नोटबंदी. दुकानों में ग्राहकों का इंतजार, पहले से थी अच्छी बिक्री की उम्मीद
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गरम कपड़ों का बाजार पड़ा सुस्त
नोटबंदी. दुकानों में ग्राहकों का इंतजार, पहले से थी अच्छी बिक्री की उम्मीद सासाराम शहर : छठ पूजा के बाद से ही सर्दी का अहसास शुरू हो गया है. इससे ऊनी कपड़ों के व्यापारियों के चेहरों पर खुशी थी कि इस वर्ष अच्छी बिक्री कर पिछले साल का घाटा भी पूरा कर लिया जायेगा. लेकिन, […]
सासाराम शहर : छठ पूजा के बाद से ही सर्दी का अहसास शुरू हो गया है. इससे ऊनी कपड़ों के व्यापारियों के चेहरों पर खुशी थी कि इस वर्ष अच्छी बिक्री कर पिछले साल का घाटा भी पूरा कर लिया जायेगा. लेकिन, छठ पूजा गुजरने के बाद उनकी खुशियां भी गुजर गयी. आज हालत यह है कि बड़ा शोरूम हो या कोई छोटी दुकान माल तो भरा है, लेकिन ग्राहक नहीं है. सामान्य तौर पर आधा नवंबर गुजरते-गुजरते ठंड अपना असर दिखाने लगती है और लोग गरम कपड़ों की खरीदारी शुरू कर देते हैं.
दुकानों में भी स्वेटर, जैकेट, गर्म इनर वियर, दस्तानों के अलावा कंबल, लोई, शॉल आदि सज जाते हैं. अब स्थिति यह है कि दुकानें ऊनी कपड़ों, कंबल आदि से सज चुकी हैं, लेकिन दुकानदार और सेल्समैन दिन भर ग्राहक के इंतजार में ही बैठे हैं. ऊनी कपड़ों के शोरूम संचालकों के मुताबिक पिछले साल ज्यादा सर्दी नहीं पड़ी थी. इस लिए 50 फीसदी से ज्यादा माल बचा रह गया था. इस बार सर्दी जिस तरह बढ़ रही थी, उससे लग रहा था कि जल्द ही बिक्री बढ़ेगी. छठ पूजा के करीब कुछ लोगों ने खरीदारी भी की थी,
लेकिन पांच सौ व एक हजार रुपये के नोट बंद होने के बाद ग्राहकों के हाथ खाली हो गये और बिक्री शून्य हो गयी है. उनके मुताबिक शोरूम व कर्मचारियों के वेतन पर ही रोज का कई हजार रुपये खर्च है. कंबल कारोबारी अरुण प्रसाद का कहना है कि हर वर्ष अगस्त के आसपास तक माल भर लिया जाता है. इस बार भी यह सोच कर माल भरा था कि कुछ पुराना और नया माल मिल कर बेच लिया जाएगा लेकिन अब हालत यह है कि माल तो भरा है लेकिन ग्राहक नहीं हैं. जो माल बाहर जाता है उसके भी ग्राहक नहीं हैं.
पिछले साल भी रह गया था 50 फीसदी से ज्यादा माल
नोटबंदी से गरम कपड़ों के बाजार में नहीं दिख रही भीड़.
स्कूलों में विंटर ड्रेस खरीदना मजबूरी
अभिभावकों के हाथ खाली हैं, लेकिन स्कूलों में बच्चों के लिए विंटर ड्रेस खरीदना मजबूरी है. एक नवंबर से ही स्कूलों ने विंटर ड्रेस पहन कर आने के निर्देश लागू कर दिये हैं. अब जो बच्चे ड्रेस पहन कर नहीं आ रहे हैं, उन बच्चों को दंडित भी किया जा रहा है. अभिभावकों को मजबूरी में खरीदारी करनी पड़ रही है. ब्लेजर एक हजार रुपये के करीब के आ रहे है. यह हाल तब है जब उनके हाथों में चंद रुपये ही हैं.
10 दिन बाद भी बाजार में नहीं आयी रौनक
नोटबंदी से बाजार में अभी भी चैन नहीं आया है. 10 दिन बाद थोड़ी रौनक और अधिक बेचैनी बाजारों में दिख रही है. सर्राफा, किराना, सब्जी, वस्त्र समेत छोटी-बड़ी हर दुकानों पर हालत में कोई खास सुधार नहीं है. ग्राहकों का तर्क है कि पैसे मिलने पर पहले चावल, दाल, रोटी-सब्जी का प्रबंध किया जाए. नोट की समस्या से जब पूरी तरह निजात मिल जाए, तब अन्य बाजारों की तरफ रुख किया जाए. व्यापारी भी कह रहे हैं कि दो-चार दिनों में जब हालात और सुधरेंगे, तब जाकर थोड़ी राहत मिलने के आसार हैं.किराना दुकानों में बोहनी हो रही, पर ग्राहकों का हो रहा इंतजार.
किराना बाजार में थोड़ी राहत
किराना बाजार में पहले की अपेक्षा थोड़ी राहत है. 100 व 2000 की नोट पा चुके ग्राहक गोला बाजार व अन्य मंडियों में आवश्यकतानुसार खरीदारी कर रहे हैं. क्योंकि, उनका जेब पहले जैसा खर्च करने की अनुमति नहीं दे रहा. गोलाबाजार के व्यापारी पप्पू साह कहते हैं कि बाजार में खरीदार तो आ रहे हैं, लेकिन महीने की खरीदारी में थोड़ी कटौती अवश्य है.
गाड़ी सर्विसिंग करानेवाले नदारद
कंपनियों के सर्विस सेंटर पर गाड़ी सर्विसिंग कराने वाले ग्राहक भी नदारद हैं. पहले जहां प्रतिदिन यह संख्या दो से तीन दर्जन के आसपास रहती थी, वह आज घटकर तीन से चार पर आ गई है. नोट बंदी के 12 दिन बाद भी हालत खस्ती है.
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