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खुलासा ! बिहार में 10 यूनिवर्सिटी, हर साल 2834 करोड़ खर्च, फिर भी प्रदर्शन अच्छा नहीं

निर्भय पटना : बिहार के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में प्रति छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए राज्य सरकार प्रति वर्ष 22,878 रुपये खर्च करती है, बावजूद इसके पटना आइआइटी को छोड़ कर बिहार का कोई भी संस्थान देश के टॉप 100 शिक्षण संस्थानों में नहीं आ सका है.बिहार में 10 विश्वविद्यालय समेत 250 से ज्यादा कॉलेज […]

निर्भय
पटना : बिहार के विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में प्रति छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए राज्य सरकार प्रति वर्ष 22,878 रुपये खर्च करती है, बावजूद इसके पटना आइआइटी को छोड़ कर बिहार का कोई भी संस्थान देश के टॉप 100 शिक्षण संस्थानों में नहीं आ सका है.बिहार में 10 विश्वविद्यालय समेत 250 से ज्यादा कॉलेज हैं, जहां सरकार शिक्षक-शिक्षकेतर कर्मियों के वेतन, पेंशन समेत विवि-कॉलेजों के रख-रखाव, जीर्णोद्धार के लिए हर साल 2834 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च करती है. इसमें वेतन मद में सभी विवि में 1766 करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं, जबकि 1068 करोड़ रुपये की राशि गैर वेतन व सहायता अनुदान में खर्च की जाती है. इन संस्थानों में वर्तमान में 12.39 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं. इस आधार पर एक छात्र को पढ़ाने के लिए सरकार 22 हजार से ज्यादा राशि खर्च करती है. बिहार के अन्य किसी संस्थान के मानकों पर खरे नहीं उतरने के कारण देश के उत्कृष्ट शिक्षण संस्थानों में ये शामिल नहीं हो सके हैं.
मात्र 13% है ग्रॉस इनरॉलमेंट रेशियो : बिहार का ग्रॉस इनरॉलमेंट रेशियो (उच्च शिक्षा में नामांकन अनुपात) मात्र 13 फीसदी के करीब है. यानी बिहार में 12वीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए 100 में से मात्र 13 बच्चे ही आगे की पढ़ाई जारी रख रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 25 प्रतिशत का है. राज्य सरकार इसे बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है और 30 प्रतिशत तक लाना चाहती है.
इसके लिए स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए छात्र-छात्राओं को सरकार चार लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन भी दे रही है. दो अक्तूबर से शुरू हुई इस योजना में अब तक स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के लिए करीब 10,850 ऑनलाइन आवेदन आये हैं. करीब 1600 आवेदनों को जांच कर स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड देने के लिए सहमति दी गयी है. बैंकों ने अब तक करीब 750 को स्वीकृति दी है.
राज्य के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद खाली हैं. वर्तमान में 6079 शिक्षक ही गेस्ट फैकल्टी की सहायता से 12.39 लाख छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं. विवि-कॉलेजों में स्वीकृत 13,564 असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों में 7485 पद अभी भी खाली हैं. शिक्षकों की कमी की वजह से छात्र-छात्राओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना भी सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है. राज्य में 2003 से विवि शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई थी. 2014 में 3364 शिक्षकों की नियुक्ति की शुरुआत की गयी, लेकिन पिछले ढाई सालों में बिहार लोक सेवा आयोग के जरिये मात्र 565 पदों पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हो सकी है. मैथिली में 49, अंगरेजी में 166, दर्शनशास्त्र में 136 और अर्थशास्त्र में 214 असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किये गये हैं.
वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट प्रावधान
वेतन पर खर्च स्थापना खर्च कुल खर्च छात्र
पीएमसीएच, पटना 55.97 54.83 110.80 150
डीएमसीएच, दरभंगा 36.57 40.66 77.24 100
एनएमसीएच, पटना 40 17.36 57.36 100
मगध मेडिकल कॉलेज, गया 25 12.57 37.57 100
एसकेएमसी, मुजफ्फरपुर 21.40 15.17 36.57 100
जेएलएनएमसी ,भागलपुर 23.77 8.95 32.72 100
भीआइएचएस,पावापुरी 10.85 6.05 16.9 100
रा. मेडिकल कॉलेज, बेतिया 14.57 8.47 23.00 100
पटना डेंटल कॉलेज, पटना 2.30 3.18 5.49 40
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की स्थिति
विश्वविद्यालय स्वीकृत पद कार्यरत रिक्तियां
बीआरए बिहार विवि 1861 701 1160
जय प्रकाश विवि 1013 377 676
वीर कुंवर सिंह विवि 1015 419 596
बीएन मंडल विवि 1482 784 698
पटना विवि 808 316 492
मगध विवि 3093 1650 1443
एलएनएमयू 1966 776 1190
तिलका मांझी विवि 1479 676 803
केएसडीएस विवि 781 401 380
अरबी-फारसी विवि 56 01 55
कुल 13,564 6079 7,485
22,878 रुपये एक छात्र को पढ़ाने में खर्च करती है सरकार
12.39 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं इन संस्थानों में
6079 शिक्षकों को दिया जाता है वेतन
7485 पद खाली हैं असिस्टेंट प्रोफेसर के
565 पदों पर ही असिस्टेंट प्रोफेसर की हो सकी है नियुक्ति
96.81 करोड़ खर्च सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज पर
1300 करोड़ खर्च होता है मेडिकल कालेजों पर
इंजीनियरिंग कॉलेज
13 कॉलेजों में पढ़ रहे 7,740 विद्यार्थी
राज्य में 13 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं. इसमें 7,740 छात्र-छात्राएं पढ़ रहे हैं. इन कॉलेजों में शिक्षकों व कर्मचारियों के वेतन भुगतान, कार्यालय खर्च समेत कौशल विकास और तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन कार्यक्रम के लिए 96.81 करोड़ रुपये खर्च हो रहा है. इसमें वेतन-भत्ता मद में 25.28 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. कौशल विकास के लिए 10 करोड़ तो,तकनीकी शिक्षा गुण‌वत्ता उन्नयन कार्यक्रम के लिए 48.41 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं.
भारी खर्च के बाद भी बने हैं फिसड्डी
राज्य सरकार मेडिकल कॉलेजों पर सालाना करीब तेरह सौ करोड़ रुपये खर्च करती है. मगर पढाई के मामले में एक भी मेडिकल कालेज सेंटर आफ एक्सीलेंट नहीं है. सरकारी क्षेत्र में नौ मेडिकल कालेज अस्पताल संचालित किये जा रहे हैं. इसमें कोई भी संस्थान पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के मानक के अनुसार नहीं है. चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सूबे में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल, नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल,पटना, दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल,दरभंगा, श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल,मुजफ्फरपुर, राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल,बेतिया, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज,भागलपुर, अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज,गया, वर्धमान आयुर्विज्ञान संस्थान,पावापुरी और पटना डेंटल कॉलेज,पटना है. इन सभी मेडिकल कॉलेजों में कुल 890 सीटों पर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण दिया जाता है. विद्यार्थियों पर सालाना लगभग 397.65 करोड़ खर्च होता है.
शिक्षक हों छात्र, संस्थान व सोसायटी के प्रति जवाबदेह, तभी सुधरेगी स्थिति
बिहार के छात्र बहुत ही मेहनती होते हैं. यहां सरकार करोड़ों रुपये शिक्षा पर खर्च कर रही है. इसके बाद भी राज्य की शैक्षणिक संस्थानों की दशा में नहीं सुधरने तथा छात्रों के पलायन की स्थिति चिंताजनक है. सबसे पहले शिक्षकों को छात्रों के प्रति एकाउंटेबल होना पड़ेगा. स्कूल और कालेजों में शिक्षकों की खाली सीटें भरनी होगी. आधारभूत सुविधाएं मुहैया करानी होगी. बिहार में इन सब चीजों का अभाव है. यहां के छात्र पढना चाहते हैं.
उनमें आगे बढने की ललक है. लेकिन, इन सब चीजों के कारण वह मजबूर हैं. बिहार का छात्र बाहर जाकर बेहतर परिणााम लाता है. लेकिन, सरकार की लाख कोशिश के बावजूद स्थितियां सुधर नहीं रही. विवि में पढाई का स्ट्रक्चर सुधारने की जरूरत है. कड़ाई से इसमें बदलाव लाया जाना चाहिए. क्वालिटी आफ स्टूडेंट और क्वालिटी आफ एजुकेशन में कोई समझौता नहीं होना चाहिए. कई संस्स्थानों में शिक्षक अच्छे हैं लेकिन उपलब्ध नहीं हैं. शिक्षकों को मानक से अधिक कक्षाएं लेनी पड़ रही है. स्कूली शिक्षा में भी यह अभाव दिखता है. एक ही कैंपस में कई स्कूलें चल रही है. एक ही शिक्षक को कई कक्षाएं लेनी पड़ती है.
इससे क्वालिटी कैसे आ पायेगा. इसमें बदलाव के लिए अकेले सरकार कुछ नहीं कर पायेगी. सरकार के साथ जनता, समाज और सोसायटी को भी साथ आना होगा. हमलोगों के जमाने में स्कूली शिक्षक कों पढाई के समय कक्षा से बाहर दिख जाने पर लोग टोक देते थे. अरे, आप स्कूल नहीं गये क्या. पर, अब ऐसा नहीं होता. क्वालिटी एजुकेशन के लिए समाज को भी सजग होना पड़ेगा. आधे खुलते हैं काउंटर, रजिस्ट्रेशन के लिए रोजाना होती है नोक-झोंक

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