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बिना बाढ़ के ही डूबा प्रभुनाथ नगर

समस्या . नाला नहीं होने से जलनिकासी के सभी द्वार बंद बदतर जिंदगी जीने को विवश हैं हजारों लोग छपरा(नगर) : इन दिनों जिले में बाढ़ की त्रासदी से आम जनजीवन प्रभावित है. ग्रामीण इलाकों की सड़कों पर जलजमाव हो गया है. वहीं शहरी क्षेत्र में कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जो बिना बाढ़ के […]

समस्या . नाला नहीं होने से जलनिकासी के सभी द्वार बंद

बदतर जिंदगी जीने को विवश हैं हजारों लोग
छपरा(नगर) : इन दिनों जिले में बाढ़ की त्रासदी से आम जनजीवन प्रभावित है. ग्रामीण इलाकों की सड़कों पर जलजमाव हो गया है. वहीं शहरी क्षेत्र में कुछ इलाके ऐसे भी हैं, जो बिना बाढ़ के ही पूरी तरह पानी में डूब गये हैं. यहां की सड़कों पर तीन से चार फुट पानी जमा है. आसपास के खाली पड़े जमीन तालाब में तब्दील हो गये हैं. हम जिक्र कर रहे हैं छपरा के सर्वाधिक पॉश एरिया प्रभुनाथ नगर और उमानगर की. शहरी क्षेत्र में होने के बावजूद यह इलाका साढ़ा पंचायत में आता है. पंचायत में होने के बावजूद बड़ी-बड़ी इमारतें इस क्षेत्र की रौनक हैं. डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी, व्यवसायी यहां तक की सत्ता के शीर्ष पर काबिज कई जनप्रतिनिधियों का ठिकाना इसी क्षेत्र में पड़ता है.
इन सब के बावजूद बीस हजार से भी ज्यादा की आबादी वाले इस इलाके में जलजमाव विकट समस्या बनती जा रही है. पूरे क्षेत्र में आज तक नाले का निर्माण नहीं कराया जा सका है. जिस कारण बरसात के दिनों में यहां बाढ़ जैसा नजारा देखने को मिलता है. वहीं नयी बस्ती होने के कारण खाली पड़े जमीन में सालों भर पानी इकट्ठा रहता है, जो यहां रहने वाले लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डाल रहा है.
जलनिकासी के सभी रास्ते बंद : शहर के प्रमुख रिहाइशी इलाका प्रभुनाथ नगर छपरा नगर निगम के परिसीमन से कटा होने के कारण पंचायत क्षेत्र में आता है. इस क्षेत्र में दो हजार से भी ज्यादा मकान हैं. हालांकि इस विशाल कॉलोनी में आज तक नाले का निर्माण नहीं कराया जा सका. दो सौ से ज्यादा घर ऐसे थे, जिन्होंने नाले की जमीन पर अतिक्रमण किया था, पर कुछ वर्ष पूर्व प्रशासन ने क्षेत्र में व्याप्त अतिक्रमण को हटा दिया. उस वक्त लोगों में नाला निर्माण को लेकर उम्मीद जगी थी. लेकिन नाला निर्माण की सभी योजनाएं अधर में लटक गयीं. मामला सुप्रीम कोर्ट से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक गया, मगर जलनिकासी को लेकर सार्थक पहल नहीं हो सकी. स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले यहां का पानी छोटे-छोटे नाहर से होकर ग्रामीण इलाकों में चला जाता था, पर नये-नये मकान तेजी से बनने लगे और जलनिकासी के सभी रास्ते बंद हो गये. इसके साथ ही शहर के खनुआ नाले से भी कनेक्टिविटी बंद हो गयी और देखते ही देखते जलनिकासी के सभी रास्ते बंद हो गये.
कई बार हो चुका है उग्र आंदोलन : इस विकट समस्या को लेकर स्थानीय लोग जिला प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगा चुके हैं. कई बार तो क्षेत्र में व्याप्त इस समस्या को लेकर उग्र आंदोलन तक हुआ है. इसके बाद भी जलनिकासी को लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों का रवैया उदासीन बना हुआ है. समस्या अब इस हद तक बढ़ गयी है कि आसपास के स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने लगी है. अभिभावक अपने बच्चों को भीषण जलजमाव के बीच स्कूल भेजने से कतराते हैं. जिन लोगों के घरों में शादी ब्याह या अन्य फंकशन होते हैं, उन्हें मजबूरी में शहर के दूसरे क्षेत्र में जाकर पार्टी का अरेंजमेंट करना पड़ता है.
आसपास के सभी खाली मैदान जलमग्न हैं, ऐसे में स्कूल की छुट्टी के बाद खुले मैदान में खेलने वाले बच्चों का बचपन घर की चहारदीवारी में सिमट कर रह गया है. इसके साथ ही बरसात का मौसम खत्म होते ही कीचड़ और जलजमाव के कारण महामारी का खतरा भी बना हुआ है.
जब तक खनुआ नाले की सफाई नहीं होगी, इस समस्या का स्थायी समाधान संभव नहीं है. कई बार क्षेत्र में नाला निर्माण के लिए प्रयास किया है.
सुनैना देवी, मुखिया
, साढ़ा पंचायत
बरसात के दिनों में तो बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं. एक कमेटी बनाकर जल्द ही क्षेत्र में जलनिकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करायी जायेगी.
डॉ सीएन गुप्ता, स्थानीय विधायक
पॉश एरिया होने के बावजूद आज तक नाले का निर्माण नहीं हो सका. जनप्रतिनिधि खामोश हैं. आम दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित है.
डॉ अंजलि सिंह, शिक्षाविद
जलनिकासी के सभी रास्ते बंद हैं. इस जटिल समस्या को लेकर कई बार आंदोलन तक किया गया पर आज तक कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल सका.
धनंजय सिंह, स्थानीय नागरिक

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