बाढ़ का कहर. घरों में घुसा है बाढ़ का पानी, अब भी राहत शिविर, तटबंध व हाइवे पर शरण लिये हैं लोग
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जिंदगी बनी बोझ, नहीं कट रहे दिन व रात
बाढ़ का कहर. घरों में घुसा है बाढ़ का पानी, अब भी राहत शिविर, तटबंध व हाइवे पर शरण लिये हैं लोग सीतामढ़ी : किस्मत में है घनघोर अंधेरे, रात सुलगती, धुंधले अंधेरे. बाढ़ से उत्पन्न तबाही की कुछ ऐसी हीं तस्वीर जिले में दिख रही है. एक तो बाढ़ ने लोगों की जिंदगी में […]
सीतामढ़ी : किस्मत में है घनघोर अंधेरे, रात सुलगती, धुंधले अंधेरे. बाढ़ से उत्पन्न तबाही की कुछ ऐसी हीं तस्वीर जिले में दिख रही है. एक तो बाढ़ ने लोगों की जिंदगी में ठहराव ला दिया है, वहीं गांव, घर व खेतों में ठहरे पानी ने इंतजार बढ़ा दिया है.
बांध, सड़क, हाइवे व रेलवे ट्रैक के किनारे जिंदगी गुजार रहे लोगों का न दिन कट रहा है और न रात. मानों किस्मत में घनघोर अंधेरा छा गया है. रात भर सब कुछ खो देने का गम पीड़ितों में सुलग रहा है तो सुबह भी उम्मीदों की धुंधली तस्वीर दिखा रहा है. बेबसी के बीच बाढ़ पीड़ितों के मुसीबतों पर विराम लगता नहीं दिख रहा है. जिले में पिछले 13 दिनों से बाढ़ की तबाही का दौर जारी है.
तीन-चार प्रखंडों को छोड़ दे तो अधिकांश प्रखंडों में अब बाढ़ का संकट नहीं है, लेकिन बाढ़ से उत्पन्न तबाही के निशान अब भी बरकरार है जो परेशानी के सबब बने हुए है. जिले में बाढ़ ने व्यापक तबाही मचाई है. बाढ़ ने जहां 60 लोगों की जिंदगी निगल ली है, वहीं दर्जनों महिलाओं के मांग की सिंदूर छीन ली है.
किसी के बुढ़ापे का सहारा छीन गया है तो किसी का कमाऊ पूत नदी का शिकार बन गया है. बाढ़ का पानी उतर गया है, लेकिन बाढ़ के पानी में जिंदगी गंवाने वालों के घर मातम का दौर अब भी जारी है. मातम तो इलाके के किसान भी मना रहे है. साहूकारों से कर्ज लेकर महंगे दाम पर खाद व बीज खरीद किसानों ने खेतों में फसल लगाई थी. बारिश के अभाव में पंप सेट से सिंचाई की थी. खेतों में फसलें भी लहलहा रहीं थी. अच्छी उपज की उम्मीद थी. लेकिन बाढ़ के पानी में फसलों के साथ किसानों की उम्मीदें भी बह गयी है. उपर से साहूकारों का कर्ज बढ़ गया है.
उधर, गरीबों के खून पसीने के कमाई से बना आशियाना भी तिनके की तरह बिखड़ गया है. बेटियों के शादी के लिए रखे गए जेवरात व कपड़े तक बाढ़ के पानी में बह गए है. दर्जनों लोग बेटी के हाथ पीले करने की तैयारी में थे, तीन माह बाद बारात आता, गांव व घर में जश्न दिखता, इसके पहले हीं गांव वीरान व लोग तबाह हो गए है.
सड़क पर जिंदगी, हर चेहरे पर बेबसी: सीतामढ़ी . सीतामढ़ी जिले में बाढ़ का कहर कम हुआ है, असर बरकरार है. जर्रे-जर्रे में तबाहीं के निशां भी मौजूद है. प्रकृति के कहर से उत्पन्न कायनात ने गरीबों की जिंदगी पर कयामत बरपायी है.
हालत यह है कि जिंदगी सड़क पर है. हर चेहरे पर बेबसी के निशान है. विवशता से उत्पन्न आंसू इतने बह गए है कि गरीबों की आंखें सूख गयी है. बाढ़ के पानी में बहे अरमान, आशियाना बिखड़ने, खेतों की फसले बह जाने व अपनों के खोने के दर्द से पीड़ितों का कलेजा चाक हो गया है. सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर हाइवे में रून्नीसैदपुर से कटौझा तक लोग सड़क के किनारे जिंदगी गुजार रहे है. पूरा हाइवे बस्ती में तब्दील है. स्याह अंधेरों के बीच पीड़ितों की रात कट रहीं है. चिलचिलाती धूप व मूसलाधार बारिश के बीच गरीब अपने जिस्म को बचाने की जद्दोजहद कर रहे है. 13 अगस्त की रात से अब तक इन गरीबों की जिंदगी में ‘भोर’ नहीं हो सका है. हर रात कयामत की रात साबित हो रहीं है.
हाइवे पर जिंदगी का दर्द झेल रहे बुधन मुखिया, गणेशी सदा, अर्जुन दास, सोगारथ दास, महेंद्र दास, शुकन सहनी, चंद्रावती देवी व मोहन कुमार बताते है कि अब तो जीने की इच्छा भी खत्म हो गयी है. गांव पानी में डूबा है. घर गिर गये है. पानी रूक सा गया है. पॉलीथीन के नीचे बच्चे व मवेशी को रखे हुए है. पानी कम होने का इंतजार कर रहे है, ताकि गांव-घर लौट सके. तेज धूप के बीच बारिश भी कहर बरपा रहा है. सड़क पर रहने के चलते हादसों की आशंका बनी रहती है. लोग जग कर रात काट रहे है. इस दौरान आते-जाते वाहनों पर नजर रखी जाती है. डर लगता है कि कहीं तेज रफ्तार वाहन लोगों को कुचल न दें. राहत का बुरा हाल है, अब भी गरीबों को राहत का इंतजार है.
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