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नहीं छपीं किताबें, पुरानी किताबों से ही पढ़ रहे बच्चे

2016-17 में बच्चों की तुलना में भेजी गयी थीं कम किताबें पटना : राज्य के साढ़े 72 हजार प्रारंभिक सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले छात्र-छात्राओं को मिलनेवाली पाठ्य पुस्तकें अब तक नहीं छप सकी हैं. इससे बच्चों को नयी किताबें भेजने की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी है. बच्चों को अपने सीनियर छात्रों की पुरानी […]

2016-17 में बच्चों की तुलना में भेजी गयी थीं कम किताबें
पटना : राज्य के साढ़े 72 हजार प्रारंभिक सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले छात्र-छात्राओं को मिलनेवाली पाठ्य पुस्तकें अब तक नहीं छप सकी हैं. इससे बच्चों को नयी किताबें भेजने की प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी है.
बच्चों को अपने सीनियर छात्रों की पुरानी पाठ्य पुस्तकों से ही पढ़ाई करनी पड़ रही है. किताबें जाने में हो रही देरी के लिए शिक्षा विभाग व बिहार टेक्स्ट बुक निगम के पदाधिकारी कागज की कमी और छपाई पूरी नहीं होने को इसका कारण बता रहे हैं. सभी साढ़े 72 हजार प्रारंभिक स्कूलों में राज्य सरकार नि:शुल्क किताबें उपलब्ध कराती है. अप्रैल महीने से शुरू हुए सत्र का एक माह बीतनेवाला है.
सरकार ने इस साल बच्चों के मूल्यांकन का परिणाम देते समय ही उनसे पुरानी किताबें ले ली हैं. इन किताबों को बच्चों को दिया भी जा रहा है, लेकिन पिछले साल ही बच्चों की संख्या की तुलना में कम किताबें ही उपलब्ध हो पायी थीं, जिस वजह से सभी बच्चों को अब भी पुरानी किताबें नहीं मिल सकी हैं.
2016-17 में नामांकित 2.20 करोड़ बच्चों में से करीब 1.66 करोड़ बच्चों को ही किताबें मिल सकी थीं. भागलपुर में नामांकित दो लाख, अररिया में 2.83 लाख, जमुई में 2.25 लाख, कटिहार में 1.38 लाख, किशनगंज में करीब 1.75 लाख, लखीसराय में 1.25 लाख बच्चों को किताबें नहीं मिल सकी थीं. ऐसा सिर्फ इन जिलों में ही नहीं, बल्कि दूसरे जिलों का भी यही हाल था. नामांकित बच्चों की तुलना में कम किताबें ही बच्चों को उपलब्ध हो पायी थीं.
2016-17 में भेजी गयीं किताबें
जिला बच्चों की संख्या भेजी गयीं किताबें
भागलपुर 6.05 लाख 3.85 लाख
बांका 3.83 लाख तीन लाख
अररिया 6.83 लाख चार लाख
जमुई 4.25 लाख दो लाख
किशनगंज 2.97 लाख 1.20 लाख
कटिहार 4.42 लाख 3.04 लाख
लखीसराय 3.20 लाख 1.95 लाख
फटी-पुरानी किताबों से बच्चों का पढ़ना मुश्किल है. सरकार को नि:शुल्क किताबें देने के बजाय, दुकानों में ही किताबें उपलब्ध करा देनी चाहिए, ताकि बच्चों के अभिभावक खुद उसे खरीद सकें. सरकार चाहे, तो पाठ्य पुस्तकों की खरीद के लिए बच्चों को पोशाक की राशि के तर्ज पर राशि दे सकती है.
पूरण कुमार, अध्यक्ष, बिहार पंचायत नगर प्रारंभिक शिक्षक संघ

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