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संतोष व मुकेश चल रहे थे अपनी-अपनी चाल

सीतामढ़ी : गिरोह के दो फाड़ में विभक्त होने के बाद अपराध की दुनिया में मुकेश पाठक व संतोष गिरोह अपना सिक्का जमाने के लिए अपनी-अपनी चाल चल रहे थे. एक ओर जहां संतोष झा जेल में बंद होने के बाद भी उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में ठेकेदारों से रंगदारी वसूल रहा था, वहीं […]

सीतामढ़ी : गिरोह के दो फाड़ में विभक्त होने के बाद अपराध की दुनिया में मुकेश पाठक व संतोष गिरोह अपना सिक्का जमाने के लिए अपनी-अपनी चाल चल रहे थे. एक ओर जहां संतोष झा जेल में बंद होने के बाद भी उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों में ठेकेदारों से रंगदारी वसूल रहा था, वहीं मुकेश पाठक पहले संतोष झा की जड़ उखाड़ फेंकना चाह रहा था.

यही कारण रहा कि मुकेश की गिरफ्तारी के बाद उसके नाम पर रंगदारी मांगने का कोई कोई मामला सामने नहीं आया है. छह माह के अंदर रीगा में ओमप्रकाश पटेल की हत्या व मोतिहारी जिला के ढ़ाका न्यायालय में पेशी के लिए जा रहे अभिषेक झा की हत्या को भी गैंगवार की नजर से देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि मुकेश पाठक की नजर संतोष के खास आदमी पर थी. पुलिसिया जांच में ओमप्रकाश व अभिषेक को संतोष से संबंध रखने का प्रमाण सामने आया था.
पुलिस विभाग में भी चर्चा है कि मुकेश पाठक ने ही संतोष के हत्या की साजिश रची थी.
अदालत में मुकर रहे थे संतोष झा के गवाह : खासतौर पर निर्माण कंपनियों के इंजीनियर व सुपरवाइजरों की हत्या के मामले में आरोपित संतोष झा के खिलाफ अदालत में गवाही देने वाला हर गवाह अपने बयान से मुकर रहे थे. प्रभात पड़ताल में यह सामने आया है कि कुल 32 संगीन मामलों में आरोपित संतोष के खिलाफ गवाही नहीं मिलने के कारण उसे अब तक 23 से अधिक मामले में जमानत मिल चुकी है.
वहीं साक्ष्य के अभाव में वह चार संगीन मामलों में रिहा भी हो चुका था. जिला पुलिस की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आती है. यह साबित होता है कि संतोष के खिलाफ गवाही देने के लिए गवाहों को भयमुक्त बनाने में उत्तर बिहार की पुलिस पूरी तरह असफल साबित हो रही है.

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