कनकनी. नहीं बन पायी कंबल वितरण की योजना, ठिठुर रहे हैं लोग
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अलाव के लिए तरस रहा शहर
कनकनी. नहीं बन पायी कंबल वितरण की योजना, ठिठुर रहे हैं लोग ठंड बढ़ती जा रही है. लेकिन अभी तक अलाव, कबल वितरण आदि की व्यवस्था नहीं हो पायी है. वहीं दैनिक मजदूरों को रात गुजारने के लिए रैन बसेरा भी उपलब्ध नहीं है. इस अोर प्रशासन को जागने की आवश्यकता है. सहरसा : हिंदी […]
ठंड बढ़ती जा रही है. लेकिन अभी तक अलाव, कबल वितरण आदि की व्यवस्था नहीं हो पायी है. वहीं दैनिक मजदूरों को रात गुजारने के लिए रैन बसेरा भी उपलब्ध नहीं है. इस अोर प्रशासन को जागने की आवश्यकता है.
सहरसा : हिंदी सिनेमा का यह गीत रहने को घर नहीं…सोने को बिस्तर नहीं के फिल्मांकन में भी नायक को सिस्टम के विरुद्ध दिखाया गया था. आजकल प्रमंडलीय मुख्यालय की सड़कों पर सर्दी की शीतलहर व कुहासा से भरी सितम ढाती सर्द रात में हजारों की आबादी आकाश को ही छत व जमीन पर बने फुटपाथ को बिस्तर मान जिंदगी जी रही है. शहर के अंदर हो या बाहर, व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले मेहनतकश लोगों के लिए जिला प्रशासन के आपदा विभाग द्वारा अभी तक कोई भी मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गयी है. जिसकी वजह से मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब तबके के लोग सर्दी की मार से बचने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं.
गरीब, गरीबी व ठंड की रात: सरकारी महकमे में यह उक्ति प्रचलित है कि योजनाएं गरीबों के लिए ही बनती है. लेकिन जिले के आपदा विभाग के द्वारा अभी तक इस वर्ग के लिए न तो कंबल वितरण की योजना ही बन पायी है और न ही अलाव की व्यवस्था की गयी है. सरकार द्वारा जिले के प्रत्येक पंचायत में एक -एक कंबल योजना के रूप में बांटने का निर्णय लिया गया था. स्टेशन परिसर में ही रोजाना रात को विश्राम करने वाले रिक्शा चालक राम महतो ने बताया कि पुराने कंबल के सहारे रोजाना रात को ठंड से चुनौती लेता हूं. लेकिन अभी तक किसी ने हमारी फिक्र नहीं की है. मालूम हो कि ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो रोजाना स्टेशन, बस स्टैंड, रैन बसेरा, थाना चौक, अस्पताल चौक, रिफ्यूजी कॉलोनी चौक पर बेबसी में ठंड की रात गुजार रहे हैं. पूरे शहर में अलाव के नाम पर खानापूर्ति की गयी है.
एक रैन बसेरा के भरोसे है शहर : जिले में फुटपाथ पर रात गुजारने वाले लोगों को स्थायी निवास देने के उद्देश्य से राजद सरकार द्वारा सभी जिला मुख्यालय में रैन बसेरा का निर्माण कराया गया था. जिसमें रहने वाले मजदूरों को नि:शुल्क रहने व सस्ती दर पर भोजन की व्यवस्था की जाती है. शहर में थाना चौक के समीप बने रैन बसेरा में फिलवक्त दर्जनों लोग रह रहे हैं, वहीं फुटपाथ पर रहने वाले हजारों लोग अब भी रैन बसेरा का इंतजार कर रहे हैं.
उधार की गरमी, बेजान हो रहे जिस्म: बढ़ती शीतलहर में शहर के थाना चौक स्थित रैन बसेरा में रहने वाले दर्जनों रिक्शा चालक की स्थिति काफी भयावह है. रैन बसेरा में सोने के लिए बेड की संख्या कम है. मजबूरन कई लोग फर्श पर ही सोने को विवश हैं. भौरा गांव निवासी रिक्शा चालक गंगाधर चौधरी बताते हैं कि रिक्शा मालिक शिवन राय रोजाना रात को कंबल ओढ़ने के लिए देते हैं, जो भारी शीतलहर में नाकाफी साबित होती है. सुबह होते ही सभी कंबल वापस करने पड़ते हैं. रिक्शा चालक सबौरी निवासी रामचंद्र शर्मा ने बताया कि पांच-छह साल से रह रहा हूं, लेकिन प्रशासन या सरकार के स्तर से कभी भी कंबल नहीं दिया गया है.
ठंड से ठिठुर रही बुढ़ी हड्डी: ंड से चुनौती ले रहे बुजुर्ग रिक्शा चालक अर्जुन यादव की स्थिति रैन बसेरा में काफी दयनीय है. 75 वर्षीय अर्जुन बताते हैं कि उनके पास ओढ़ने के लिए महज एक ही फटा पुराना कंबल है. सर्दी का सितम झेल रहे रिक्शा चालक 70 वर्षीय बिनो चौधरी पुराने कपड़ों से लिपट कर सोये हुए थे. उन्होंने बताया कि उधार में किसी ने कंबल भी नहीं दी. कोई बांटने वाला हो तो मेरा नाम बता दिजीयेगा.
दर्जन भर रैन बसेरा की जरूरत: जिले में किसी न किसी मुद्दे को लेकर राजनीतिक दलों व स्वयंसेवी संगठनों द्वारा आंदोलन किये जाते रहे हैं. लेकिन किसी ने कभी इन सैकड़ों लोगों के लिए आवाज बुलंद नहीं की है, जो रोजाना जिंदगी व मौत से जूझ रहे हैं. सड़क किनारे थाना चौक पर एक बेंच के सहारे रात गुजार रहे चंद्रेश्वरी चौधरी कहते हैं कि फिलवक्त दर्जनों रैन बसेरा की जरूरत है. मालूम हो कि अस्थायी रूप से वाटर प्रूफ टेंट लगाकर भी तत्काल खुले आकाश व रिक्शों पर रहने को विवश जिंदगी को सुरक्षित किया जा सकता है.
प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान, गरीबों को हो रही परेशानी
रिक्शे पर कट जायेगी जिंदगी
शहर में रहने वाले छोटे साहब व बड़े साहबों के रहने व काम करने के लिए बड़े-बड़े आलीशान भवनों का शिलान्यास व उद्घाटन का काम रोजाना चलता रहता है. लेकिन अपनी मेहनत से दूसरे के घरों को आबाद रखने वाले मजदूरों की फिक्र किसी को नहीं है. शहर में सैकड़ों की तादाद में रिक्शा चालक, होटल के कामगार व फुटपाथ पर रोजगार करने वाले लोग हैं. जिन्हें सर्दी हो या जेठ की दोपहरी, सड़क किनारे ही अपनी जिंदगी गुजार देनी पड़ती है. शीतलहर की ठिठुरन में आम और खास लोग जहा घरों के अंदर कंबल व रजाई से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते हैं, वही स्टेशन व मुख्य मार्गों के समक्ष खुले आकाश में रिक्शे पर सोते लोगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
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