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शहर में शौचालय हुए अनुपयोगी परेशानी. एक दर्जन सुलभ शौचालय हैं जीर्ण-शीर्ण, नहीं होता कोई रख-रखाव मजबूरी में पैसा देकर शौचालय का उपयोग करते है लोग किसी भी शौचालय की नगर पर्षद द्वारा नहीं होती बंदोबस्ती सीवान : शहर में करीब एक दर्जन से अधिक सुलभ शौचालय हैं. लेकिन नगर पर्षद द्वारा इनका रख-रखाव नहीं […]

शहर में शौचालय हुए अनुपयोगी

परेशानी. एक दर्जन सुलभ शौचालय हैं जीर्ण-शीर्ण, नहीं होता कोई रख-रखाव
मजबूरी में पैसा देकर शौचालय का उपयोग करते है लोग
किसी भी शौचालय की नगर पर्षद द्वारा नहीं होती बंदोबस्ती
सीवान : शहर में करीब एक दर्जन से अधिक सुलभ शौचालय हैं. लेकिन नगर पर्षद द्वारा इनका रख-रखाव नहीं किये जाने से ये उपयोग करने लायक नहीं हैं. मजबूरी में लोग इसका उपयोग करते हैं. ऐसी बात नहीं है कि लोग सुलभ शौचालयों का प्रयोग मुफ्त में करते हैं.
लोगों को सुलभ शौचालय के प्रयोग करने पर पांच रुपये देने पड़ते हैं. शहर में ढंग के सुलभ शौचालयों के नहीं होने से शहर प्रतिदिन आने वाले करीब 40 से 50 हजार लोगों को परेशानी होती है.
सबसे ज्यादा तो परेशानी महिलाओं को होती है. जब से इन शौचालयों का निर्माण कराया गया है, तब से इसका रखरखाव नहीं कराया गया है. सुलभ शौचालयों की देख-भाल करने वाले भी इसकी मरम्मत पर ध्यान नहीं देते हैं.
शहर में आनेवाले लोग भटकने को विवश
किसी भी सुलभ शौचालय की नहीं होती बंदोबस्ती
शहर में करीब एक दर्जन से अधिक सुलभ शौचालय है. लेकिन इसमें से किसी भी शौचालय की बंदोबस्ती नगर पर्षद नहीं करता है. नगर पर्षद का कहना है कि आधे से अधिक सुलभ शौचालयों को सुलभ इंटरनेशनल द्वारा बनवाया गया है. उनकी देखभाल व बंदोबस्ती वही करता है. लेकिन फिलहाल तो देखने से ऐसा लग रहा है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस. जिस क्षेत्र में जो दबंग हैं, उन्होंने ही सुलभ शौचालयों को चलाने के लिए लोगों को दिया है. शहर में कितने सुलभ शौचालय हैं तथा कितने ध्वस्त हो गये, नगर पर्षद के पास इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है. एक तरफ सरकार स्वच्छता जैसे कार्यक्रम को चलाने में जुटी है, इसके लिए एपीएल व बीपीएल परिवारों को आर्थिक अनुदान राशि देकर सरकार शौचालयों का निर्माण करा रही है, दूसरी तरफ सुलभ शौचालयों व सामुदायिक शौचालयों पर विभाग की नजर नहीं होना कार्यक्रम की असफलता की ओर ले जाता है.
क्या कहते हैं लोग
शहर के प्रमुख स्थान जैसे गोपालगंज मोड़, अस्पताल रोड, स्टेशन रोड तथा सब्जी मंडी में सुलभ शौचालयों की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. सुलभ शौचालय नहीं होने से परेशानी होती है.
गांधी सिंह
शहर में जितने भी सुलभ शौचालय हैं, सभी उपयोग करने लायक नहीं हैं. ज्यादातर मजदूर व रिक्शा वाले ही इसका प्रयोग करते हैं. हम लोग मजबूरी में इन शौचालयों का उपयोग करते हैं.
राकेश सिंह
परिवार सहित शहर आने में काफी परेशानी होती है. शहर में कहीं भी कायदे का न तो सुलभ शौचालय है और न यूरिनल. विभाग द्वारा जो यूरिनल लगाये गये हैं, वे रखरखाव के अभाव में काम लायक नहीं हैं.
संजीत कुमार
शहर आने पर सबसे बड़ी परेशानी है कि पेशाब या शौच लगने पर क्या करें. वर्षों पहले नगर पर्षद ने जो शौचालय बनवाये हैं, वह उपयोग करने लायक नहीं हैं. आदमी पेशाब तो कहीं करने की व्यवस्था कर लेता है .लेकिन शौचालय के लिए भटकना पड़ता है. मनन सिंह
क्या कहते हैं नगर पर्षद के सभापति
शहर के किसी भी सुलभ शौचालय की बंदोबस्ती नहीं होती है. सुलभ इंटरनेशनल वाले ही चलवाते हैं. प द्वारा शहर के करीब आधा दर्जन स्थानों को सुलभ शौचालय बनवाने के लिए चिह्नित किया गया है. सुलभ शौचालय बनवाने के बाद प्राइवेट लोगों को चलाने के लिए दिया जायेगा. बबलू चौहान

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