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रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया, अव्यवस्था ने तोड़ दिया
छपरा (नगर) : सारण की प्रतिभाओं ने अपने आत्मविश्वास और अथक प्रयासों के बलबूते कई बार जिले को गौरवान्वित किया है. हालांकि सुविधाओं का अभाव और सरकार की अनदेखी बार-बार यहां की प्रतिभाओं की राह का रोड़ा बन जाती है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सीमित सुविधाओं के साथ ही कुछ ऐसा कर […]
छपरा (नगर) : सारण की प्रतिभाओं ने अपने आत्मविश्वास और अथक प्रयासों के बलबूते कई बार जिले को गौरवान्वित किया है. हालांकि सुविधाओं का अभाव और सरकार की अनदेखी बार-बार यहां की प्रतिभाओं की राह का रोड़ा बन जाती है.
वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सीमित सुविधाओं के साथ ही कुछ ऐसा कर गुजरते हैं, जो वर्षों तक याद रखा जाता है. सारण जिले के बनियापुर प्रखंड के सहाजितपुर की 41 वर्षीया रीमा कुमारी कभी सारण के एथलेटिक्स की ध्वजवाहक हुआ करती थीं. हाइ जंप के उनके द्वारा वर्ष 1989 में बनाया गया 5.3 फुट का ओपन स्टेट रिकॉर्ड आज तक कोई तोड़ नहीं सका है. रीमा ने एथलेटिक्स में अपने कैरियर की शुरुआत उस दौर में की थी, जिस समय ग्रामीण क्षेत्र में बेटियों को खेलकूद के लिए घर से बाहर निकलना बमुश्किल ही संभव हो पाता था. कोल्हुआ मध्य विद्यालय में पढ़ाई के दौरान 1988 में पहली बार स्कूल लेबल पर हुई एथलेटिक्स प्रतियोगिता में रीमा ने हिस्सा लिया और हाइजंप और 100 मीटर की दौड़ में प्रथम रही. यहीं से उनके हौसले को उड़ान मिली और उसके बाद उन्होंने कई नेशनल कैंप में भाग लिया. ट्रेनिंग के अभाव में भी उन्होंने दूसरे स्टेट की महिला एथलीटों को देखकर कई तकनीक सीखी और वर्ष 1989 में ओपन स्टेट मीट में उसने वो कारनामा कर दिखाया, जो आज तक एक रिकॉर्ड है.
इस ओपन स्टेट चैंपियनशिप में रीमा ने हाइ जंप में 5.3 फुट की छलांग लगाकर पूरे सारण को पदक तालिका में सुनहरे स्थान पर काबिज करा दिया. वर्ष 1988 से 1993 तक रीमा ने सैकड़ों प्रतियोगिता में पदकों की झड़ी लगा दी और स्पोर्ट्स में क्षेत्र में पूरे जिले का नाम अव्वल श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. इन चार वर्षों के बीच रीमा के प्रदर्शन से प्रभावित होकर जिले में लड़कियों का स्पोर्ट्स के प्रति रुझान बढ़ा और यह दौर सारण के खेल जगत में लड़कियों को आगे आकर स्वयं को साबित करने का मिसाल बन गया.
हालांकि रीमा को मेडल तो बहुत मिले, पर सरकार से न तो कोई सहयोग मिला और न ही अपने प्रतिभा को और ज्यादा निखारने का कोई मार्गदर्शन. बिहार में खेल के क्षेत्र में सुविधा और संसाधनों का अभाव और परिवार के कमजोर आर्थिक हालत ने रीमा के कैरियर में ब्रेक लगा दिया. सारण की एक असाधारण प्रतिभा रीमा कुमारी आज गांव के ही एक स्कूल में शारीरिक शिक्षक के रूप में कार्यरत है. अपने रिकॉर्ड के टूटने का इंतजार लिए आज भी एथलेटिक्स के आयोजनों को बड़े चाव से देखने जाती हैं. हालांकि अब तक इनका रिकॉर्ड राज्य स्तर पर नहीं टूट सका है. पति और दो बच्चों के साथ रीना कुमारी भले ही आज एक गुमनाम जिंदगी जी रही हैं.
पर उन्हें इस बात का भरोसा है कि राज्य और देश में खेल के क्षेत्र में बदलते माहौल में ग्रामीण प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर जरूर मिलेगा.
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