अमर चौधरी
कहरा (सहरसा) : पति विदेश में, बेटियां दिल्ली में और संजना अकेली अपने गांव पटुआहा में. लेकिन कोई संकोच नहीं, कोई ग्लानि नहीं, कोई भय नहीं. आत्मबल इतना कि पुरुष भी धोखा खा जाये. किसी भी काम के लिए दूसरों पर निर्भरता नहीं. छोटे से बड़े सभी कामों में संजना स्वयं दक्ष है. गांव में अकेली रह कर 12 बीघा खेती कर रही है. 25 गायें व चार भैंस खरीद डेयरी फार्म खोली. सभी मवेशियों की देख-रेख सब अकेली संजना के भरोसे है. संजना का रहन-सहन सामान्य महिलाओं से बिल्कुल अलग व जिम्मेवारी निभाने का तरीका सहित उसका आत्मबल समाज की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा दायक है.
बाइक से लेकर ट्रैक्टर तक चलाती हैं. सहरसा जैसे शहर में पिछले कुछ वर्षो में लड़कियां अब आम रूप से साइकिल चलाने लगी हैं. स्कूटी की सवारी करने वाली महिलाएं भी सड़कों पर यदा-कदा दिख ही जाती हैं, लेकिन काम के अनुसार मोटरसाइकिल तो कभी सूमो चला कर घर से निकले वाली संजना सबों को दांतों तले अंगुली दबाने को विवश कर देती है. इतना ही नहीं खेतों को जोतने भी संजना ट्रैक्टर लेकर निकल पड़ती है. वह कहती है कि पति की प्रेरणा से पहले बाइक चलाना सीखा. फिर आवश्यकता देख सूमो खरीदा व खुद चलाना सीखा. खेतों में ट्रैक्टर की जरूरत महसूस हुई तो वह भी खरीद स्वयं खेत जोतने लगी. संजना डेयरी की गायों को भी खुद दुह लेती है. वह कहती है कि वह किसी पर आश्रित या किसी के भरोसे अपने काम को छोड़ना नहीं चाहतीहै. इसलिए उसे ड्राइविंग सीखना पड़ा और गाय दूहने की आदत भी डालनी पड़ी.
कदम मिलाने को प्रेरित करते हैं पति. पटुआहा पंचायत के वार्ड नंबर छह में रहने वाली 32 वर्षीय संजना स्वयं को किसान कहलाने में गर्व महसूस करती है. नियमित रूप से खेतों में जाना व गाय दूहना उसकी दिनचर्या में शामिल है. संजना बताती है कि वह मौसम के अनुसार अपने खेतों में धान, गेहूं, सब्जी सहित अन्य फसलों का पैदावार करती हैं. फसलों को वह बाजार में बेच देती है. अभी उसके डेयरी की लगभग 10-12 गायें रोजाना एक क्विंटल दूध देती है. जिसे वह सुधा को बेच देती है. कुछ गांवों में ही बिक जाते हैं.
आठवीं पास संजना बताती है कि ग्रामीण व अशिक्षित घर में जन्म लेने के कारण वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पायी, लेकिन वह अपनी दोनों बेटियों को ऊंची शिक्षा दिला रही है. अभी दोनों दिल्ली में रह कर 12वीं व नौंवी कक्षा में पढ़ रही है. संजना कहती है कि उसके पति अमेरिका में काम करते हैं. वे समाज में पुरुषों के कदम से कदम मिला कर चलने की प्रेरणा देते रहते हैं और उसका हौसला बढ़ाते रहते हैं.