सूरत-ए-हाल . एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंची आलू की कीमत
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किसानों के अरमान पर फिरा पानी
सूरत-ए-हाल . एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंची आलू की कीमत इस वर्ष आलू की अच्छी पैदावार देख किसान हर्षित थे, पर बाजार में आलू की कीमत औंधे मुंह गिरी. कम कीमत ने आलू किसानों की कमर तोड़ दी है. ऐसी स्थिति में खेती में लगी किसानों की पूंजी डूब गयी है. किसान अब […]
इस वर्ष आलू की अच्छी पैदावार देख किसान हर्षित थे, पर बाजार में आलू की कीमत औंधे मुंह गिरी. कम कीमत ने आलू किसानों की कमर तोड़ दी है. ऐसी स्थिति में खेती में लगी किसानों की पूंजी डूब गयी है. किसान अब इस घाटे की भरपाई कैसे करेंगे यही सोच के परेशान हैं.
पूर्णिया : बीते एक दशक में सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं सीमांचल में आलू की खेती करने वाले किसान. खेतों में लगी आलू की फसल देख बेहतर उत्पादन की खुशियों के संग अच्छे दिन लौटने के किसानों के सपने स्याह हो गये हैं. बीते 10 साल में अब तक का सबसे कम दाम मंडियों में किसानों को आलू के मिल रहे हैं. मंडी में सफेद आलू थोक में 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है. लाल आलू 325 रुपये से 425 रुपये क्विंटल तक बिक रहा है. बावजूद इसके बाजार में खरीदार नदारद हैं. इन हालात में बेहतर खेती व उन्नत पैदावार करने के बावजूद किसानों की पूंजी डूब चुकी है और इसके साथ ही किसानों की आर्थिक कमर भी टूटी है.
900 रुपये से गिर कर 200 रुपये पहुंचा : नवंबर महीने के अंत में और दिसंबर माह के प्रारंभ में आलू की कीमत 800 से 900 रुपये प्रति क्विंटल था. हालांकि तब आलू की पहली फसल निकली थी. लेकिन महज 15 दिनों तक ही यह दाम मौजूद रहा. फिर दामों में गिरावट इस कदर आरंभ हुआ कि आज आलू की कीमत 200 से 300 रुपये क्विंटल पर आ पहुंचा है. दिसंबर महीने में आगरा और लखनऊ से आये आलू के कारण दामों में एकबारगी 500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज हुई, जो जनवरी तक जारी रहा. वहीं जनवरी में बंगाल में निकले आलू की फसल ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी और किसानों की सारी उम्मीद समाप्त हो गयी.
अब स्टोरेज से बंधी है उम्मीद : गुलाबबाग मंडी में बीते चार दिनों से आलू लेकर आये गेड़ाबाड़ी के आलू किसान रामवृक्ष, चंपानगर के गोकुलपुर और गढ़िया बलुआ के नरेश ने बताया कि किसान पूरी तरह टूट चुके हैं. उम्मीदों के टूटने से आर्थिक कमर टूट गयी है. किसान रमजान ने बताया कि थोक खरीदार नहीं है. ऐसे में खुदरा दुकानदारों को आलू बेच अगली फसल हेतु रुपये का जुगाड़ करना पड़ रहा है. अब महज कोल्ड स्टोरेज ही एक सहारा बचा है. किसान आलू कोल्ड स्टोरेज में रखने की तैयारी में जुटे हैं, इस उम्मीद में कि कहीं भविष्य में अच्छे दिन आ जाये.
एक दशक में सबसे नीचे बिका आलू
आलू की खेती और कारोबार से जुड़े लोगों के अनुसार बीते 10 साल में आलू ने किसानों को इतना नहीं रूलाया था, जितनी आंसू इस बार किसानों के आंखों में भरा है. आलू के कारोबार से जुड़े कारोबारियों के अनुसार बीते 10 वर्षों में आलू उपर 1200 रुपये से लेकर नीचे 600 रुपये तक बिका था. यह पहली बार है कि आलू बंगाल और बिहार के अलावा आलू उत्पादन की बड़ी मंडी आगरा, लखनऊ, पंजाब, दिल्ली, कानपुर सहित देश के अन्य हिस्सों में भी आलू के दाम लगभग एक समान हैं. यही वजह है कि बाजारों में न तो खरीदार है और लोडर, जिससे किसान बेहाल हैं.
बाहर जाने के सारे रास्ते हैं बंद
गुलाबबाग मंडी में तकरीबन 100 आलू खरीदार थे, जिसमें बंगाल के भी खरीदार शामिल थे. इन खरीदारों द्वारा मंडी से आलू की खरीदारी कर असम, भूटान व नेपाल भेजा जाना था. लेकिन इस बार मामला सीधा उलटा पड़ गया है. कारोबारी सुनील जायसवाल के मुताबिक इस बार बंगाल में बीते वर्ष की तुलना आलू का उत्पादन 40 फीसदी अधिक हुआ है. हरी सब्जियों का दाम भी कम है. यही वजह है कि बंगाल में आलू 200 रुपये है और वहीं से असम व भूटान आलू जा रहा है. यह स्थिति स्थानीय मंडी की रास्ते में बाधक बना हुआ है.
इस वर्ष 30 फीसदी अधिक हुई है उपज
आलू का उत्पादन इस बार बीते चार वर्षों की तुलना में करीब 30 फीसदी अधिक हुआ है. स्वाभाविक है कि बेहतर उत्पादन के बाद किसानों के चेहरे खिले थे, लेकिन मंडी में खरीदार के अभाव में किसानों को कौड़ी के दाम में आलू बेचना पड़ रहा है. बाजार में जो दाम किसानों को आलू का मिल रहा है, उससे खेती में लागत का निकलना भी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. कुल मिला कर खरीदार के अभाव में आलू किसानों की पूंजी डूब रही है.
प्रति एकड़ 15 हजार रुपये का हो रहा घाटा
फिलहाल मंडी में किसान जिस दाम में अपना आलू बेचने को विवश हैं, उससे उन्हें मजदूरी के अलावा कुछ प्राप्त होता नहीं दिख रहा है. आलू की खेती में प्रति एकड़ की लागत करीब 25 हजार बतायी जा रही है. वहीं उत्पादन करीब 30 क्विंटल प्रति एकड़ हुआ है. जो दाम आलू का बाजार में है, उसके अनुसार किसानों को प्रति एकड़ करीब 15 हजार रुपये का घाटा लागत के हिसाब से हो रहा है. इसके अलावा परिवहन, बोरा और मजदूरी अलग है. कुल मिला कर किसानों की हालत बद से बदतर हो गयी है.
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