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हजारों व्यवसायी कर रहे टैक्स की चोरी

सुपौल : गुड्स एवं सर्विस टैक्स (जीएसटी) एकीकृत सेवाकर जुलाई से पूरे देश में लागू हो गयी. लेकिन अब तक इस दिशा में ना तो व्यवसायी वर्ग पूर्णत: परिचित हो सके हैं और ना ही उपभोक्ता. लिहाजा इसका व्यापक असर आमलोगों पर दिखने लगा है. स्थिति यह है कि जागरूकता के अभाव में अब तक […]

सुपौल : गुड्स एवं सर्विस टैक्स (जीएसटी) एकीकृत सेवाकर जुलाई से पूरे देश में लागू हो गयी. लेकिन अब तक इस दिशा में ना तो व्यवसायी वर्ग पूर्णत: परिचित हो सके हैं और ना ही उपभोक्ता. लिहाजा इसका व्यापक असर आमलोगों पर दिखने लगा है. स्थिति यह है कि जागरूकता के अभाव में अब तक इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में इसका लाभ नहीं मिल पा रहा, सरकार की दूरगामी योजना का हाल यह गए कि इलाके के लोगो को जीएसटी क्या है इसकी पूरी जानकारी नहीं है

इस कारण इस महत्वपूर्ण योजना के लाभ से लोग वंचित होकर व्यवसायियों के शोषण के शिकार हो रहे है. सरकार की इस मंशा के पीछे लोगो को टैक्स के दायरे में लाने के साथ इसका लाभ आमलोगों को मिले, यही उद्देश्य रहा है. हालांकि शुरुआती दौर में जीएसटी को लेकर कई तरह के विरोधाभाष बाजार में देखे गये. लेकिन लोग इसके बारे में जानकारी लेकर चैन महसूस कर रहे हैं. बावजूद इसके आज भी हालात ऐसे हैं कि व्यापारी से लेकर आमलोग अनभिज्ञ हैं.

यही कारण है कि आये दिन उपभोक्ता इसका शिकार हो रहे हैं. उपभोक्ताओं का शिकायत रहता है कि दुकानदारों द्वारा जीएसटी के नाम पर उसका दोहन किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर उपभोक्ता यह भी कहते हैं कि उसे बाजार में आज भी कच्चे बिल पर ही सामान मिलते हैं. जाहिर है जब व्यापारी कच्चे बिल का इस्तेमाल करेंगे तो कहीं न कहीं कर की चोरी का मामला सामने आ जाता हैं. वहीं दूसरी ओर उपभोक्ता भी पक्के बिल पर सामान लेने के दौरान उसे उसे अतिरिक्त वहन खर्च वहन करना पड़ता है. लिहाजा उपभोक्ता भी इस पर कड़े तेवर अपना नहीं पाते हैं.

जीएसटी को लेकर ग्राहकों में जागरूकता की जरूरी है. जब तक ग्राहक जागरूक होकर आवाज नहीं उठायेंगे. तब तक व्यापारी का उसके साथ कच्चे बिल का उपयोग जारी रहेगा. हालांकि इस बाबत विभाग द्वारा भी पहल की जा रही है. जल्द ही पक्के बिल पर सामान देने के काम को अमल में लाया जायेगा.
राजीव कुमार झा, सहायक वाणिज्य कर आयुक्त, सुपौल
राजस्व को लग रहा चूना
जिले भर में इस साल जीएसटी में करीब 19 करोड़ 26
लाख टैक्स जमा किये गये हैं. जबकि जानकार बताते हैं कि टैक्स की यह रकम नाकाफी है. जिस हिसाब से व्यवसाय और व्यापार का जाल फैला हुआ है, उस स्थिति में विभाग को 151 कारोबारी ही ऐसे टैक्स दे रहे हैं जो डेढ़ करोड़ से ऊपर सालाना कारोबार कर रहे हैं. जबकि सूत्रों का कहना है कि इससे कई गुणा व्यापारी इस टर्न ओवर को पार कर व्यापार कर रहे हैं, जहां तक विभाग अब तक नहीं पहुंच पायी है. 20 लाख से ऊपर के कारोबार करने वाले व्यापारियों की संख्या जिले भर में हजारों की संख्या में है. जबकि जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ पांच सौ रजिस्ट्रेशन ही हुआ है.
असमंजस की स्थिति में हैं लोग
शुरुआती दौर में जीएसटी लागू होने के बाद व्यापक तौर पर विरोध का भी सरकार को सामना करना पड़ा. लेकिन धीरे-धीरे बात लोगों को स्वीकार करनी पड़ी. लेकिन चूंकि सरकार के साथ-साथ आम लोग का हित भी इसमें संनिहित है. लिहाजा अब लोग भी इसको लेकर संवेदनशील हुए है और इससे जुड़ने की कवायद शुरू कर दिया है. भले ही ये वर्तमान दौर में बाजार तक ही सीमित हो. धीरे-धीरे ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़े कारोबारी अब इससे इत्तेफाक रखने लगे हैं.
हालांकि इसकी समुचित जानकारी नहीं होने के कारण लोग थोड़े परेशान जरूर है. सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्रों में देखी जा रही है. जहां लोग जीएसटी को लेकर कई विरोधाभाष से रूबरू होना पड़ता है. एक आकलन के अनुसार सिले सिलाई वस्त्र जिनकी लागत 500 होती है उन्हें बाजार में व्यवसायी 900 रुपये में खुले आम बेचते है वो भी कच्चे बिल पर मांगे जाने पर ग्राहकों को बिल नहीं दिया जा रहा. अमूमन ऐसे रेडीमेड दुकानों की संख्या सैंकड़ों में है. जहां टैक्स चोरी के खेल के कारण लोगो की अच्छी खासी जेब कट रही है. जीएसटी द्वारा कर निर्धारण को लेकर टैक्स के चार स्लैब बनाई गई है. इनमें हालिया संशोधन के बाद कई वस्तुओं में टैक्स की कमी की गई है. लेकिन उपयुक्त जानकारी नहीं होने से उपभोक्ता अभी भी असमंजस की स्थिति से जूझ रहे हैं. आमतौर पर व्यवसायियों को कच्चे बिल की बजाय पक्की कम्प्यूटर कृत रसीद देनी चाहिए. इसके लिए खुद ग्राहक भी सजग नहीं है.
अंजान हैं उपभोक्ता
दरअसल, व्यापारियों को इस नये टैक्स सिस्टम से जुड़ी छोटी-बड़ी जानकारी का घोर अभाव है. जीएसटी को लेकर समुचित जानकारी नहीं होने के कारण एक तरफ जहां व्यापारी मायूस हैं. वहीं उपभोक्ताओं को भी इसका समय-समय पर खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. साल भर का डाटा रखना दुकानदारों के लिये टेढ़ी खीर साबित हो रही है. चूंकि 20 लाख से ऊपर का टर्नओवर जीएसटी के दायरे में आता है. आमतौर पर अब व्यवसायी जीएसटी में सभी बही खातों का कंप्यूटरीकृत करने की सोच रहे हैं. चूंकि वर्तमान में तंत्र विकसित नहीं हुआ है. लिहाजा वैसे व्यापारी भले ही कुछ दिनों के लिये विभाग के आंखों में धूल झोंक कर इस गौरखधंधा को अंजाम दे रहे हैं.
विभागीय तंत्र नहीं हुआ पूरी तरह विकसित
जीएसटी जुलाई से लागू हो गयी है. लेकिन जिले में इसको लेकर विभागीय संरचना उतनी विकसित नहीं हो सकी है. जीएसटी के जद में कौन व्यापारी आयेंगे, कहां कर की चोरी हो रही है इस बात को लेकर अधिकारी भी अनभिज्ञ है. जिन व्यापारियों का रजिस्ट्रेशन हुआ है, उसके भरोसे जीएसटी चल रही है. अधिकारियों का स्पष्ट कहना है कि चूंकि संरचना पूर्णत: विकसित नहीं हुई है, इसे धीरे-धीरे लागू किया जा रहा है और जो व्यापारी वर्ग रजिस्ट्रेशन कर रहे है उनको लेकर विभाग आगे बढ़ रही है. रही बात कर की चोरी करने वाले व्यापारियों की, तो जैसे ही संरचना विकसित होगी, वे लोग भी इसके जद में आते जायेंगे जो सालाना 20 लाख के टर्नओवर के पूरा करते हैं. इसके लिये छानबीन कमेटी प्रदेश व केंद्रीय स्तर पर बनी हुई है.
जीएसटी को लेकर आये दिन शिकायत मिलती रहती हैं कि उपभोक्ता हलकान हो रहे हैं. दुकानदार उपभोक्ताओं से कहते हैं कि जीएसटी लागू हो गयी है. लिहाजा अमुख समान की कीमत बढ़ गयी है. लेकिन बढ़े हुए कीमत का उसे बिल नहीं दिया जाता है. इस तरह उपभोक्ता जीएसटी का दोहरा मार झेलने को मजबूर हैं. जबकि व्यापारी वर्ग इसके अतिरिक्त फायदे उठा रहे हैं. वैसे भी विभागीय तंत्र उस स्थिति में नहीं है कि वो खुद जाकर इस बात की तफ्तीश कर सके कि कहां ये गोरखधंधा चल रहा है. विभागीय अधिकारी ये कहते हैं कि जीएसटी को लेकर आम जागरूकता बेहद ही जरूरी है.
19 करोड़ 26 लाख का टैक्स हुआ जमा
विभागीय सूत्रों की मानें तो 20 लाख प्रति वर्ष भी टर्न ओवर करने वाले व्यापारी भी इसके जद में आते हैं. जिले भर में 25 सौ रजिस्ट्रेशन सेल टैक्स के दौरान हुई है. जबकि जीएसटी लागू होने के बाद 500 और नये रजिस्ट्रेशन किया गया. ऐसे में जिले भर में करीब 03 हजार व्यापारी जीएसटी से वर्तमान में जुड़ चुके हैं. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2017-18 में विभाग करीब 19 करोड़ 26 लाख का टैक्स प्राप्त हुआ है. जानकार बताते हैं कि आज भी कई व्यापारी ऐसे हैं जो समुचित टर्न ओवर के बावजूद जीएसटी के जद में आने से बचने के लिये आय-व्यय का ब्योरा कम दिखाते हैं. ऐसे में वे लोग कच्चे बिल का इस्तेमाल करते हैं. ताकि जीएसटी के दायरे से वह बाहर हैं. ऐसे लोगों पर भी विभाग की पैनी नजर है. जो जल्द ही जीएसटी के दायरे में आयेंगे. वैसे जिले भर में 151 ऐसे कारोबारी हैं जो सालाना डेढ़ करोड़ से ऊपर का टर्न ओवर करते हैं. विभागीय अधिकारी इस बात का रोना रो रहे हैं कि उसके पास अभी तंत्र की कमी के साथ-साथ विभागीय स्तर से संरचना विकसित नहीं हुई है. लिहाजा इसमें समय लगेगी और वो दिन दूर नहीं जब 20 लाख से ऊपर का प्रतिवर्ष कारोबार करने वाले कारोबारी जो फिलहाल जीएसटी का रजिस्ट्रेशन नहीं करा पाये हैं. वो इसके जद में आयेंगे.

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