पूर्णिया में फुटपाथी दुकानदारों के लिए घोषणाएं तो खूब हुई, पर स्थायी दुकान के आवेदन की दिशा में कारगर पहल नहीं हुई. शहर में फुटपाथी दुकानदारों की स्थिति काफी चिंताजनक है. सुबह होते ही इनकी दुनिया सज जाती है और शाम होते ही उजड़ जाती है. बढ़ावा देने की बात तो दूर, इनके भविष्य की चिंता भी किसी को नहीं है.
पूर्णिया: पूर्णिया में सिर्फ फुटपाथी दुकानदार व्यवसाय कर रहे हैं ऐसा नहीं है. सच तो यह है कि बढ़ती आबादी और बढ़ते व्यवसाय को लेकर बेरोजगारों में अर्थोपाजर्न की ललक में आगे आये हजारों लोगों को माकूल जगह ही नहीं मिल रही है. लाचार होकर ये लोग सड़कों के किनारे आ गये हैं. हर साल अतिक्रमण हटाने के नाम पर इनकी दुकानें तोड़ दी जाती है. हालांकि, इनके पुनर्वास के लिए कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. बरसात के दिनों इनकी जिंदगी काफी अभिशप्त रहती है.
बंदी के दिन रहता है चूल्हा बंद. अक्सर फुटपाथ दुकानदारों के घर का चूल्हा बंद हो जाता है, जब कभी किसी कारणवश पूर्णिया बंद होता है. किसी भी तरह से सड़कों पर विधि व्यवस्था की समस्या होती है, तो पहले इन्हीं लोगों का व्यवसाय प्रभावित होता है. चूंकि इनलोगों की हालत रोज कमाने और रोज खाने वाली होती है. इसलिए बंदी के दिन इनके चूल्हा भी बंद हो जाता है.
अतिक्रमण मुक्त का झमेला. पूर्णिया के फुटपाथी दुकानदार कई बार अतिक्रमण हटाओ अभियान ङोल चुके हैं. ये लोग काफी टूट भी चुके हैं. जब जब ये झमेला आता है तो इनकी परेशानी बढ़ जाती है.
नासूर बन गयी है जिंदगी. फुटपाथी दुकानदारों की जिंदगी नासूर बन गयी है. घर से लेकर दुकान तक तनाव ही तनाव ङोलना पड़ता है. अधिकांश दुकानदार महाजन से रुपये लेकर व्यवसाय करते हैं. बंधक के रूप में बीवी के जेवर तक गिरवी रखने की मजबूरी है. घर में इनके परिजन इनकी कमाई पर सवाल करते रहते हैं. गिरवी रखे जेवर छुड़ाने का झंझट अलग होता है.
न घर के न घाट के. दुकान चली तो ठीक है यदि पानी, कड़ी धूप और आंधी तूफान आया तो इनके ऊपर शामत आ जाती है. अतिक्रमण के कारण दुकान हटाया जाता है तो अलग परेशानी होती है. उस समय ये न घर के रहते हैं और न घाट के. फिर से दुकान बनाने में इन्हें काफी खर्च पड़ जाता है.
नहीं मिला मुकाम. हर इनसान की ख्वाहिश होती है छोटी ही सही मगर स्थायी दुनिया हो, जिसके सहारे आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत हो सके. पूर्णिया में फुटपाथी दुकानदारों के लिए इनसानियत की यह परिकल्पना दिवास्वपA बनकर रह गयी है. यहां के फुटपाथी दुकानदार पिछले 20 वर्षो से स्थायी दुकान की जुगत में हैं. इनकी मांगें आज तक अनसुनी होती रहीं. इन्हें मुकाम नहीं मिला. हालांकि ढाई साल पूर्व इनलोगों को कहा गया था कि जो जहां हैं उनके लिए वहीं केबिन बना दिया जायेगा. जिला प्रशासन का यह दावा भी निमरूल साबित हुआ.
अतिक्रमण का डंडा. फुटपाथी दुकानदारों के लिए रोजाना दुकान लगाना और रोजाना उजाड़ना नियति हो गयी है. इनके ऊपर अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत डंडा चलते रहता है. वर्ष 2009 में दो बार हाई कोर्ट के निर्देश पर डंडा चला. फुटपाथी दुकानदार सड़कों पर उतरे. भूख हड़ताल और आमरण अनशन हुआ. आश्वासनों की झड़ी लगा दी गयी. सभी दुकानदारों से आवेदन लिए गये. स्थायी दुकान दिये जाने का वादा बना कर अनशन वापस करवाया गया. फिर से बात वहीं आकर थम गयी.
25 हजार लोगों का जीवन यापन. शहर की 10 फीसदी से अधिक आबादी का जीवन यापन फुटपाथ व्यवसाय पर आधारित है. यहां की जनसंख्या कम से कम साढ़े तीन लाख के लगभग है और आठ हजार दुकानदारों के हिसाब से 40 हजार आबादी का सारा दारोमदार इसी व्यवसाय पर है. एक दिन भी दुकान बंद हो जाता है. दूसरे दिन बच्चों का स्कूल भी प्रभावित हो जाता है.
फुटपाथी दुकानदारों की संख्या. कम से कम आठ हजार लोग पूर्णिया के बस स्टैंड से लेकर लाइन बाजार और खुश्कीबाग से लेकर गुलाबबाग के जीरो माइल तक दुकान कर रहे हैं. पूर्णिया शहर में एन एच 31 के दोनों ओर कपड़े, जूते-चप्पल और चाय नाश्ता की दुकानें हैं. खुश्कीबाग में फल, सब्जी और कपड़े की.