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18 स्थानों पर सजा पूजा पंडाल, जुटने लगे श्रद्धालु

18 स्थानों पर सजा पूजा पंडाल, जुटने लगे श्रद्धालु बनमनखी. अनुमंडल क्षेत्र का वातावरण दुर्गापूजा को लेकर भक्ति पूर्ण माहौल से सराबोर हो गया है. अनुमंडल मुख्यालय के स्टेशन परिसर, राजहाट, हृदयनगर, ठाकुरबाड़ी सहित जीवछपुर, जानकीनगर थाना क्षेत्र के चोपड़ा बाजार, रूपौली उत्तर, रूपौली दक्षिण एवं मिरचाईबाड़ी तथा सरसी थाना क्षेत्र के सरसी, सिहुली, वालूटोल, […]

18 स्थानों पर सजा पूजा पंडाल, जुटने लगे श्रद्धालु बनमनखी. अनुमंडल क्षेत्र का वातावरण दुर्गापूजा को लेकर भक्ति पूर्ण माहौल से सराबोर हो गया है. अनुमंडल मुख्यालय के स्टेशन परिसर, राजहाट, हृदयनगर, ठाकुरबाड़ी सहित जीवछपुर, जानकीनगर थाना क्षेत्र के चोपड़ा बाजार, रूपौली उत्तर, रूपौली दक्षिण एवं मिरचाईबाड़ी तथा सरसी थाना क्षेत्र के सरसी, सिहुली, वालूटोल, जियनगंज, रघुनाथपुर एवं कचहरी बलुआ में दुर्गापूजा का भव्य आयोजन हो रहा है. कुल 18 स्थानों पर माता का पंडाल सजाया गया है. सोमवार को मंदिरों का पट खुलते ही पूजा-पाठ का दौर आरंभ हो गया. मौके पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखी गयी. वही सुरक्षा के मद्देनजर मेला समिति द्वारा व्यापक तैयारी की गयी है. इसके अलावा विधि व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस द्वारा सघन गश्ती प्रारंभ कर दी गयी है. दशहरा को लेकर मेला भी पूरी तरह सज कर तैयार है. मेले में मिठाई, नाश्ता, खिलौना, मिट्टी बरतन, फर्नीचर एवं कपड़े की दुकानें सजी हुई हैं. बनमनखी का मेला विशिष्ट दुर्गापूजा के मौके पर अनुमंडल मुख्यालय में विशिष्ट मेले का आयोजन किया जा रहा है. यहां यात्रा के दिन क्षेत्र के कई गांवों के संथाल जनजाति के लोग डुगडुगी बजाते और करतब दिखाते मां के मंदिर तक आते हैं. इसके बाद ये लोगों दुर्गा मां को प्रणाम कर मवेशी हाट के मैदान में कई समूहों में ढोल-डुगडुगी के साथ नाचते हुए करतब दिखाते हैं. इस समूह में महिला एवं पुरुषों की संख्या लगभग बराबर होती है. प्रथम पूजा से ही ढोलहा अनुमंडल क्षेत्र के कई गांवों में प्रथम पूजा के दिन से ही घर-घर ढोलक बजा कर मां की पूजा का संदेश दिया जा रहा है. ढोल बजाने वाला मखनाहा निवासी नेपाली राम पिता लालो राम ने बताया कि दुर्गापूजा में प्रतिदिन क्षेत्र में घर-घर जाकर ढोल बजाने की परंपरा उनके पूर्वजों द्वारा प्रारंभ की गयी थी, जिसका निर्वाह वह कर रहा है. उन्होंने कहा कि पूजा की समाप्ति के दिन जब उन घरों में घूमते हैं, जहां वह ढोल बजाता है तो लोगों से अनाज मिलता है. इससे लगभग 40 किलो अनाज प्राप्त हो जाता है. भूमिहीन नेपाली राम का जीवन बसर ढोल बजाने और मजदूरी से होता है और इसी से वह इंटर में पढ़ रही पुत्री नीलम का खर्च वहन करता है. वही लोगों की अवधारणा है कि ढ़ोलहा से माता जागृत होती हैं और उन्हें माता की कृपा प्राप्त होती है. फोटो: 19 पूर्णिया 11-दुर्गा पूजा पंडाल 12-ढोल बजाते नेपाली राम

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