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प्रसूताओं को नहीं मिलता जेबीएसवाइ योजना का लाभ

सीवान:ग्रामीण क्षेत्रों का पीएचसी हो या शहरी क्षेत्र का सदर अस्पताल, जितने भी प्रसव के मामले आते हैं, उनमें पांच प्रतिशत प्रसव जटिल होते है. इसकी व्यवस्था विभाग ने नहीं किया है. जच्च-बच्च मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत जननी बाल सुरक्षा योजना को […]

सीवान:ग्रामीण क्षेत्रों का पीएचसी हो या शहरी क्षेत्र का सदर अस्पताल, जितने भी प्रसव के मामले आते हैं, उनमें पांच प्रतिशत प्रसव जटिल होते है. इसकी व्यवस्था विभाग ने नहीं किया है.

जच्च-बच्च मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना के तहत जननी बाल सुरक्षा योजना को शुरू की. संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव करानेवाली महिलाओं को आर्थिक मदद देने का भी प्रावधान किया है.

ग्रामीण क्षेत्रों से पीएचसी व रेफरल अस्पतालों द्वारा जटिल प्रसव को सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. सदर अस्पताल पहुंचने पर पता चलता है कि यहां सिजेरियान की व्यवस्था नहीं है. ऐसी बात नहीं है कि यहां पर महिला डॉक्टर नहीं हैं. सदर अस्पताल में चार महिला डॉक्टर तथा दो ऑपरेशन थियेटर हैं.

एक समय था जब सदर अस्पताल में महीने में 60 से 70 सिजेरियन होते थे. सदर अस्पताल में किसी महीने में 700 से अधिक महिलाओं का प्रसव होता था. पर आज की स्थिति यह है कि सिजेरियन पूरे जिले में किसी सरकारी अस्पताल में नहीं होता है. जबकि महीने में चार से पांच सौ महिलाओं को प्रसव सदर अस्पताल में हो पाता है.

प्रसव के बाद जच्च-बच्चा का इलाज है भगवान भरोसे : जननी बाल सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रसव के बाद जच्च व बच्चे को किसी प्रकार की परेशानी होती है, तो उसके इलाज की व्यवस्था करनी है.सदर अस्पताल में जच्च व बच्चे का इलाज भगवान भरोसे है.प्रसव के बाद परेशानी होने पर ग्रामीण क्षेत्रों से जच्च व बच्चे को सदर अस्पताल में रेफर तो कर दिया जाता है, लेकिन सदर अस्पताल में इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है.
महिला वार्ड में कोई भी महिला डॉक्टर आपात स्थिति में इलाज के लिए उपलब्ध नहीं रहती हैं. दूसरी तरफ बच्चे के इलाज के लिए करोड़ों की लागत से एसएनसीयू बना है, लेकिन वह हाथी के दांत के सामान है.एसएनसीयू के लिए चार डॉक्टरों,दस ए ग्रेड नर्स तथा दो महिला वार्ड अटेंडेट का पद सृजित है.महिला वार्ड अटेंडेंट को छोड़कर सभी पदस्थापित हैं. लेकिन जरूरतमंद एक बच्चे का भी इलाज नहीं हो पाता है. परेशानी होने पर लोग बच्चे को प्राइवेट में ले जाकर इलाज कराते हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
विभाग द्वारा दवा की आपूर्ति नहीं किये जाने से दवाओं की कमी हो गयी है. स्थानीय स्तर पर दवा की खरीद कर व्यवस्था करने का प्रयास किया जा रहा है.एक तारीख से नये रोस्टर के अनुसार महिला वार्ड में आपात सेवा के लिए डॉक्टरों की ड्यूटी लगायी गयी है. सदर अस्पताल में तोड़-फोड़ की घटना के बाद सिजेरियन बंद है. ओटी का मरम्मत कर शीघ्र चालू किया जायेगा.
डॉ एमके आलम, उपाधीक्षक,सदर अस्पताल

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