महाराजगंज : प्रखंड के बजरहिया राम जानकी मठ पर वृंदावन के आये भागवत कथा वाचक ने कथा के अंतिम व सातवें दिन कृष्ण भगवान के गोपियों के साथ रास रचाने के प्रसंग पर प्रकाश डाला. कहा कि भगवान कृष्ण का गोपियों संग रास रचाने की कथा दुनिया भर में प्रसिद्ध है. कृष्ण का हर स्वरूप, उनका हर रूप, गोपियों को इतना प्रिय था कि वे कृष्ण से दूर रह ही नहीं सकती थीं.
वृंदावन की हर गली आज भी कृष्ण के रास की कहानी बयां करती है, लेकिन सर्वप्रथम रास का आयोजन कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ, रास का वास्तविक अर्थ क्या है, इससे जुड़े तथ्यों से बहुत ही कम लोग परिचित हैं. महाराज जी ने कहा दरअसल कृष्ण द्वारा रचाया जाने वाला महारास सबसे पहले शरद पूर्णिमा की रात्रि को संपन्न हुआ, जिसका संबंध कामदेव द्वारा श्रीकृष्ण को दी गयी चुनौती से संबंधित है. प्रेम और काम के देवता, कामदेव ने जब अपने बाण से भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया,
तो उन्हें अपनी ताकत पर बहुत घमंड होने लगा. दरअसल सती की मृत्यु के पश्चात जब भगवान शिव संसार की मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर ध्यान में लीन हो गये थे ,तब देवताओं के कहने पर कामदेव के बाण ने ही उन्हें पार्वती की ओर आकर्षित किया था. महाराज जी के द्वारा सात दिवसीय कथा का आनंद उठा कर श्रोताओं ने मंत्रमुग्ध हो गये. कथा के आयोजकों ने बड़ी-बड़ी से फूल की मालाओं से बाबा को लाद डाला.
महाराज जी ने सर्वे भवंतु सुखिनः का आशीर्वाद दिया.