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मुहल्ले में एक ही नारा चाचा-चाची बस अबकी बारी

सासाराम : अब तो मोहल्ले का चुनाव सिर चढ़ कर बोलने लगा है. सभी अपना-अपना सिंबल लिए घूमने लगे हैं. कोई भैया.. कोई चाची कहते नहीं थक रहा. ये तो ऊपर-ऊपर दिख रहा है. अंदर तो तलवार, तराजू व जनेऊ चल रहा है. आप सोच रहे होंगे ये क्या है. पर सच यही है. इस […]

सासाराम : अब तो मोहल्ले का चुनाव सिर चढ़ कर बोलने लगा है. सभी अपना-अपना सिंबल लिए घूमने लगे हैं. कोई भैया.. कोई चाची कहते नहीं थक रहा. ये तो ऊपर-ऊपर दिख रहा है. अंदर तो तलवार, तराजू व जनेऊ चल रहा है. आप सोच रहे होंगे ये क्या है. पर सच यही है. इस चुनावी दंगल में कोई खुद को कमतर नहीं आंक रहा है.

मजेदार बात तो यह है जिसकी कोई हैसियत नहीं बची है वह खुद को किंगमेकर कह रहा है. पता नहीं यह चुनाव क्या गुल खिलायेगा. एक बात और है. इस बार ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जो बहुत कम बोलते हैं. लेकिन आप यह मत समझिए कि वे बहुत सरल और दूसरों की सुनने वाले हैं. यह उनका सरलीकरण नहीं, बल्कि ऐसे लोग तो दो शब्द बोल भी नहीं सकते. लेकिन ये तो लोकतंत्र है भैया. यही नहीं चुनाव में पांच साल तक सभी के बड़के भैया बनने वाले इन दिनों सीन से गायब हैं.

भैया अब बस एक ही बात बोल रहे हैं ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर. भैया का काम निकल गया. लालबत्ती गाड़ी पर टंगी रही. जब कुरसी गयी तो सरकारी फरमान आ गया की लाल बत्ती हटेगी. भैया बहुत खुश. अब ठीक हुआ. हमरी जगह जो आयेगा बिना बत्ती के घूमेगा. भैया इसी में खुश हैं. खैर नेतागिरी का तो एक कीड़ा होता है जो किसी भी साबुन से नहीं मरता. देखेंगे भैया कब तक घुड़की मार कर बैठेंगे. मोहल्ले के चुनाव में धीरे-धीरे मजा आ रहा है. वोटर भी खूब मजा ले रहे हैं. भंडारे का. एक भंडारे से निकले और दूसरे में पहुंचे. बस इतना ही तो बोलना है भैया अबकी आप ही है. बस उम्मीदवार साहब की आंखें चौड़ी और मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लगे. सपना तब टूटेगा जब मोहल्ले वाली चाची ठेंगा दिखा देंगी.

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