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पितरों को राह दिखाता है उक्का पाती

।। कृष्णमोहन पाठक।। समस्तीपुरः वैसे प्रकाश पर्व दीपावली से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं जिसके कारण यह धार्मिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, सामाजिक आयामों को छू जाता है. सामान्य जीवन में धन-धान्य दायक माना जाने वाला यह पर्व वास्तव में अपने गर्भ में कई तथ्यों को समेटे हुए है. पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि दुर्वासा […]

।। कृष्णमोहन पाठक।।

समस्तीपुरः वैसे प्रकाश पर्व दीपावली से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं जिसके कारण यह धार्मिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, सामाजिक आयामों को छू जाता है. सामान्य जीवन में धन-धान्य दायक माना जाने वाला यह पर्व वास्तव में अपने गर्भ में कई तथ्यों को समेटे हुए है. पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि दुर्वासा ऋषि के शाप से देवराज इंद्र को लक्ष्मी का विसर्जन समुद्र में करना पड़ा था. जिसके बाद असुरों के प्रकोप से सुरों को परेशानियां हुई. जिससे निजात पाने के लिए देवताओं ने समुद्र मंथन की प्रार्थना की. इसी क्रम में लक्ष्मी समुद्र से पुन प्रकट हुई थी. इस उपलक्ष्य में दीपोत्सव मनाया गया. मार्केडेय पुराण के मुताबिक लक्ष्मी की पूजा नारायण ने स्वयं स्वर्ग में किया था. जिसके बाद दीपोत्सव की धार्मिक परंपरा शुरू हुई.

भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर सीता एवं लक्ष्मण के साथ चौदह साल के वनवास को समाप्त कर लौटे तो इस उपलक्ष्य में अयोध्या वासियों ने पूरे नगर में दीपावली मनाकर उनका स्वागत किया. इसी तरह कठोपनिषद में चर्चा है कि जीवन मरण के रहस्य से अवगत होकर नचिकेता के वापस लौटने की खुशी में मर्त्यलोक में दीपावली मनायी गयी थी. माना जाता है कि यह आर्यावर्त की संभवत पहली दीपावली थी. दीपावली की शाम दीप जलाने के साथ उल्का भ्रमण की परंपरा है. यह वास्तव में महालय यानी पितृपक्ष में स्वर्ग लोक का त्याग कर मर्त्यलोक पहुंचे पितरों को परम गति की कामना के साथ वापस लौटने की राह दिखाता है. शास्त्रों में कहा गया है ‘शस्त्रशस्त्रहतानं च भूतानां भूतदर्शयो. उज्जवलज्योतिषा देहं निर्दहे व्योमवहिृनना. अगिAदग्धाध ये जीवा योडज्यदग्धा कुले मम. उज्जवलज्योतिशा दग्धास्ते यांतु परमां गतिम.

यमलोकं परित्यज्य आगता ये महालये. उज्जवलज्योतिषा वर्त्म प्रपश्यन्तो व्रजन्तु ते.’ इन मंत्रों के साथ खर और सनई की संठी निर्मित उल्का को पूजा घर के मुख्य दीप से जला कर घर-आंगन में इन मंत्रों के साथ उल्का दिखते हुए घर से दूर चौराहे पर इसे त्यागते हैं जहां दो संठी वापस लाने की परंपरा है. जिसका उपयोग आधी रात के बाद डगरा पीट कर दरिद्रता को घर से बाहर की राह दिखाने की परंपरा महिलाएं पूरी करती है. इन प्रसंगों पर गौर करें तो यह अज्ञानता रूपी अंधकार से ज्ञान प्रकाश की ओर बढ़ने व सजग रहने की प्रेरणा देता है. इस दिवाली ऐसे दीपक जलाने का संकल्प लें जो अज्ञातनता रूपी अंधकार को मिटाते हुए प्रकाश ज्ञान रूपी समतामूलक समाज को स्थापित करने में मददगार हो.

बाजार में रही रौनक

दीपावली को लेकर सोमवार को भी बाजार में चहल-पहल बनी रही. खरीदारों की भीड़ पूजा सामग्रियों की दुकानों पर दिखी. इसके कारण पूजा में काम आने वाले सामानों की कीमत में थोड़ा उछाल देखा गया. लोग लक्ष्मी गणोश की मूर्ति, उसके साज-सामान की खरीद में मशगुल रहे. माला, स्टीकर, बंधनवार, कैडिंल, मोमबत्ती के साथ-साथ मिट्टी के बने दीपक की मांग बढी रही. उधर, पूजा में काम आने वाले फल और मिठाई दुकानों पर भी खरीदार आते रहे. लक्ष्मी के साथ गणोश की पूजा होने के कारण खास कर लड्डू की बिक्री अधिक हुई. उधर, पटाखा दुकानों पर अन्य वर्षो की भांति भीड़ तो नहीं थी, लेकिन शौकिन लोग पहुंचते रहे. व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि अन्य वर्षो की तुलना में पटाखों की कीमत सामान्य है. फिर भी लोगों का रूझान इस तरह नहीं हो रहा है. जिससे व्यवसाय मंदा ही है. छठ पर्व बचा है. उसमें जो बिक्री हो. पूंजी फंसने की नौबत आ गयी है.

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