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न गैरेज बना, न संयंत्र बन पाये
पूर्णिया : शहर को संवारने के लिए नगर निगम के जितने पैसे कूड़े के ढेर में समा गये, उतने में शहर की सूरत संवर जाती. मगर यह विडंबना ही है कि योजनाएं बनीं. पैसे पानी के तरह बहाये गये, लेकिन योजनाओं के शुरू करने में बरती गयी कोताही के कारण करोड़ों रुपये तो खर्च हो […]
पूर्णिया : शहर को संवारने के लिए नगर निगम के जितने पैसे कूड़े के ढेर में समा गये, उतने में शहर की सूरत संवर जाती. मगर यह विडंबना ही है कि योजनाएं बनीं. पैसे पानी के तरह बहाये गये, लेकिन योजनाओं के शुरू करने में बरती गयी कोताही के कारण करोड़ों रुपये तो खर्च हो गये, पर सुविधा नसीब नहीं हुई.
महज मैकेनिकल व्यवस्था के अभाव में करोड़ों के संयंत्र सड़ गल गये. यह दीगर बात है कि निगम में योजनाएं बनती हैं. क्रियान्वयन भी होता है, परंतु निगम के गैरेज में खड़ी बंद पड़ी गाड़ियों की मरम्मत को लेकर निगम कभी सीरियस नहीं हुआ. यही वजह है कि करोड़ों की संपत्ति मिट्टी में मिल गयी और इसका लाभ जनता को नहीं मिल पाया. यह स्थिति वर्षों पुरानी है और इस एवज में लिये गये फैसले भी. हालांकि एक वर्ष पूर्व निगम में सत्ता बदलने के बाद कई बदलाव हुए हैं. कार्यों में तेजी देखी जा रही है.
नगम विकास की तरफ बढ़ा है, लेकिन सवाल वहीं का वहीं खड़ा है कि बंद पड़ी गाड़ियां व संयंत्र कब सुधरेंगे और सड़कों पर दौड़ेंगे . इस पर किसी की नजर नहीं है. स्थिति यह रही कि जनता की गढी कमाई सुविधा के नाम पर जो पूर्व में खर्च किये गये, उसका लाभ जनता को नहीं मिल पाया. वर्ष 2006 में कचरा से जैविक खाद बनाने की महत्वपूर्ण योजना में 16.99 लाख रुपये की लागत से गर्वेज प्लांट बनाया गया था, लेकिन काम आरंभ नहीं हुआ.
वर्ष 2003 में 25 लाख रुपये की लागत से नाला क्लीनर की खरीद की गयी थी, जिसका एक-दो उपयोग के बाद कोई काम नहीं हुआ. 2013 में स्टैटिक टैंक साफ करने की मशीन 30 लाख में खरीदी गयी थी. महज छोटी सी तकनीकी खराबी के कारण यह उपयोगहीन बना हुआ है. वहीं 2014-15 में चलंत शौचालय स्वच्छता अभियान के तहत 25 लाख रुपये में खरीदा गया था, जो किसी काम नहीं आया.
ठंडे बस्ते में कचरे से खाद बनाने की योजना : वर्ष 2006 में कचरा निष्पादन और कचरे से खाद बनाने की योजना को लेकर 16 लाख 99 हजार रुपये की लागत से पूर्णिया सिटी में गर्वेज प्लांट का निर्माण कराया गया था.
इसमें तकरीबन 27 चैंबर वाले गर्वेज प्लांट के निर्माण के बाद वर्ष 2007 में कचरा से खाद बनाने वाली कंपनी शिवम जन स्वास्थ्य एवं सर्वांगीण विकास केंद्र पटना के साथ निगम का करार भी हुआ था. इस कार्य के लिए लाखों खर्च कर दर्जनों छोटी-बड़ी गाड़ियों की खरीद भी हुई थी. लेकिन इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. निगम की लापरवाही का आलम यह है कि यह जगह आज खंडहर में तब्दील है.
रखरखाव के अभाव में सड़ गया नाला क्लीनर : नाला सफाई के अभाव में हर रोज हायतौबा मचती है. सफाई के अभाव में कई नाला जाम है, जिससे बरसात में जलजमाव की समस्या उत्पन्न होती है.
प्रतिवर्ष मजदूरों में लाखों रुपये लालगंज ड्रेनेज की सफाई में खर्च होते हैं. लेकिन वर्ष 2003 में नगर परिषद द्वारा 25 लाख में खरीदा गया नाला क्लीनर मशीन महज एक-दो बार प्रयोग के बाद महज छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी की वजह से सड़ गया. किसी ने उसे दुरूस्त कराने की जरूरत नहीं समझी और आज वह महज कवाड़ बन कर रह गया है.
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