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खुद बीमार है एपीएचसी!

सत्तरकटैया: हजारों की आबादी को नजदीक में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाया गया अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंन्द्र सत्तरकटैया वषों से बदहाली से गुजर रहा है.़ इस अस्पताल की व्यवस्था में सुधार के लिए कई बार आमरन अनशन, धरना प्रदर्शन किया गया़, लेकिन मामला आश्वासन तक ही सीमित रह गया़ सत्तरकटैया पूर्वी क्षेत्र […]

सत्तरकटैया: हजारों की आबादी को नजदीक में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाया गया अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ केंन्द्र सत्तरकटैया वषों से बदहाली से गुजर रहा है.़ इस अस्पताल की व्यवस्था में सुधार के लिए कई बार आमरन अनशन, धरना प्रदर्शन किया गया़, लेकिन मामला आश्वासन तक ही सीमित रह गया़ सत्तरकटैया पूर्वी क्षेत्र के पचास हजार से अधिक लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेवारी लिए यह अस्पताल स्वयं ही बीमार पड़ा हुआ है़.

चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी, नर्स, दवा, भवन, शौचालय, पेयजल सहित अन्य सुविधा के लिए मोहताज बना हुआ है. सड़क हादसे व प्रसव सुविधा के लिए पहुंचने वाले मरीजों को सुविधा के अभाव में 15 किमी दूरी तय कर जिला मुख्यालय की शरण लेनी पड़ती है़ आकस्मिक अवस्था में कई मरीजों को जान से हाथ तक धोना पड़ जाता है़.

भवन की स्थिति है जर्जर
इस अस्पताल में वर्षो पुराना भवन है, जो जर्जर बन चुकी है़ मरम्मती व साफ सफाई की कमी के कारण स्वस्थ होने वाले मरीज और बीमार हो जाते हैं़ शौचालय एवं स्वच्छ पेयजल तो नसीब ही नहीं होता है़ इस परिस्थिति में मरीज भी अधिक दूरी तय कर जिला मुख्यालय का ही रूख करना पसंद करते हैं़ कई लोगों ने बताया कि अस्पताल की व्यवस्था अच्छी होने पर लोगों को सुविधा के लिए भटकना नही पड़ेगा़
एक नर्स के भरोसे कराया जाता है प्रसव
एपीएचसी में वैसे तो तीन नर्स की ड्यूटी लगायी गयी है, लेकिन एक ही नर्स के भरोसे प्रसव की सारी व्यवस्था चल रही है़ इस अस्पताल में कल्याणी भट्टाचार्य व देव्यानी गुप्ता को सप्ताह में चार से पांच दिन विभिन्न आंगनवाड़ी केंन्द्रों पर टीकाकरण के लिए जाना पड़ता है़ वहीं सुनीता रानी प्रसव महिलाओं का प्रसव कराती है़ साधारण अवस्था में तो किसी तरह प्रसव करा दिया जाता है. लेकिन थोड़ी सी परेशानी देख रेफर करना ही बेहतर समझा जाता है़.
सप्ताह में दो दिन बैठते हैं आयुष चिकित्सक
लोगों की डिमांड पर विभाग द्वारा सप्ताह में दो दिन के लिए एक आयुष चिकित्सक की ड्यूटी लगायी गयी है, जो आबादी के मुताबिक नाकाफी है़ कार्यरत डॉ संतोष कुमार विश्वास ने बताया कि व्यवस्था के अभाव में काम करना कठिन हो जाता है़ इन्ही चिकित्सक द्वारा प्रसव कराने वाली महिलाओं का भी इलाज किया जाता है़.

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