सीतामढ़ी : ईश्वर तो है ही. इंसान की खोज होनी चाहिए. कोई नया विचार या कोई नया सूत्र चाबी है, जो जंग खाये ताले को भी खोल देती है. सागर में नमक की पोटली डाल दो, तो वह गायब हो जायेगी.
प्रारब्ध का परिणाम जैसा भी आये, उसे स्वीकार करना चाहिए. मातृशक्ति का आदर होना चाहिए. अर्धांगिनी को समान अधिकार मिलना चाहिए. हर बेटी की अपनी महिमा है. गंगा जी को कौन अपवित्र कर सकता है. उसे हमने अस्वच्छ कर दिया है. यह तीर्थवासियों का दायित्व है कि वे गंगा को स्वच्छ रखें. स्वच्छता हर किसी को आकर्षित करती है.
शरीर की पवित्रता समर्पित करती है. बुद्ध की पवित्रता ने ही अंगुलीमाल को समर्पित कर दिया. उक्त बातें मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने स्थानीय मिथिलाधाम में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के छठे दिन कहीं. बापू ने कहा कि तेरी आंखों में पानी आ जाये, वही गंगाजल है. उसे ही अर्पित कर लो. तुलसी ने कहा है कि तुम्हारी आंखों से प्यार के आंसू गिरे, उससे बड़ा कोई तर्पण हो ही नहीं सकता. बापू ने एक बार फिर कहा, सीतामढ़ी एक पवित्र तीर्थस्थल है. यह परम धाम है. यहां सीता रहती हैं. इसे क्यों दबा रहे हो? व्यासपीठ आपको संवारना-सजाना चाहता है. बापू ने कहा कि हमने क्रोध को ही अग्नि माना है. जीवन परम सत्य से दूर हो रहा है. छोटी-छोटी बातें शॉपिंग मॉल में नहीं मिलेंगी. कुछ देना पड़ेगा नये जमाने को. मूल तत्व छूटने नहीं चाहिए. बदलना पड़ेगा.
बापू ने कहा कि सच्चा राजा किसी के वश में नहीं रहता. राजा यदि किसी के वश में आ जाये, तो प्रजा दुखी हो जायेगी.
पारंपरिक परंपराओं को अक्षुण्ण रखो : बापू ने कहा कि शास्त्रों ने जो कुछ बताया है, उसे छोड़ना मत. ब्राह्मण का सम्मान होना ही चाहिए. शास्त्रों एवं ऋषियों का सम्मान करना ही होगा. झूठी परंपराओं से बाज आओ. पारंपरिक परंपराओं को अक्षुण्ण रखो. बापू ने लोगों से पंक्ति में बैठ कर भोजन करने की अपील की.
कहा कि समाज की सुविधाओं को ध्यान में रखकर रीति-रिवाजों को बदलने की जरूरत है. ब्राह्मणों को संभाल कर रखो. उसने ग्रंथ दिया है, जिसमें जीवन जीने का सूत्र है. रामचरितमानस नहीं पढ़ सको, तो केवल राम का नाम भज लो. मुक्ति का मार्ग खोल देगा.
बलि देना है, तो अहंकार व ममता की बलि दे दो : महाराष्ट्र के एक श्रोता के प्रश्नों का जवाब देते हुए बापू ने दुनिया को बलि प्रथा जैसी कुरीति से बाज आने की हिदायत दी. बापू ने कहा कि बलि देना ही है, तो अहंकार और ममता की बलि दे दो. बेटी का सम्मान करो. कन्यादान करो और ये जो ‘मैं’ है, उसको काट कर फेंक दो. बापू ने कहा कि यज्ञ, दान और तप छोड़ना मत. ये तुम्हारी बुद्धि की विशुद्धि के लिए जरूरी है. यज्ञ की पद्धति को बदलो और सुविधापूर्ण तरीके से जी लो.