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मत्स्यगंधा: कब लौटेगी पुरानी रौनक

सहरसा : मुख्यालय 1997 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी तेज नारायण लाल दास की साकार परिकल्पना ‘मत्स्यगंधा’ की सूरत कब लौटेगी. इधर आने वाले लोगों की निगाहें बस इसी सवाल का जबाव ढ़ूंढ़ती है. शासन और प्रशासन दोनों ने लोगों को आश्वासन की घुट्टी खूब पिलायी, लेकिन सफाई के नाम पर इस झील में एक कुदाल […]

सहरसा : मुख्यालय 1997 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी तेज नारायण लाल दास की साकार परिकल्पना ‘मत्स्यगंधा’ की सूरत कब लौटेगी. इधर आने वाले लोगों की निगाहें बस इसी सवाल का जबाव ढ़ूंढ़ती है. शासन और प्रशासन दोनों ने लोगों को आश्वासन की घुट्टी खूब पिलायी, लेकिन सफाई के नाम पर इस झील में एक कुदाल तक नहीं चलाया जा सका है.

हां, छठ पर्व के दाैरान किनारे से जलकुंभी हटा मत्स्यगंधा के अस्तित्व में होने का आभास जरूर कराया जाता रहा. कभी जिले का एकमात्र पिकनिक स्पॉट व अत्यंत रमणीक कहलाने वाली मत्स्यगंधा झील पशुओं का चारागाह व सन्नाटों का इलाका बन कर रह गयी है. विकास योजना की राशि से हुआ था निर्माण1997 में तत्कालीन जिलाधिकारी टीएन लाल दास के निर्देश पर मत्स्यगंधा जलाशय का निर्माण जिले के विकास योजना के 54 लाख रुपये की लागत से हुआ था.

इससे पूर्व तक यह क्षेत्र शहरी क्षेत्र का श्मसान स्थल था. दिन-रात यहां लाशें जला करती थी. लोग डर से इधर आना भी नहीं चाहते थे. डीएम के प्रयास से यहां उपलब्ध बिहार सरकार की जमीन के अलावे कुछ रैयतों की जमीन भी ली गयी और परिकल्पना के अनुसार झील बनाने का कार्य शुरू हुआ. इस दौरान दर्जनों क्षत-विक्षत लाशें मिली.

दिन रात मजदूरों को लगा दस फीट की गहराई तक मिट्टी खुदवा हड्डी के एक -एक टुकड़े को चुनवा लिया गया. चारो ओर परिक्रमा पथ बनवाया गया. स्ट्रीट लाइट से क्षेत्र को रोशन कर दिया गया. दुर्लभ पेड़ लगाये गये. इसे मत्स्यगंधा जलाशय परियोजना का नाम दिया गया था. इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के हाथों हुआ था.

झील में रंग-बिरंगे पैडल व पतवार वोट डाले गये थे. इसके अलावे इंजन से चलने वाली एक बड़ी जलपरी भी डाली गयी थी. झील के मध्य पानी का फव्वारा बनाया गया था, जो रंग बिरंगी रोशनी से सबों को आकर्षित करता था. दिन भर नौका से सैर करने वालों का यहां तांता लगा रहता था. पूर्णिमा सहित चांदनी रात में भी लोग नौकायन करने का मौका नहीं छोड़ते थे.

नाव की सैर टिकट लेने पर करायी जाती थी. इससे प्रशासन को अच्छी-खासी आमदनी होती थी. जगह-जगह सीढ़ियां सहित बेंच भी बनवाये गये थे. इसके अलावे इस परियोजना को बहुद्देश्यीय बनाने के उद्देश्य से झील में रेहू व कतला जैसी मछली डाली गयी थी. मछलियों के विक्रय से भी राजस्व की प्राप्ति भी होती थी.

बेहतर झील का दावा हुआ बकवासटीएन लाल दास के तबादले के साथ ही झील की रौनक भी चली गयी. इसे संवारने के लिए न तो किसी अधिकारी ने कदम बढ़ाया और न ही सरकार ने. 2012 में सेवा यात्रा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सुबह की सैर व अवलोकन के लिए उधर गये.

झील की दुर्दशा देख उन्होंने तुरंत पर्यटन विभाग के विशेषज्ञ अधिकारियों को बुला बेहतर मत्स्यगंधा के सौदर्यीकरण के लिए शीघ्र डीपीआर तैयार करने का निर्देश दिया. एक करोड़ रुपये का डीपीआर भी तैयार हुआ, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. इस बीच विभाग कहता रहा कि रैयतों को मुआवजे के भुगतान के बाद सौंदर्यीकरण का काम शुरू हो जायेगा. 64 एकड़ 97 डिसमिल में फैले इस झील की लंबाई 55 सौ फीट व चौड़ाई आठ सौ फीट है.

इसमें 32 एकड़ जमीन बिहार सरकार की है. शेष हकपारा, गोबरगढ़ा, अगवानपुर व शहपुर मौजा के लगभग 60 रैयतों की जमीन है. पर्यटन विभाग की ओर से सभी 60 रैयतों को मुआवजे का भुगतान कर दिया गया है, लेकिन मत्स्यगंधा की पुरानी खूबसूरती लौटाने की ओर शासन या प्रशासन कोई सजग नहीं दिख रहा है. फोटो- झील 16- जलकुंभियों से पटा मत्स्यगंधा झील

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