बीते पांच माह में 62 लोग एचआइवी से पीड़ित
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कबाड़खाने जैसे कमरे में लड़ रहे एचआइवी से लड़ाई
बीते पांच माह में 62 लोग एचआइवी से पीड़ित एचआइवी पर अंकुश लगाने के लिए खुद विभाग का इलाज जरूरी पूर्णिया : सदर अस्पताल स्थित एड्स विभाग में कबाड़ के ढेर पर बैठ कर काउंसेलिंग से लेकर इलाज करने तक की बाध्यता कर्मी झेल रहे हैं. यही वजह है कि जिले में एचआइवी मरीजों की […]
एचआइवी पर अंकुश लगाने के लिए खुद विभाग का इलाज जरूरी
पूर्णिया : सदर अस्पताल स्थित एड्स विभाग में कबाड़ के ढेर पर बैठ कर काउंसेलिंग से लेकर इलाज करने तक की बाध्यता कर्मी झेल रहे हैं. यही वजह है कि जिले में एचआइवी मरीजों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. संसाधनों के अभाव के कारण एड्स विभाग इस पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रहा है. विभाग के आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि पांच माह में माह तक जिले में 62 लोगों को एचआइवी ने अपने गिरफ्त में ले लिया है. ऐसे में एचआइवी पर अंकुश लगाने से पूर्व विभाग को खुद इलाज की आवश्यकता है.
एड्स विभाग के लिए अस्पताल प्रबंधन द्वारा एक छोटा कमरा उपलब्ध कराया गया है, जिसमें जांच से लेकर काउंसेलिंग तक का काम होता है. कमरे में रखे कागजों एवं दस्तावेजों का बंडल किसी कबाड़खाने का एहसास करा जाता है. इस विभाग की तकनीकी बात यह है कि इस विभाग में सब काम अति गोपनीय तरीके से करने का प्रावधान है, लेकिन यहां सब जांच से लेकर काउंसेलिंग तक का काम सार्वजनिक रूप से किया जाता है. ऐसे में कई संभावित मरीज इस विभाग में लोक लाज के कारण प्रवेश करने से कतराते हैं. जो एचआइवी संक्रमितों की संख्या की वृद्धि के कारक भी माने जाते है.
अस्पताल प्रशासन इस विभाग की गंभीरता को कभी समझा ही नहीं. लिहाजा वर्षों से जैसे तैसे इस कबाड़खाने जैसे कमरे में इस विभाग का संचालन हो रहा है.
संक्रमितों की स्थिति
वर्ष संक्रमित
2018 62
2017 83
2016 135
कुल 280
यहां संसाधनों का अभाव है. जितना बेहतर संभव हो सकता था, उतना बेहतर हम काउंसेलिंग व जांच केंद्र दे रहे हैं.
डॉ एमएम वसीम,सिविल सर्जन,पूर्णिया
धक्का-मुक्की के बीच होती है जांच
सदर अस्पताल के एचआइवी विभाग में रोजाना दो सौ के आसपास पीपीटीसी एवं आइसीटीसी श्रेणी के लोग जांच हेतु पहुंचते हैं. इसमें सर्वाधिक मरीज पीपीटीसी की गर्भवती महिलाएं होती है, लेकिन छोटा कमरा होने के बीच हर हमेशा धक्का मुक्की की स्थिति बनी रहती है. कर्मियों का कहना है कि यहां कर्मियों का भी अभाव है. जिससे जांच करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. लिहाजा यहां इलाज के लिए आने वाली तमाम गर्भवती भीड़ देख कर बिना एचआइवी जांच कराये ही आगे का इलाज लेने को बाध्य है. विशेषज्ञों के अनुसार गर्भवती की यदि जांच नहीं हुई तो उसके बच्चे में एचआइवी संक्रमण का खतरा काफी हद तक बढ़ सकता है. शनिवार को भी काफी संख्या में गर्भवती एचआइवी जांच हेतु पहुंची थी.
एआरटी के लिए जाना पड़ता है कटिहार
इस इलाके में एड्स मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो रही है. मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर यहां इलाज के नाम पर कोई व्यवस्था नहीं है. पूर्व में एड्स मरीजों के इलाज के लिए यहां लिंक्ड एआरटी सेंटर की स्थापना की गयी थी. किंतु पिछले चार वर्षों से इस लिंक्ड एआरटी सेंटर को बंद कर दिया गया. यहां के मरीजों को एआरटी सेवा के लिए भागलपुर स्थित सेंटर रेफर किया जाने लगा. हाल के दिनों में कटिहार में एआरटी सेंटर की स्थापना की गयी है. यहां से मरीजों को कटिहार की दौड़ लगाना दाद में खाज साबित हो रहा है. यहां के मरीजों की इस वेदना को सुनने व समझने वाला कोई नहीं है.
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