- जिला परिषद में था आयुर्वेदिक पौधों का बाग, पहाड़ी क्षेत्रों से भी मंगायी जाती थी जड़ी-बूटी
- आती थी ठन-ठन की आवाज और वातावरण में फैल जाती थी हर्बल खुशबू
- संयुक्त सहरसा, मधेपुरा व सुपौल में फैली थी डिस्पेंसरी, लोगों का मुफ्त इलाज करते थे वैद्य
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आयुर्वेद कैंपस : नाम रह गया और काम बन गया इतिहास
जिला परिषद में था आयुर्वेदिक पौधों का बाग, पहाड़ी क्षेत्रों से भी मंगायी जाती थी जड़ी-बूटी आती थी ठन-ठन की आवाज और वातावरण में फैल जाती थी हर्बल खुशबू संयुक्त सहरसा, मधेपुरा व सुपौल में फैली थी डिस्पेंसरी, लोगों का मुफ्त इलाज करते थे वैद्य विष्णु स्वरूप, सहरसा : शहर का डाक बंगला रोड जिसे […]
विष्णु स्वरूप, सहरसा : शहर का डाक बंगला रोड जिसे डीबी रोड के नाम से जाना जाता है. वह कभी आयुर्वेदिक गार्डेन के नाम से मशहूर था. हालांकि उसका एक कोना आज भी आयुर्वेद कैंपस के नाम से जाना जाता है. लेकिन काम कब का इतिहास बन गया. जहां आयुर्वेद के विभिन्न पेड़-पौधे होते थे, वहां आज गाड़ियां पार्क होती है.
जहां दवा तैयार होती थी, आज वहां बाजार और आवास खड़ा है. स्वास्थ्य के लिए एक बार फिर से आयुर्वेद की लौट रही दुनियां में शहर के इस अनमोल उपहार को सहेजने का कभी कोई प्रयास नहीं हुआ और न ही कभी किसी ने चिंता ही जतायी.
हर अनुमंडल में थी वैद्यशाला की डिस्पेंसरी: डीबी रोड में जिला परिषद कार्यालय के उत्तरी द्वार के ठीक सामने आयुर्वेद कैंपस नामक बाजार है. जिसमें जिला पार्षदों के आवास, डॉक्टरों के क्लीनिक, पैथलॉजी, किराने की दुकान, ब्यूटी पार्लर, गैस एजेंसी, स्टूडियो, एक्सरे, फर्नीचर और अन्य दुकानें हैं.
लगभग चार से पांच दशक पूर्व तक यह वास्तव में आयुर्वेद कैंपस था. मतलब यहां आयुर्वेद की दवाएं बनती थी. आयुर्वेद के वैद्य बैठते थे और आने वाले मरीजों का मुफ्त में इलाज होता था. उन्हें मुफ्त में दवाइयां भी दी जाती थी.
सहरसा के तत्कालीन अनुमंडल मधेपुरा, उदाकिशुनगंज, बिहारीगंज, सुपौल, वीरपुर, निर्मली, प्रतापगंज में भी इस वैद्यशाला की ओर से डिस्पेंसरी खोली गयी थी. वहां भी अचूक आयुर्वेदिक दवाओं के साथ वैद्य बैठते थे.
आयुर्वेद इलाज के लिए प्रसिद्ध था सहरसा
जिला परिषद कार्यालय के पूर्व सहरसा नथुनी प्रसाद सिंह ने बताया कि आयुर्वेद कैंपस की स्थापना जिला परिषद के प्रथम अध्यक्ष भूषण प्रसाद गुप्ता ने की थी. सहरसा आयुर्वेदिक इलाज के लिए काफी प्रसिद्ध था. यहां दूर-दूर से लोग इलाज के लिए आते थे.
जहां अभी आयुर्वेद कैंपस है, वहां दवा के कारखाने थे. एक साथ दर्जनों कर्मी खल-मूशल में जड़ी-बूटी कूटते थे. ठन-ठन की आवाज से आसपास रहने वाले लोग समझ जाते थे कि आयुर्वेद अस्पताल में काम शुरू हो गया है. मधुर ध्वनि से बच्चे सहित बड़े भी देखने आ जाते थे. बड़े-बड़े कराह में दवाइयां पकाई जाती थी. एक ओर छोटी-बड़ी शीसियों में दवा भरी जाती थी तो दूसरी ओर कहीं पुड़िया बनाई जाती थी.
पूरा का पूरा माहौल हर्बल महक से भरा रहता था. बीमार होकर पहुंचे लोगों की आधी बीमारी तो घंटे-दो घंटे तक जड़ी-बूटियों के बीच रहने से ही चली जाती थी. उन्होंने बताया कि हर साल धन्वंतरी पूजा के अवसर पर यहां विशाल कार्यक्रम का आयोजन होता था. जिसमें आयुर्वेद पर विशेष चर्चा होती थी. लोगों को आयुर्वेद का महत्व बताते उसे अपनाने की सलाह दी जाती थी. यहां दवा के अलावे जीवन के तौर-तरीके भी सिखाये जाते थे.
पूरे डीबी रोड को बना दिया था हर्बल पार्क
सुपौल जिले के किशनपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व एमएलए विजय कुमार गुप्ता ने बताया कि उनके पिता भूषण प्रसाद गुप्ता ने लगभग पूरे डीबी रोड को हर्बल पार्क बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.
जिला परिषद कार्यालय परिसर में तरह-तरह की बेशकीमती जड़ी-बूटियों के पेड़-पौधे लगाये गये थे. तार की जाली से घेर उन्हें सुरक्षित रखा गया गया था. जिन जड़ी-बूटियों के लिए यहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं थी. उसे बाहर के पहाड़ी प्रदेशों से मंगाया जाता था.
परिसर में एक बड़ा सा तालाब था. जिसमें नीलकमल सहित अन्य जलीय औषधीय पौधों की खेती होती थी. जिप अध्यक्ष इस पर स्वयं खास निगरानी रखते थे. सुबह-शाम उनका समय उसी हर्बल पार्क में गुजरता था. पूर्व विधायक श्री गुप्ता ने बताया कि वैद्यशाला में हाजीपुर के प्रसिद्ध वैद्य डॉ दुर्गाशरण मिश्र लोगों का इलाज करते थे.
उनके अलावे आयुर्वेद के सुपरवाइजर पारसनाथ मिश्र भी थे. तिथि तय कर जिले में जगह-जगह कैंप लगाये जाते थे. उन्होंने बताया कि एलोपैथ इलाज से लोग साइड इफेक्ट से परेशान हो रहे हैं. दुनियां एक बार फिर से आयुर्वेद की ओर लौट रही है. सहरसा को भी ऐतिहासिक विरासत को लौटाना चाहिए.
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