदासीन है. रोजगार के जुगाड़ में अन्य प्रदेशों की ओर पलायन श्रमिकों की मजबूरी बनी हुई है. लेकिन कल-कारखाने के नाम पर जिले की उपलब्धि अब तक शून्य है.

बुनियादी सुविधा व संसाधन का अभाव

जिला बनने के 23 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यहां स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. अस्पताल में ब्लड बैंक, सीटी स्कैन व ट्रॉमा सेंटर नहीं रहने से गंभीर मरीजों को रेफर कर कर देना चिकित्सकों की आदत बन चुकी है. बेहतर शिक्षा के केंद्र नहीं रहने से उच्च व व्यावसायिक शिक्षा के लिए महानगर व अन्य प्रदेशों का रुख करना छात्रों की विवशता बनी हुई है. शहरी क्षेत्र में बिजली की बेहतर सुविधा विद्यमान है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति की समस्या आज भी बरकरार है. आयकर, वाणिज्य कर जैसे कई विभागों के कार्यालय की स्थापना अब तक नहीं हुई है. डीएम व एसपी आवास का निर्माण भी लंबित है.

अपराध व दुर्घटना के मामलों में वृद्धि

वर्तमान वर्ष के दौरान जिले में आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हुई है. शांत माने जाने वाले इस जिले में हत्या के आंकड़ों में बढ़ोतरी से लोगों में दहशत का माहौल है. बीते दो माह में हीं करीब दर्जन भर हत्या के साथ हीं बैंक डकैती जैसे मामले विधि-व्यवस्था की विफलता को उजागर करता है. बीते एक वर्ष में सड़क दुर्घटना के मामलों में भी भारी इजाफा हुआ है. एनएच व एसएच सड़कों पर बेतहाशा हवा से बातें करते वाहनों पर प्रशासन का अंकुश नहीं दिख रहा है. लिहाजा एक वर्ष में करीब 200 लोग इन सड़कों पर काल के गाल में समा गये.

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