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पुस्तक मेला में उमड़ रही छात्रओं की भीड़
सीतामढ़ी : शहर स्थित राजेंद्र भवन में आयोजित पुस्तक मेला में पाठकों की भीड़ उमड़ रही है. पाठकों में की संख्या अधिक देखी जा रही है. हालांकि सभी उम्र के लोगों की रूचि पुस्तक मेला की ओर देखी जा रही है. पुस्तक मेला की प्रति पाठकों की रूचि देख कर मेले की संयोजिका आशा प्रभात […]
सीतामढ़ी : शहर स्थित राजेंद्र भवन में आयोजित पुस्तक मेला में पाठकों की भीड़ उमड़ रही है. पाठकों में की संख्या अधिक देखी जा रही है. हालांकि सभी उम्र के लोगों की रूचि पुस्तक मेला की ओर देखी जा रही है. पुस्तक मेला की प्रति पाठकों की रूचि देख कर मेले की संयोजिका आशा प्रभात भी काफी खुश हैं. उनका कहना है कि जिले के लोगों की रूचि को ध्यान में रख कर उन्होंने मेला का आयोजन किया है. ताकि पाठकों को घर बैठे अपने पसंद की पुस्तक को पढ़ने का मौका मिल सके.
मेला में उपलब्ध किताबों की धूम
पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित साहित्यकार काशीनाथ सिंह की पुस्तक ‘काशी का अस्सी’, आशा प्रभात की ‘कैसा सच’, ‘विजय जोशी की प्रबंधन के गुर: गांधी के गुर’, डा रमेश पोखरियाल ‘संसार कायरों के लिए नही’, ज्ञान चतुर्वेदी का ‘हम न मरब’, फणीश्वरनाथ रेणु की कितने चौराहे व साहित्य अकादमी पुस्कार से सम्मानित काशीनाथ सिंही ‘रेहन पर रग्धू’ व रघुवीर चौधरी की ‘सोमतीर्थ’ की धूम मची हुई है. पाठक हाथों-हाथ पुस्तक को खरीद रहे है. कुछ किताबों की डिमांड भी की जा रही है.
किताबों की खासियत
पुस्तक मेला में उपलब्ध ‘संसार कायरों के लिए नहीं- एक विलक्षण और प्रासंगिक पुस्तक है. उक्त किताब में बताया गया है कि जटिल होते समय और समाज में जीने के लिए व्यक्ति को अपने जीवन का नियोजन करना होता है. यह कठिन कार्य है.
इसे स्वामी विवेकानंद के संदेश और विचार सुगम बनाते है. यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद के विचारों, आदशरे एवं संदेशों पर आधारित है. इस पुस्तक को पढ़ कर किसी भी व्यक्ति के मन में जीवन को सार्थक बनाने की ललक जाग उठेगी. इसी प्रकार ‘कितन चौराहे’ उपन्यास आजादी के लिए संघर्ष करने और बलिदान देने वाले युवक को केंद्र में रख कर लिखा गया है. यह उपन्यास व्यक्तिगत सुख-दु:ख स्वार्थ मोह से ऊपर उठ कर देश के लिए जीने-मरने वालों के मानवीय संवेदनशीलता रूप को उभारता है.
पाठकों के मन में यह वृतांत श्रद्धा जाग्रत करता है. चारों ओर चीखते भ्रष्टाचार, स्वार्थ परता आदि के प्रति क्षोभ उभारता है. उत्सर्गी परंपरा के प्रति आकर्षण बढ़ाता है. एसएन सुब्बा राव द्वारा लिखित ‘मैनेजमेंट सीखे महात्मा से’ नामक पुस्तक में बताया गया है कि महात्मा गांधी व्यक्ति नहीं, विचार थे, लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि उनके विचारों को परोसते हुए मात्र डाक-टिकट व नोट पर छाप कर हमने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. दरअसल गांधी इस सदी के सबसे बड़े, अच्छे और मैनेजमेंट गुरू थे.
यदि ऐसा न होता तो मात्र एक लंगोटीनुमा वस्त्रधारी, साधारण सी कद काठी का व्यक्ति पूर्ण अहिंसात्मक तरीके से विश्व की इतनी चतुर कौम से देश को आजाद नहीं करा पाता और वह भी साधन की शुचिता के साथ. यह पुस्तक उनके विचारों के प्रति विनम्र समर्पण मात्र है.
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