परेशानी. कोसी के बाढ़ व कटाव का दंश झेलने को अभिशप्त हैं तटबंध के अंदर बसे लोग
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हर साल उजड़ती व बसती हैं कई बस्तियां
परेशानी. कोसी के बाढ़ व कटाव का दंश झेलने को अभिशप्त हैं तटबंध के अंदर बसे लोग कोसी बराज के डिस्चार्ज पर टिकी रहती है निगाह पानी जब नदी में बढ़ता है तो होता है बाढ़ का तांडव नवहट्टा : बिहार सरकार के कैलेंडर में 15 जून से 31 अक्तूबर तक बाढ़ की अवधि घोषित […]
कोसी बराज के डिस्चार्ज पर टिकी रहती है निगाह
पानी जब नदी में बढ़ता है तो होता है बाढ़ का तांडव
नवहट्टा : बिहार सरकार के कैलेंडर में 15 जून से 31 अक्तूबर तक बाढ़ की अवधि घोषित है. इसी दौरान मानसून का प्रवेश होता है. पहाड़ी क्षेत्रों में जम कर बारिश होती है और नदियों का जल स्तर बढ़ता है. नेपाल की सप्तकोसी भारत नेपाल सीमा पर नेपाल के सुरसरी जिले में एक साथ मिल कर बहती है और यहां से उसका नाम मात्र कोसी रह जाता है. कोसी का बहाव बिहार में होता है. यह नेपाल से चल कर सुपौल, सहरसा, खगड़िया होते हुए कुरसेला में गंगा नदी में जा मिलती है.
बहाव पर नियंत्रण के लिए नेपाल की जमीन पर भारत सरकार ने बराज का निर्माण कराया है, जहां से जल अधिग्रहण क्षेत्र से आये पानी को आवश्यकतानुसार नदी की मुख्य धारा सहित पूर्वी व पश्चिमी कैनाल में छोड़ा जाता है. कोसी बराज द्वारा नदी अथवा कैनाल में छोड़े जाने वाले पानी की गणना घनमीटर प्रति सेकेंड (क्यूसेक) में किया जाता है. नि:स्सरित पानी की मात्रा प्रत्येक दो घंटे पर बोर्ड पर अंकित की जाती है.
दो लाख 81 हजार तक पहुंचा डिस्चार्ज: इस वर्ष बाढ़ अवधि में 10 से 15 अगस्त तक नदी में दो लाख 50 हजार से दो लाख 81 हजार के बीच में डिस्चार्ज होता रहा. इस वर्ष 12 अगस्त को कोसी नदी में वर्ष का अधिकतम दो लाख 81 हजार 609 क्यूसेक डिस्चार्ज रिकॉर्ड किया गया. चूंकि अब नदी में पानी का डिस्चार्ज घट कर एक लाख 64 हजार क्यूसेक पर आ गया है. इससे नदी का जल स्तर सामान्य हो गया है और तटबंध के अंदर के लोगों को बाढ़ से राहत मिली है. हालांकि डिस्चार्ज एक लाख 50 हजार क्यूसेक से बढ़ते ही पूर्वी व पश्चिमी तटबंध के बीच बसे लोगों की धड़कनें बढ़ जाती है, लेकिन वे इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि वे नदी में पानी बढ़ने के बाद घबराते नहीं हैं,
बल्कि आकलन करने के बाद ही घर छोड़ बाहर निकलने की तैयारी शुरू करते हैं. उन्हें पूरी तरह पता होता है कि बराज से छोड़ा गया पानी कब तक उनके घर के आस-पास पहुंचेगा. नदी के गर्भ में रहने वाले परताहा निवासी सुशील कुमार बताते हैं कि डेढ़ से दो लाख क्यूसेक पानी तो नदी की धारा में ही समा जाता है. जब दो लाख से अधिक डिस्चार्ज होता है तो नदी का पानी फैलने लगता है. पानी जब नदी में बढ़ता है तो बाढ़ का तांडव, जब घटने लगता है तो कटाव की चिंता बनी रहती है.
299 एकड़ स्थायी तो 1548 एकड़ है अस्थायी जल क्षेत्र: नवहट्टा. जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित नवहट्टा प्रखंड बिहार का शोक कही जाने वाले कोसी नदी का शिकार रहा है. 1962में तटबंध निर्माण के बाद प्रखंड का अधिकाधिक भाग नदी के हिस्से में चला गया. आज स्थिति यह है कि 14 पंचायत में सात तटबंध के अंदर और सात बाहर हैं. प्रखंड की कुल भूमि में 29926.60 एकड़ जमीन स्थायी जल क्षेत्र में तब्दील है, तो 1548.48 एकड़ अस्थायी जल क्षेत्र में. तटबंध निर्माण के साथ ही यहां के लोगों की जिंदगी भी बंध सी गयी है. यहां का आम जीवन बाढ़ से कम उसके आने की आशंका से पहले ही सहम जाता है.
देख चुके हैं तबाही का मंजर: 1984 में पूर्वी कोसी तटबंध के 77वें किलोमीटर पर क्लोजर बांध के टूटने से प्रखंड क्षेत्र की एक लाख आबादी प्रभावित हुई थी. तटबंध टूटने के साथ ही नदी से पानी का रूख बाहर की ओर हो गया और विनाशलीला रचने लगा. रास्ते में जो कुछ भी आया, बहाव सबको अपने साथ बहाते चला गया. इसके अलावे आस-पास के सटे इलाके में भी बाढ़ ने भीषण तबाही मचायी थी. 1984 की बाढ़ को करीब से देखने वाले आज भी उसे याद कर सहम जाते हैं. वे किसी कीमत पर उस तबाही की पुनरावृत्ति नहीं चाहते हैं, लेकिन हर साल जून से अक्तूबर तक तटबंध से सटे बाहर रहने वाले लोगों की जान सांसत में बनी रहती है. इस दौरान उनके सिर हर पल तटबंध टूटने का खतरा मंडराता रहता है.
70 हजार की आबादी का हर साल होता है बाढ़ से सामना: अगस्त माह के शुरू होते ही नेपाल के जल ग्रहण क्षेत्र में हुई मूसलधार बारिश से कोसी के जल स्तर में भारी वृद्धि हुई. इस जल वृद्धि ने तटबंध के अंदर की जिंदगी बदहाल कर दी. तटबंध के अंदर बाढ़ से 70 हजार से अधिक की आबादी दो सप्ताह तक बाढ़ की त्रासदी झेलती रही. फसल बर्बाद हुआ. पशुचारा डूब गये. मानो इस दो सप्ताह में कोसी ने सात पंचायत की जिंदगी पूरी तरह अस्त व्यस्त कर डाली. इस बाढ़ के विकराल रूप में प्रशासनिक मदद इन बाढ़ पीड़ितों के लिए शून्य रही. सिर्फ प्रशासनिक चहलकदमी होती रही.
14 में से सात पंचायत बाढ़ से प्रभावित: पूर्वी व पश्चिमी कोसी तटबंध के बीच प्रखंड के चौदह से सात पंचायत हाटी, केदली, डरहार, बकुनिया, नौला, सत्तौर व शाहपुर पंचायत का रामजी टोला इन सात पंचायत में कोसी ने अगस्त में तांडव मचाया. सड़क टूटे, पुल, पुलिया ध्वस्त हुई तो किसानों की फसल पूर्णत: बर्बाद हो गयी, लेकिन नदी का जल स्तर कम होने के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है. जगह-जगह कीचड़ ने लोगों को घर से निकलना मुश्किल कर दिया है. इससे तटबंध के अंदर के सात पंचायत की 70 हजार की आबादी की जिंदगी अभी भी थमी सी है.
कटाव का दंश झेलता रहा है केदली: प्रखंड का केदली पंचायत एक बार फिर कोसी के निशाने पर है. यहां अब तक साढ़े तीन दर्जन से अधिक घर नदी की धारा में समा गये हैं. कोसी नदी की तेज धारा से विचलित होकर अपने घर को अपने ही हाथों से तोड़ कर फूस व टीन के छप्पर को समेट रहे हैं. वे तटबंध के किनारे अपना आशियाना बनाने की तैयारी में जुट गये हैं, लेकिन इन कोसी पीड़ितों के लिए सरकार व जिला प्रशासन ने अब तक किसी तरह के मदद की पोटली नहीं खोली है. गांव खाली करने व घर द्वार तोड़ने के कारण वहां का दृश्य किसी बड़े आपदा का निशानी छोड़ रहा है.
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