सीतामढ़ी/मेजरगंज: वैज्ञानिक युग में भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग अंधविश्वास से बुरी तरह ग्रसित हैं. मेजरगंज थाना क्षेत्र के बहेड़ा गांव में एक तांत्रिक के कहने पर ग्रामीणों ने अकाल मृत्यु से बचने के लिए आठ माह पूर्व एक साधु के दफनाए शरीर को जमीन से निकाल दिया. इसके बाद सिर को धड़ से अलग कर चिता पर रख जला दिया. ग्रामीणों की यह कार्रवाई इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है.
बीडीओ सुमन सिंह ने कहा कि इस तरह की सूचना उन्हें मिली है, वह वरीय अधिकारियों से से परामर्श ले रहे हैं. थानाध्यक्ष सैफ अहमद खान ने कहा कि पूरे गांव की सहमति से ऐसा किया गया है. अगर कोई शिकायत दर्ज करवाता है, तो कार्रवाई करेंगे.
बताया जाता है कि साधु का शव जब चिता में पूरी तरह जल कर राख हो गया, तब ग्रामीणों ने राहत की सांस ली. इसके बाद ग्रामीणों को यह विश्वास हो गया कि अब गांव में कोई अप्रिय घटना नहीं होगी. पूर्व मुखिया बिंदेश्वर राय, ग्रामीण जयराम राय, हरेंद्र ठाकुर, लालू राय, हरिहर साह, अनूठा ठाकुर व रौशन कुमार ने बताया कि साधु योगेंद्र दास के मरने के बाद पिछले आठ माह में गांव के 22 लोगों की अकाल मौत हो चुकी है.
तांत्रिक ने बताया था निदान
उसी अंतराल में बाहर से आया किसी तांत्रिक ने बताया कि इस गांव में एक साधु की मौत हुई है, जिसे जमीन खोद कर दफना दिया गया है, इसके कारण हीं लोग अकाल मौत मर रहे हैं. तांत्रिक ने दहशतजदा ग्रामीणों को इसका निदान बताते हुए कहा था कि मृत साधु के शरीर को अगर जमीन खोद कर निकालने के बाद शव सिर और धड़ से अलग करते हुए चिता पर जला दिया जाये तो सारी समस्या खत्म हो जायेगी.
इसके बाद ग्रामीणों के कहने पर उपेंद्र मल्लिक नामक व्यक्ति अपने सहयोगी के साथ मिल कर साधु के मृत शरीर को जमीन खोद कर बाहर निकाला, फिर दो टुकड़ों में करने के बाद चिता पर रख जला दिया.
15 अप्रैल को हुई थी साधु की मौत
बताते चले कि 15 अप्रैल 2016 को आये तूफान में घर में दब कर गांव के हीं साधु योगेंद्र दास की मौत हो गयी थी. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम भी कराया था और प्राकृतिक मौत के कारण परिजन को सरकार की ओर से चार लाख की मुआवजा राशि भी मिली थी. चूकिं साधु संत के मरने के बाद दफनाने की परंपरा है, सो योगेंद्र दास के शरीर को भी दफना दिया गया था. मृत साधु की विधवा रामकुमारी देवी ने बताया कि ग्रामीणों की इस कार्रवाई से उसे कोई दु:ख नहीं है.