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पार्टी का झंडा ढोकर विधायक बने थे रामनरेश

सीतामढ़ी : किसी ने ठीक ही कहा है कि जब इनसान में किसी चीज को पाने की ललक होती है, तब वह किसी भी हद को पार करने को तैयार हो जाता है. इस तथ्य का जीवंत उदाहरण है सोनबरसा के भाजपा विधायक राम नरेश प्रसाद यादव. जिले के परिहार प्रखंड के कुम्मा मुसहरनिया गांव […]

सीतामढ़ी : किसी ने ठीक ही कहा है कि जब इनसान में किसी चीज को पाने की ललक होती है, तब वह किसी भी हद को पार करने को तैयार हो जाता है. इस तथ्य का जीवंत उदाहरण है सोनबरसा के भाजपा विधायक राम नरेश प्रसाद यादव.
जिले के परिहार प्रखंड के कुम्मा मुसहरनिया गांव निवासी संत स्वभाव के रामाश्रय प्रसाद यादव का पुत्र व दो भाई में बडा राम नरेश शुरुआती दिनों से ही सरल स्वभाव के मिलनसार एवं सामान्य परिवार के व्यक्ति रहे है. जन समस्याओं के निदान को लेकर अक्सर संघर्ष को तैयार रहने वाले इस शख्स को उस वक्त मन की मुरादे पुरी हो गयी, जब नवल किशोर राय सरीखा नेता से मिलन हुआ.
साथ ही इनके संघर्ष का गति भी जोर पकड़ने लगा था. कही भी कभी पार्टी का झंडा ढोने से लेकर बैनर व पोस्टर तक साटने का काम भी करने से इन्होंने परहेज नहीं किया. पत्नी गायत्री यादव के सरल स्वभाव व सहज सहयोग के बल इनके राजनीति को साल 2010 में तब मुकाम मिल गया, जब तत्कालीन एनडीए प्रत्याशी के रूप में भाजपा व जदयू गंठबंधन ने सोनबरसा विधानसभा से इन्हे चुनावी समर में उतारा था.
उस वक्त एनडीए की लहर में राम नरेश ने सूबे के पूर्व मंत्री डॉ रामचंद्र पूर्वे को पराजित कर बिहार विधानसभा सदस्य बनने का सपना पूरा किया था, परंतु तीन पुत्र के पिता राम नरेश को शायद यह नहीं मालूम था कि उपर वाले की मर्जी कुछ और थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनी पुन: दावेदारी को लेकर प्रयास करने वाले राम नरेश की राजनीति का चक्का एक बार फिर 11 अगस्त 1998 के चर्चित समाहरणालय गोली कांड के फैसला ने फिलहाल पटरी से उतार दिया है.

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