पूर्णिया : मधुबनी स्थित अति प्राचीन उदासीन बड़ी संतमत गुरुद्वारा का इतिहास करीब 550 वर्ष से भी अधिक पुराना है. कहते हैं कि गुरुद्वारा की स्थापना नागा ब्रह्म विलास दास ने की थी.
550 वर्ष पूर्व उन्होंने यहां समाधि ले ली. उनकी समाधि आज भी यहां मौजूद है. श्रद्धालु इसकी पूजा कर मंगल कामना करते हैं. गुरुद्वारे में िसख व हिंदू दोनों समाज के लोग माथा टेकते हैं.
गुरुद्वारे का इतिहास गुरु नानक देव तथा उनके ज्येष्ठ पुत्र चंद्र देव जी महाराज से भी जुड़ा हुआ है. इसके अलावा यहां सैकड़ों वर्ष पुरानी अष्टधातु की मूर्तियां भी यहां मौजूद हैं.550 वर्ष पुराना है इतिहास :
कहते हैं कि शरीर त्याग करने उपरांत ही कोई समाधि लेता है, लेकिन करीब 550 वर्ष पूर्व नागो ब्रह्म विलास दास ने पहले अपनी समाधि बनायी तथा उसी में खुद को समाहित कर लिया.
यहां आज भी उनकी समाधि की लोग श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं. इसके अलावा करीब 200 वर्ष पुरानी महंत सत् शरण दास, 1942 में समाधि लिये महंत हरिदास तथा 1989 में समाधि लिये महंत पंचम दास की समाधि भी यहां उपलब्ध है, जिसकी पूजा की जाती है.
200 वर्ष पुरानी प्रतिमाएं भी मौजूद : यहां करीब 200 वर्ष से अधिक पुरानी भगवान राम, सीता, भरत, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाएं मौजूद हैं. सभी मूर्तियां अष्टधातु की बनी हुई हैं.
इसके अलावा एक 150 वर्ष पुरानी शंख तथा करीब 200 वर्ष से भी अधिक पुरानी महाशंख मौजूद है. महंत मदान कुमार दास ने बताया कि शंख को प्रतिदिन बजाया जाता है. जबकि महाशंख का नाद केवल विशेष आयोजनों के मौके पर होता है. उन्होंने बताया कि उनके कुल के पूर्वजों ने वर्षों से गुरुद्वारा को अपनी सेवा दी है.
गुरु नानक से भी जुड़ा है इतिहास : इस गुरुद्वारा का इतिहास गुरु नान देव से भी जुड़ा हुआ है. कहते हैं कि करीब 550 वर्ष पूर्व काढ़ा गोला से असम जाने के क्रम में गुरु नानक देव यहां करीब 04-05 दिनों के लिए ठहरे थे. वे पैदल यात्रा पर थे. गुरुद्वारा के भवन पर आज भी उनके हथेली के निशान मौजूद हैं.
श्रद्धालुओं का मानना है कि गुरु नानक देव की कृपा आज भी यहां आने वालों को प्राप्त होती है. इसके अलावा करीब 300 वर्ष पूर्व चंद्र देव जी महाराज भी यहां एक हफ्ते से अधिक समय के लिए ठहरे थे. वे मुंगेर से भागलपुर के रास्ते नेपाल जा रहे थे. गुरुद्वारा से जुड़े इतिहास के कारण श्रद्धालुओं का भी गुरुद्वारा से विशेष लगाव है.