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समाप्ति के कगार पर पुलिस चौकियां

ठाकुर संग्राम सिंह छपरा : बीते एक दशक में शहर से लेकर गांव तक छोटे-बड़े सभी विभागों का कायाकल्प हुआ है. प्रशासनिक भवनों को हाइटेक किया गया है, वहीं कई आधुनिक व्यवस्थाओं के सहारे कार्यालयों को सुविधा संपन्न बनाया गया है. इन सभी के बीच शहर के विभिन्न प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से […]

ठाकुर संग्राम सिंह
छपरा : बीते एक दशक में शहर से लेकर गांव तक छोटे-बड़े सभी विभागों का कायाकल्प हुआ है. प्रशासनिक भवनों को हाइटेक किया गया है, वहीं कई आधुनिक व्यवस्थाओं के सहारे कार्यालयों को सुविधा संपन्न बनाया गया है. इन सभी के बीच शहर के विभिन्न प्रमुख स्थानों पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनायी गयी पुलिस चौकियां कुव्यवस्था और पुलिसकर्मियों के अभाव में अपना अस्तित्व पूरी तरह खो चुकी हैं. शहर के पूर्वी छोर से लेकर पश्चिमी छोर तक लगभग एक दर्जन पुलिस चौकियां थीं.
बीते दस वर्षों में सरकार द्वारा पुलिसबल का स्ट्रेंथ नहीं बढ़ाया गया, वहीं तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के बीच पुलिस फोर्स की डिमांड भी बढ़ने लगी. ऐसी स्थिति में चौकियों में तैनात पुलिसकर्मियों की थाना और अन्य जगहों पर नियुक्ति की जाने लगी. पुलिस बल का अभाव चौकियों की लचर व्यवस्था का प्रमुख कारण बना और धीरे-धीरे इनका अस्तित्व समाप्त होते गया. आज स्थिति ऐसी है कि चौकियों के लिए बनाये गये प्रायः सभी भवन जर्जर हो चुके हैं, जिनका अतिक्रमण हो चुका है. वहीं जिन जगहों पर पुलिस चौकियां स्थापित भी हैं, सुविधाओं के अभाव में इसका कोई विशेष महत्व रह नहीं गया है.
कभी लोगों का आत्मबल बढ़ाती थीं चौकियां : दो दशक पहले पुलिस चौकियों का अपना अलग रुतबा हुआ करता था. पुराने और अनुभवी पुलिसकर्मियों की ड्यूटी यहां लगायी जाती थी. आसपास के लोगों के लिए उनके मोहल्ले में पुलिस चौकी का होना उनके आत्मबल को बढ़ाता था. जिन मुहल्लों में पुलिस नाके की स्थापना की गयी थी, वहां चोरी की घटनाएं बहुत कम हुआ करती थीं. छोटे-मोटे आपसी विवाद के लिए लोगों को थाने तक जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी.
यहां मौजूद पुलिसकर्मी घंटे दो घंटे में ही विवादों का निबटारा कर दिया करते थें. पुराने पुलिसकर्मियों की ड्यूटी यहां इस लिए लगायी जाती थी कि वो अपने अनुभव के आधार पर इलाके की शांति व्यवस्था बहाल रख सकें और अपराधियों के धरपकड़ में आसानी हो. जब भी शहर में कोई घटना दुर्घटना होती थी, तो सभी चौकियों को अलर्ट कर दिया जाता था और रात्रि गश्ती में भी इनकी मदद ली जाती थी. यहां तैनात पुलिसकर्मियों को अपने इलाके की पूरी जानकारी रहती थी ऐसे में छापेमारी व वांटेड अपराधियों में घरों की निगरानी करना भी आसान हो जाता था.
बदहाल व्यवस्था ने जर्जर कर दिया चौकियों को : शहर के अधिकतर इलाकों में जनसंख्या के हिसाब से पुलिस चौकियां बनायी गयी थीं.
दियारा के इलाकों में चार चौकियां थीं, वहीं सोनारपट्टी, मौना चौक, समाहरणालय पथ, नयी बाजार, तेलपा, नवीगंज जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भी छोटे भवनों में पुलिस चौकियां बनायी गयी थीं. यहां एक अधिकारी के साथ चार से पांच पुलिसकर्मी तैनात किये जाते थें. रहने-खाने की व्यवस्था भी यहीं हुआ करती थी. समय के साथ जनसंख्या बढ़ने लगी. विकास के साथ पुलिसकर्मियों के तैनाती के लिए नये-नये स्पॉट बनते गये.
हालांकि इस अनुपात में राज्य सरकार ने पुलिसकर्मियों के स्ट्रेंथ में इजाफा नहीं किया. पुलिस थाने में भी कर्मियों की कमी होने लगी. लिहाजा चौकियों पर तैनात पुलिस बल को धीरे-धीरे थाना में ड्यूटी मिलने लगी. पुलिस बल के अभाव में चौकियां खाली होने लगी, व्यवस्थाएं बदहाल होते गयी, मेंटेनेंस की कमी ने चौकियों को जर्जर कर दिया और देखते ही देखते इन चौकियों का आस्तित्व समाप्त होने लगा.

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