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विभाग के निर्देश पर ट्रेनिंग ले आयुष चिकित्सक लिखते हैं ऐलोपैथिक दवा

वर्ष 2010 में हुई थी आयुष चिकित्सकों की बहाली जहां भी आयुष चिकित्सक हैं, वहां एलोपैथिक चिकित्सक की पदस्थापना नहीं की गयी है सुपौल : सरकार व विभाग की लाख कवायद के बावजूद जिले भर पीएचसी, एपीएचसी सहित अन्य केंद्रों की चिकित्सा व्यवस्था हासिये पर है. चिकित्सकों की कमी का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र […]

वर्ष 2010 में हुई थी आयुष चिकित्सकों की बहाली

जहां भी आयुष चिकित्सक हैं, वहां एलोपैथिक चिकित्सक की पदस्थापना नहीं की गयी है
सुपौल : सरकार व विभाग की लाख कवायद के बावजूद जिले भर पीएचसी, एपीएचसी सहित अन्य केंद्रों की चिकित्सा व्यवस्था हासिये पर है. चिकित्सकों की कमी का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है. चिकित्सक के मामले में सदर अस्पताल की स्थिति थोड़ी ठीक-ठाक बनी हुई है. लेकिन पीएचसी और एपीएचसी का हाल बेहाल है. जिले के अधिकतर अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आयुष चिकित्सक के भरोसे ही संचालित है.
यह अलग बात है कि यहां आयुर्वेदिक दवा नहीं मिलती है, लेकिन आयुष चिकित्सक आयुर्वेदिक व एलोपैथिक दवा जरूर लिखते रहे हैं. ऐसे में मरीजों का किस तरह का इलाज होता होगा यह आसानी से समझा जा सकता है.
जबकि अमूमन सभी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एलोपैथिक चिकित्सक के पद खाली ही पड़ा है. हालांकि प्रत्येक अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 80 से 115 मरीज प्रतिदिन आते हैं. लेकिन चिकित्सक के अभाव में इन मरीजों की चिकित्सा व्यवस्था भगवान भरोसे ही हैं. सरकार द्वारा वर्ष 2013 में ही आयुर्वेदिक, युनानी व होमियोपैथिक दवा जिले में उपलब्ध करायी थी. जिसमें कई प्रकार की दवा अब समाप्त भी हो चुका हैं. लेकिन चिकित्सा के मद में करोड़ों की बजट रहने के बावजूद विभाग द्वारा पुन: दवा उपलब्ध नहीं करवाया गया है.
बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को लेकर किया था पदस्थापित
मालूम हो कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने के लिए वर्ष 2010 में आयुष चिकित्सकों की बहाली की थी. आयुष चिकित्सकों की तैनाती के बाबत सरकार की मंशा रही थी कि एलोपैथिक दवा के साथ- साथ मरीजों का उपचार आयुर्वेदिक व होमियोपैथिक दवा से भी कराया जायेगा. ताकि गंभीर से गंभीर बीमारी भी जड़ से समाप्त हो जाये. लेकिन सरकार की यह योजना भी निष्क्रिय होता दिख रहा है. चूंकि जहां भी आयुष चिकित्सकों की पदस्थापन की गयी है. वहां पर आयुर्वेदिक दवा ही उपलब्ध नहीं है. ऐसे में मरीजों को एलोपैथिक दवा का ही सहारा लेना पड़ता है. जिले में 24 आयुष चिकित्सकों की पदस्थापन की गयी.
जो जिले के विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत हैं. सरकार ने जिस प्रकार आयुर्वेदिक दवा से इलाज कराने कि दिशा में पहल शुरू की थी. उस पहल पर ग्रहण लगता दिख रहा है. जिसका मुख्य वजह है. दवा की कम उपलब्धता. सरकार द्वारा दवा उपलब्ध नहीं किये जाने के कारण आयुष चिकित्सक ही एलोपैथिक दवा लिखते हैं. चूंकि जहां भी आयुष चिकित्सक की पदस्थापन है, वहां पर एलोपैथिक चिकित्सक की पदस्थापना नहीं की गयी है.
जिसके कारण अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र को खुद इलाज की जरूरत है. बदहाली का हाल यह है कि इन अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और उप स्वास्थ्य केंद्र पर डॉक्टर से लेकर नर्स तक का अभाव है.
कई उप स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जहां कभी-कभी ही ताला खुलता है. हालांकि विभाग द्वारा ट्रेनिंग दिलवा कर आयुष चिकित्सकों को 15 प्रकार के एलोपैथिक दवा लिखने का निर्देश भी दिया है. विभागीय सूत्रों का कहना है कि आयुष चिकित्सक गंभीर रूप से सभी बीमार रोगियों की प्रारंभिक देखभाल व चिकित्सा के बाद उन्हें उच्च चिकित्सा सुविधाओं वाले स्वास्थ्य केंद्र में रेफर कर सकते हैं. सूत्रों का कहना है कि आयुष चिकित्सकों द्वारा पोस्टमार्टम एवं आईवी इंजेक्शन के कार्य नहीं किये जा सकते हैं.
24 आयुष चिकित्सक हैं कार्यरत
सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधा में सुधार के लिए और एलोपैथिक दवा से मुक्ति के लिए जिले के कई स्वास्थ्य केंद्रों में आयुष चिकित्सकों को पदस्थापित किया गया. जहां सदर प्रखंड के सुखपुर स्वास्थ्य केंद्र में डॉ सुधीर गुप्ता, लौकहा में डॉ विजय कुमार व डॉ एके वर्णवाल कार्यरत हैं. वहीं किशनपुर में डॉ रामदेव शर्मा व खखैय में डॉ एम भारती, सिमराही में डॉ इरफान अहमद, गणपतगंज राघोपुर में डॉ रश्मि कुमारी, करजाईन में डॉ एस मंडल, दिनाबंधी बसंतपुर में डॉ इमरान, भीमनगर में डॉ केपी सिंह,
डगमारा में डॉ सुरेश कुमार, कुनौली में डॉ एनके हिमकर, मरौना में डॉ नजीरउद्दीन, गोगरिया में डॉ रविशंकर, बेलाठुठराही में डॉ नूर आलम, बसखोरा में डॉ ज्वाला नाथ तेज, राजेश्वरी में डॉ डी यादव, ग्वालपाड़ा में डॉ मुकुंद कुमार, बलवा बाजार में डॉ ए हयत, बाजीतपुर में डॉ जीन्नत परवीन, हटवरिया में डॉ अजय कुमार सिंह,
थुमहा में डॉ सुरेंद्र राम, चांदपीपर में डॉ पी मिश्रा व भपटियाही में कार्यरत डॉ तजमूल हुसैन ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र में आयुर्वेदिक हो या होमियोपैथिक सभी प्रकार के दवा उपलब्ध नहीं रहते हैं. वहीं मजबूरी में एलोपैथिक दवा लिखना पड़ता है. इसके लिए ट्रेनिंग दिया जाता है. कहा कि विभाग के निर्देशानुसार ही चलना पड़ता है. जो दवा उपलब्ध रहता है, उसी के अनुसार कार्य करना पड़ता है. कहा कि अगर आयुर्वेदिक व होमियोपैथिक दवा समुचित मात्रा में दे दी जाय तो एलोपैथिक दवा की जरूर नहीं पड़ेगी.

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