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सेवा भाव हाशिये पर, धन कमाना ही मकसद

नागेश्वर कर्ण पूर्णिया : धरती के भगवान के खेल भी निराले हैं. सेवा भावना हाशिये पर है और अधिक से अधिक धन का उपार्जन पेशा का उद्देश्य बना हुआ है. यह जानते हुए भी कि कफन में जेब नहीं होते हैं. अनाप-शनाप परामर्श फीस तो लेते ही हैं, ऑपरेशन के फीस का भी कोई दायरा […]

नागेश्वर कर्ण
पूर्णिया : धरती के भगवान के खेल भी निराले हैं. सेवा भावना हाशिये पर है और अधिक से अधिक धन का उपार्जन पेशा का उद्देश्य बना हुआ है. यह जानते हुए भी कि कफन में जेब नहीं होते हैं. अनाप-शनाप परामर्श फीस तो लेते ही हैं, ऑपरेशन के फीस का भी कोई दायरा नहीं है. इतने से भी जब जी नहीं भरा तो पैथोलॉजिकल जांच में भी कमीशनखोरी शुरू हो गयी. कमीशन भी इतना अधिक कि सुन कर होश उड़ जाये. यही वजह है कि स्वास्थ्य नगरी में मानकविहीन या सीधे शब्दों में कहें तो फर्जी पैथोलॉजी का कारोबार दशकों से दिन दुनी, रात चौगुनी दर से प्रगति कर रहा है.
बेशर्मी का आलम यह है कि अगर मरीजों ने डॉक्टर के कारिंदों द्वारा बताये गये जांच सेंटर में जांच नहीं कराया तो उस जांच रिपोर्ट को ही अमान्य करार दिया जाता है. गौरतलब है कि प्रमंडलीय मुख्यालय में प्रतिदिन 05 हजार से अधिक लोग इलाज के लिए यहां पहुंचते हैं. शहर में 500 की संख्या में पैथोलॉजी सेंटर, सैकड़ों अल्ट्रासाउंड और एक्सरे सेंटर, 1300 की संख्या में डॉक्टरों का क्लिनिक और सैकड़ों निजी नर्सिंग होम संचालित है. लेकिन इनमें से बहुत ही कम पैथोलॉजी, अल्ट्रासाउंड और नर्सिंग होम मानक के तहत संचालित है. खासकर पैथोलॉजी तो कुकुरमुत्ते की तरह फैले हुए हैं और यह चिकित्सक और बिचौलिये के रहमोकरम पर संचालित हो रहा है.
इन स्थानों पर संचालित हैं मानकविहीन पैथोलॉजी : दरअसल कम लागत में बड़ी आमदनी का जरिया पैथोलॉजी बना हुआ है. लिहाजा जब किसी को कोई रोजगार आरंभ करना होता है तो पैथोलॉजी सबसे आसान और फायदेमंद रोजगार नजर आता है.
लाइन बाजार में पोस्टमार्टम रोड में 22 की संख्या में मानकविहीन पैथोलॉजी है. छोटी मस्जिद रोड में 14 की संख्या में मानकविहीन पैथोलॉजी, बिहार टॉकिज रोड में 26 की संख्या में मानकविहीन पैथोलॉजी और सबसे अधिक मानकविहीन पैथोलॉजी की संख्या शिव मंदिर रोड में है. यहां करीब 100 से अधिक मानकविहीन पैथोलॉजी संचालित हो रहे हैं. इन सभी पैथोलॉजी में न तो बोर्ड ही लगा हुआ है और न ही कोई पहचान वाला नाम ही लिखा हुआ है.
50 से 70 फीसदी तक चिकित्सक लेते हैं कमीशन : यहां सब कुछ कमीशन पर आधारित है. डॉक्टर और पैथोलॉजी सेंटर के बीच कमीशन फिक्स है. सेंटर द्वारा डॉक्टर को पुरजी लिखने के एवज में 50 से 70 फीसदी तक कमीशन दिया जाता है.
इस प्रकार सेंटर बचे हुए 30 फीसदी राशि से ही अपना काम चलाता है. स्थापित पैथोलॉजी द्वारा 40 से 50 फीसदी तक कमीशन लिया जाता है, जबकि मानकविहीन पैथोलॉजी 50 से 70 फीसदी कमीशन देने में भी अपना लाभ ही देखते हैं. यह उनकी मजबूरी भी होती है, क्योंकि इस धंधे में चिकित्सक का कृपापात्र बना रहना मजबूरी होती है. अन्यथा इस पेशे में तीन बार तलाक कहने की जरूरत भी नहीं होती है. एक ही बार में पूरी कहानी खत्म हो जाती है. स्पष्ट है कि जब 70 फीसदी तक कमीशन की ही राशि होती है तो जांच का स्तर किस प्रकार का होता होगा, यह बखूबी समझा जा सकता है.
चिकित्सक बने हैं इंजन और बिचौलिये होते हैं ईंधन
मानकविहीन पैथोलॉजी का कारोबार पूरी तरह चिकित्सक और बिचौलिये की मदद से संचालित हो रहा है. इस काले धंधे में फर्जी पैथोलॉजी के इंजन होते हैं चिकित्सक, जबकि उसमें ईंधन की भूमिका बिचौलिये निभाते हैं.
बिचौलिये मरीजों को पहले डॉक्टर तक ले जाते हैं और फिर सेंटर तक पहुंचाते हैं. डॉक्टर छोटी सी भी तकलीफ में पैथोलॉजी जांच के लिए लिखते हैं. मरीज जैसे ही डॉक्टर के क्लिनिक से हाथ में पुरजी लिए बाहर निकलता है, पैथोलॉजी के बिचौलिये हाथ से पुरजी ले लेता है और मरीज को फर्जी पैथोलॉजी में ले जाकर जांच का सैंपल देने के लिए बाध्य करता है. खास बात यह है कि मरीज जितनी जल्दी चाहे उतनी जल्दी उसे रिपोर्ट भी उपलब्ध करा दिया जाता है. डॉक्टर और पैथोलॉजी संचालक के बीच सभी बातें पूर्व से ही तय रहती है. पैथोलॉजी जांच किसने किया, इससे डॉक्टर को कोई वास्ता नहीं होता है. इस तरह से डॉक्टर और सेंटर संचालक मिल कर लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं.
डॉक्टर की मर्जी के पैथोलॉजी में जांच कराना है जरूरी
ऐसा नहीं है कि शहर में मानक पर खड़ा उतरने वाले पैथोलॉजी उपलब्ध नहीं हैं.लेकिन हर चिकित्सक का अपना-अपना सेटिंग है. हर डॉक्टर के क्लिनिक के बरामदे पर जहां उनके कंपाउंडर बैठते हैं, वहां विभिन्न पैथोलॉजी की परची रखी हुई रहती है. जैसे ही मरीज डॉक्टर से परामर्श लेकर वापस निकलते हैं, वहां बैठा कंपाउंडर सबसे पहले पैथोलॉजी की परची डॉक्टर की परची के साथ टैग करते हुए संबंधित पैथोलॉजी का पता बता कर रवाना कर देते हैं. साथ ही यह भी हिदायत दी जाती है कि दूसरे जगह जांच नहीं कराना है. समस्या यह है कि अगर मरीज दूसरे जगह जांच करा लिया तो डॉक्टर उस जांच को सिरे से खारिज कर देते हैं. कारण यह नहीं कि वह जांच रिपोर्ट गलत है, कारण यह होता है कि जांच रिपोर्ट उस पैथोलॉजी की नहीं होती है, जिसमें डॉक्टर साहब अपने स्वार्थ के लिए जांच करवाना चाहते हैं. कई बार ऐसा देखा जाता है कि मरीज को दुबारा जांच के लिए बाध्य किया जाता है.

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