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बाजारवाद की चपेट में आया शिक्षक दिवस

सहरसा : सर्वपल्ली राधाकृष्णण के संस्मरण और उनके आदर्शों पर टिकी गुरुओं को समर्पित शिक्षकों का विशेष दिवस उनके आदर और उनके प्रति छात्रों का प्यार और सम्मान प्रदर्शन का दिन है. लेकिन बहुरंगी अर्थव्यवस्था में इसके मायने तेजी से बदल रहे हैं. जहां गुरुओं के चरित्र पर अंगुलियां उठने लगी है. छात्रों की छिछोरी […]

सहरसा : सर्वपल्ली राधाकृष्णण के संस्मरण और उनके आदर्शों पर टिकी गुरुओं को समर्पित शिक्षकों का विशेष दिवस उनके आदर और उनके प्रति छात्रों का प्यार और सम्मान प्रदर्शन का दिन है.

लेकिन बहुरंगी अर्थव्यवस्था में इसके मायने तेजी से बदल रहे हैं. जहां गुरुओं के चरित्र पर अंगुलियां उठने लगी है. छात्रों की छिछोरी हरकतों से समाज कलंकित हुआ है. वहां आरूणि जैसे गुरुभक्त बालकों की उम्मीद करना बेइमानी है. 1962 से शुरू शिक्षक दिवस अपनी 57 वीं सालगिरह मना रहे हैं.
त्रिदेवों के सम्मान के बराबर आज शिक्षक शिक्षा को उन्नयन और विमुखता की ओर ले जा रहे हैं. यह समाज के सामने बहस का मुद्दा बन सकता है. मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हो रहे दर्जनों कोचिंग संस्थानों ने शिक्षक दिवस के मायने वर्तमान युग के परिप्रेक्ष्य में बदल डाला है. कई संस्थानों में फुहर गीत की धुन पर थिरकते छात्रों ने शिक्षक दिवस के अर्थ को ही बदल डाला.
दिन भर बाजार में लगी रही भीड़
शिक्षक दिवस पर अपने शिक्षकों को उपहार देने के लिए छात्रों की भीड़ बुधवार को शहर के विभिन्न गिफ्ट हाउस, किताब दुकान पर लगी रही. दुकानदार भी छात्रों को लुभाने के लिए कई तरह के आकर्षक ऑफर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख कर दुकान के सामने लगाये हुए थे तो कई दुकानदार सोशल मीडिया पर भी दुकान में मिलने वाले ऑफर की जानकारी दे रहे थे. वही डीबी रोड सहित अन्य जगहों पर दुकानदार अपने दुकान के आगे टेंट लगा कर सामान की बिक्री की.

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