27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जेवर कारीगर की बिगड़ रही हालत

सर्राफा बाजार के हड़ताल से चरमरा गयी है स्वर्ण कारीगरों की हालत सहरसा नगर : बेगूसराय जिले के तेघड़ा गांव के मूल निवासी ललित कुमार ठाकुर पिछले 26 दिनों से बेकार बैठे हैं. उसके घर में बमुश्किल चूल्हा जल रहा है. पिछले महीने से ही वह अपने मां-पिताजी को भी कुछ भेज नहीं पा रहे […]

सर्राफा बाजार के हड़ताल से चरमरा गयी है स्वर्ण कारीगरों की हालत

सहरसा नगर : बेगूसराय जिले के तेघड़ा गांव के मूल निवासी ललित कुमार ठाकुर पिछले 26 दिनों से बेकार बैठे हैं. उसके घर में बमुश्किल चूल्हा जल रहा है. पिछले महीने से ही वह अपने मां-पिताजी को भी कुछ भेज नहीं पा रहे हैं. इस बार होली के त्योहार में उसके घर पुआ-पकवान नहीं बना और न ही किसी को नये कपड़े ही हो पाए. जिस दुकान से माहवारी किराने का सामान लेते थे, अब उसने भी अल्टीमेटम दे दिया है. दूध वाले ने तो पहले से ही दूध देना बंद कर दिया है.
दरअसल ललित सोने-चांदी के जेवरों के अच्छे कारीगर हैं. 1800 रुपये महीने के किराए के घर में रह रहे 45 साल के ललित पिछले 25 वर्षों से सहरसा में रह कर ही कारीगरी कर रहे हैं. लेकिन एक्साइज ड्यूटी को लेकर सर्राफा बाजार की चल रही हड़ताल ने ललित की कमर तोड़ दी है. दिनोंदिन उसकी परेशानी बढ़ती ही जा रही है.
काम के हिसाब से मिलता है दाम : सोने व चांदी का अच्छा कारीगर होने के बाद भी ललित को काम के हिसाब से ही पैसे मिलते हैं. बताता है कि यदि वह दुकानदार के लिए एक चेन बनाता है तो उसे मेहनताने के रूप में एक हजार रुपये मिलते हैं. उस एक चेन को बनाने में उसे तीन से चार दिन का समय लगता है. इस तरह औसतन रोज की कमाई 250 से 300 रुपये होती है. नोजपिन या इयर रिंग बनाने के एवज में उसे डेढ़ से दो सौ रुपये मिलते हैं. इसी दैनिक आमदनी से इसका परिवार चलता है. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई होती है. उसी में से थोड़े पैसे बचाकर कभी-कभार मां-पिताजी को भी भेजते हैं. लेकिन सर्राफा बाजार के हड़ताल के कारण पिछले 26 दिनों से इसे कोई काम नहीं मिला है.
परिवार के सात सदस्यों का है भार: ललित ठाकुर के परिवार में पत्नी के अलावा तीन पुत्री व एक पुत्र है. सभी बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. बच्चों को कॉपी कलम देने तक के पैसे नहीं हैं. हर लगन की तरह फागुन के लगन से भी बड़ी उम्मीद थी. खूब सारे जेवर बना कर पैसे इकट्ठे करने की सोंचा था. लेकिन हड़ताल के कारण सारे सपनों पर पानी फिर गया. बंदी से से घर की माली हालत चरमरा गई है. रोज घर से निकल कर चौक-चौराहों पर जाते हैं.
पूछताछ कर पता करते रहते हैं कि हड़ताल समाप्त हुआ कि नहीं. कब से खुल रही है दुकान. कोई उम्मीद नहीं देख निराशा ही हाथ लगती है. कमोबेश शहर के 500 से अधिक स्वर्ण कारीगरों की हालत ऐसी ही है. सब इसी इंतजार में हैं कि सरकार से जल्द समझौता हो जाये. दुकान खुले तो उन्हें काम मिले और वे जिंदगी के जेवर को एक बार फिर सजा सकें.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें