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मुझे जहर दे दें या फिर न्याय

छलका दर्द. कोर्ट में मोटर दुर्घटना की भुक्तभोगी विधवा महिला बोली सासाराम कार्यालय : मुझे मुआवजा कब मिलेगा साहेब? क्या मेरी मृत्यु से पहले मुझे न्याय मिल जायेगा? मुझे न्याय मिलने में और कितने वर्ष लगेंगे? ये शब्द विधवा प्रेमा कुंवर नामक अधेड़ महिला के थे. वह अपर जिला जज के न्यायालय में लंबित एमवी […]

छलका दर्द. कोर्ट में मोटर दुर्घटना की भुक्तभोगी विधवा महिला बोली

सासाराम कार्यालय : मुझे मुआवजा कब मिलेगा साहेब? क्या मेरी मृत्यु से पहले मुझे न्याय मिल जायेगा? मुझे न्याय मिलने में और कितने वर्ष लगेंगे? ये शब्द विधवा प्रेमा कुंवर नामक अधेड़ महिला के थे. वह अपर जिला जज के न्यायालय में लंबित एमवी क्लेम नंबर 63/1997 की खैरियत जानने अपने वकील के पास पहुंची थी.
वकील ने सहज लहजे में कहा कि हाकिम लोग आजकल केस का फाइलन नहीं छू रहे हैं. कोई ठीक नहीं कि और कितना समय लगेगा. यह सुन अपना आपा खो महिला ने कहा कि ‘या तो मुझे जहर दे दें या फिर न्याय दें.’ गौरतलब है कि उसके कंडक्टर पति शिवसागर थाना क्षेत्र के कुम्हउं निवासी गिरिजा सिंह की 20 वर्ष पहले सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी थी. सिविल कोर्ट में मुआवजे का केस चल रहा है. पिछले 20 वर्ष से विधवा प्रेमा कुंवर मुआवजे के लिए कोर्ट का चक्कर लगा रही है.
सुप्रीम कोर्ट का भी आया निर्देश : न्यायिक सूत्रों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले में क्लेम के मामलों में फर्जीवाड़ा रोकने के लिए दाखिल होने वाले आवेदनों के साथ एक्सीडेंट इनफॉर्मेशन रिपोर्ट की आवश्यकता जतायी गयी है, जिसका अनुसरण किया जा रहा है. हालांकि, एसपी से साथ होने वाली बैठकों में पुलिस को उक्त रिपोर्ट तत्काल न्यायालय में दाखिल करने की बात कही जाती है.
20 साल से पति की मौत के मुआवजे के लिए कोर्ट का चक्कर लगा रही महिला, वकील के समक्ष बिलखी
15 वर्षों से अपंग बेटे के साथ दौर रहीं रेनू
सासाराम सिविल कोर्ट में यह दास्तां सिर्फ प्रेमा कुंवर का ही नहीं है. सड़क दुर्घटनाओं में अपना सबकुछ गवाएं अनेक भुक्तभोगी यहां दौर लगा रहे है. भेड़ीया (डेहरी) निवासी रेनू देवी, जिसका नौ वर्षीय बेटा 2002 में स्कूल बस से हुई दुर्घटना में स्थायी रूप से अपंग हो गया है. वह न तो चल सकता है और न ही बोल पाता है. 15 वर्ष से लंबित उसके मुआवजे का केस एमवी क्लेम 80/2002 अंतिम मुकाम पर पहुंच कर पिछले पांच साल से फाइनल बहस पर चल रहा है.
इनके वकील की माने तो इसमें लिखित बहस तक दे दिया गया है, पर हाकीम लोग सुनने को तैयार नहीं है. पता नहीं यहां क्या हो गया है? रेनू कहती है, दो महिना पहले हमने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर अपनी वेदना से अवगत कराया था, पर आज तक उस पर कोई पहल नहीं हुई.
कोर्ट का ध्यान नहीं
यहां की व्यवस्था का हाल मत पूछिए. मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों के तहत आवेदन प्राप्ति के 30 दिनों के अंदर भुक्तभोगियों को अंतरिम राशि का भुगतान सुनिश्चित करा देना है. इसी के लिए जिला जज या अपर जिला जजों को मुआवजा के मुकदमों के लिए न्यायाधिकरण का स्वरूप दिया गया है, पर वर्षों से ऐसे आवेदन लंबित है. हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद न्यायालय इन मामलों को इग्नोर कर देता है.
अरुण कुमार, वकील
कोर्ट का ध्यान नहीं
यहां की व्यवस्था का हाल मत पूछिए. मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों के तहत आवेदन प्राप्ति के 30 दिनों के अंदर भुक्तभोगियों को अंतरिम राशि का भुगतान सुनिश्चित करा देना है. इसी के लिए जिला जज या अपर जिला जजों को मुआवजा के मुकदमों के लिए न्यायाधिकरण का स्वरूप दिया गया है, पर वर्षों से ऐसे आवेदन लंबित है. हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद न्यायालय इन मामलों को इग्नोर कर देता है.
अरुण कुमार, वकील
रिपोर्ट में ढूंढ़ी जाती हैं खामियां
जिला जज ने स्टैंडिंग आर्डर निकाल कर एमवी के तमाम वादों में प्रारूप 54 के तहत एक्सीडेंट इनफार्मेशन रिपोर्ट दाखिल करने की जवाबदेही भुक्तभोगियों पर डाल दिया है. जबकि कानून कहता है कि उक्त रिपोर्ट पुलिस को सीधे न्यायाधिकरण को देना है. नहीं आने की सूरत में न्यायालय को उसे मंगाने की जवाबदेही है. फिर भी वह समझ नहीं पा रहे हैं. भुक्तभोगी अगर रिपोर्ट के लिए थाना जाता है तो उससे पुलिस नजराना की मोटी रकम की चाहत रखती है. 20 वर्ष पुराने मामले में कहां से वह रिपोर्ट मिलेगा. कोई रिपोर्ट लाता भी है तो जज उसमें खामियां ढूंढ़ते रहते है.
श्रीमन नारायण, वकील

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