।। विवेक कुमार सिंह ।।
सीवान :।। विवेक कुमार सिंह ।।
सीवान : अगर हम देश की आजादी की बात कर रहे है तो जिले के एक स्वतंत्रता सेनानी की याद तरोताजा हो जाती है, जिन्होंने अंगरेजों भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. वह सेनानी कोई और नहीं महाराजगंज के स्व. उमाशंकर प्रसाद हैं, जिन्हें अंगरेजों ने गोली मार देने का आदेश दिया था, जिसके बाद वह करीब एक साल तक भूमिगत भी रहे.
स्व. प्रसाद ने असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार व शराब बंदी व नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय योगदान दिया था. बता दें कि स्वतंत्रता सेनानी उमाशंकर प्रसाद का जन्म महाराजगंज में तीन दिसंबर, 1903 को हुआ था. उनका निधन 1985 में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा महाराजगंज से आरंभ हुई. इसके बाद वह जिला स्कूल छपरा में अध्यनरत रहे. वह शुरू से ही मेधावी छात्र रहे.
इधर जब महात्मा गांधी ने अंगरेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. यह देख वे स्वतंत्रता संग्राम में पढ़ाई त्याग कर कूद पड़े. 1927 में जब महात्मा गांधी महाराजगंज आये, तो उस समय निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद ने एक हजार रुपये की थैली प्रदान की थी. 1942 में अंगरेजो भारत छोड़ो आंदोलन पूर्ण रूप से सक्रिय रहने के चलते अंगरेजी सरकार ने देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया था.
इसके चलते वह एक वर्ष तक भूमिगत रहते हुए आंदोलनकारियों को मानसिक एवं आर्थिक सहयोग देते रहे. इधर अंगरेजों ने आंदोलन में सक्रिय रहने के चलते उनकी दुकान लूट ली. वहीं स्वत्रंतता मिलने के बाद उमाशंकर प्रसाद ने राष्ट्रहित में मुआवजा लेने से इनकार कर दिया.वह सेनानी कोई और नहीं महाराजगंज के स्व. उमाशंकर प्रसाद हैं, जिन्हें अंगरेजों ने गोली मार देने का आदेश दिया था, जिसके बाद वह करीब एक साल तक भूमिगत भी रहे.
स्व. प्रसाद ने असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार व शराब बंदी व नमक सत्याग्रह में भी सक्रिय योगदान दिया था. बता दें कि स्वतंत्रता सेनानी उमाशंकर प्रसाद का जन्म महाराजगंज में तीन दिसंबर, 1903 को हुआ था. उनका निधन 1985 में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा महाराजगंज से आरंभ हुई. इसके बाद वह जिला स्कूल छपरा में अध्यनरत रहे. वह शुरू से ही मेधावी छात्र रहे.
इधर जब महात्मा गांधी ने अंगरेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया. यह देख वे स्वतंत्रता संग्राम में पढ़ाई त्याग कर कूद पड़े. 1927 में जब महात्मा गांधी महाराजगंज आये, तो उस समय निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद ने एक हजार रुपये की थैली प्रदान की थी. 1942 में अंगरेजो भारत छोड़ो आंदोलन पूर्ण रूप से सक्रिय रहने के चलते अंगरेजी सरकार ने देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया था.
इसके चलते वह एक वर्ष तक भूमिगत रहते हुए आंदोलनकारियों को मानसिक एवं आर्थिक सहयोग देते रहे. इधर अंगरेजों ने आंदोलन में सक्रिय रहने के चलते उनकी दुकान लूट ली. वहीं स्वत्रंतता मिलने के बाद उमाशंकर प्रसाद ने राष्ट्रहित में मुआवजा लेने से इनकार कर दिया.