समस्तीपुर : प्रकृति हो या इनसान. देर करने की फितर किसी की चाहत पूरी नहीं करता. मॉनसून के आने में हो रही देर एक बार फिर उसके दगाबाजी का संकेत दे रहा है. बीते 12 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि मॉनसून सूबे बिहार में 7 वर्ष देर से पहुंचा है. इन 12 वर्षों में माॅनसून की लेटलतीफी का सिलसिला वर्ष 2009 में शुरू हुआ. यह लगातार जारी है. इसमें वर्ष 2016 इसमें अपवाद रहा. हालांकि इस वर्ष 15 जून को दस्तक देने के बाद भी पूरे मॉनसूनी मौसम में वर्षापात का आंकड़ा सामान्य से नीचे ही रह गया. मौसम विभाग के मुताबिक पूरे मॉनसून के दौरान 1234.7 मिली मीटर वर्षा जरूरी है.
इससे कम सुखाड़ और ज्यादा रेडलाइन की ओर इशारा कर जाता है. वर्ष 16 में मॉनसूनी मौसम के दौरान मात्र 1015 मिली मीटर बारिश रिकार्ड किये गये. यह इस मौसम में सामान्य वर्षापात से 219.7 एमएम कम है. इससे थोड़ा ज्यादा बारिश गत वर्ष 22 जून को उत्तर बिहार में सक्रिय हुए मॉनसून की बारिश के दौरान वर्षापात हुई थी. डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थित मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017-18 1135 एमएम वर्षापात हुई. यह सामान्य से महज 99.7 एमएम कम रहा. इन 7 वर्षों के दौरान मॉनसून को लेकर मौसम वैज्ञानिकों ने खास कमी नोट की है उसे रेखांकित करते हुए मौसम विभाग के नोडल पदाधिकारी डॉ. ए. सतार बताते हैं कि पूर्व के दशकों में यह देखा जा रहा था कि मॉनसून पहले, समय पर या फिर देर से आते रहे हों परंतु जब सक्रिय होता था तो एक समान होता था.
इसमें भारी कमी आयी है. बीते वर्षों में देखा जा रहा है कि मॉनसून की समरुपता में कमी आयी है. कहीं बारिश तो कहीं सूखा. कहीं कम तो कहीं ज्यादा बारिश होने लगी है. इसमें भी बारिश के दिनों की संख्या में भी गिरावट आ रही है. बीते वर्ष 2017 के अगस्त महीने में महज 3 दिनों में 250 मिली मीटर बारिश हो गयी. पहले और बाद में इसकी रफ्तार सुस्त ही रहा. डा. सत्तार इसे मॉनसून के बदलते रुख का संकेत बता रहे हैं. यदि आंकड़ों के अनुरुप ही देर से आने वाले मॉनसून का मिजाज रहा तो यह खरीफ मौसम में होने वाली खेतीबाड़ी के लिए एक बार फिर संकट खड़ा करने वाला साबित हो सकता है. यहां बता दें कि इसके विपरीत जब-जब मॉनसून समय से पूर्व आया है उस वर्ष अच्छी-खासी बारिश हुई. ज्ञात हो कि पूरे मानूसन के दौरान 1234.7 एमएम वर्षापात सामान्य माना जाता है.