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चंपारण सत्याग्रह के सौ साल : नहीं होते बत्तख मियां, तो न होते गांधी और न सफल होता सत्याग्रह

पटना : बिहार सरकार इस बार चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन कर रही है. आज के एक शताब्दी पूर्व 10 अप्रैल, 1917 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चंपारण की धरती पर अपना कदम रखा था. 18 अप्रैल, 2017 को चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे हो जायेंगे. 15 […]

पटना : बिहार सरकार इस बार चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह का आयोजन कर रही है. आज के एक शताब्दी पूर्व 10 अप्रैल, 1917 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चंपारण की धरती पर अपना कदम रखा था. 18 अप्रैल, 2017 को चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे हो जायेंगे. 15 अप्रैल से बिहार सरकार चंपारण स्मृति यात्रा की शुरुआत करेगी. शताब्दी समारोह में 17 अप्रैल को देश के कुल 3500 स्वतंत्रता सेनानियों को सरकार सम्मानित भी करेगी. सत्याग्रह के सार्थक सफल प्रयोग के आइने में माटी के उन गुमनाम नायकों को भी देखने की जरूरत है, जिनके बिना चंपारण में गांधी जी के द्वारा नील के किसानों को लेकर छेड़ा गया सत्याग्रह सीधे तौर पर जन-सरोकार से जुड़ नहीं पाता. नील के किसानों को लेकर जितना बड़ा श्रेय देश में आंदोलन के तत्कालीन अगुआ नेताओं को जाता है, उससे कहीं अधिक उन गुमनाम नायकों को भी मिलता है, जिनके बिना चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में मिल का पत्थर साबित नहीं होता. उन्हीं गुमनाम नायकों में से एक थे बत्तख मियां.

चंपारण सत्याग्रह ने गांधी को गांधी बनाया

इस आंदोलन से जुड़े इतिहासकार और स्थानीय जानकार मानते हैं कि महात्मा गांधी का जन्म भले ही गुजरात के पोरबंदर में हुआ, लेकिन चंपारण सत्याग्रह से ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की राजनीति में महात्मा गांधी की असली पहचान बनी. नील के किसानों पर हो रहे अंगरेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंकने के लिए महात्मा गांधी जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी और अनुग्रह नारायण सिंह के साथ चंपारण पहुंचे, तो उस वक्त की अंगरेजी हुकूमत ने उन्हें मारने की एक ऐसी साजिश रची थी, जिसे सुनकर आज भी लोगों का दिल दहल उठता है. अंग्रेजी हुकूमत ने गांधी को खत्म करने का पूरा इंतजाम कर लिया था. वह तो शुक्र है उस गुमनाम नायक बत्तख मियां का, जिन्होंने महात्मा गांधी की जान बचा ली. अंग्रेजों ने बत्तख मियां के माध्यम से गांधी को विष मिले दूध देकर मारने की योजना बनायी थी. बत्तख मियां ने राष्ट्र और सत्याग्रह को सर्वोपरि रखते हुए गांधी को आगाह कर दिया कि इसमें जहर मिला हुआ है. बताया जाता है कि यह बात 1917 की है और इसके खुद गवाह देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद थे. बत्तख मियां को इस राष्ट्रवाद की कीमत भी चुकानी पड़ी और उन्हें कई तरीके से प्रताड़ित भी किया गया. आलम यह है कि आजादी के करीब सात दशक बाद आज भी बत्तख मियां की तीसरी पीढ़ी गांधी की जान बचाने की सजा भुगत रही है.

बत्तख मियां और चंपारण सत्याग्रह

वरिष्ठ गांधीवादी रजी अहमद कहते हैं कि चंपारण सत्याग्रह के पन्नों को पलटें, तो कई ऐसे गुमनाम नायक मिल जायेंगे, जिन्होंने गांधी जी की मदद की. जिनकी भूमिका सत्याग्रह को सफल बनाने में सबसे ज्यादा है. उन्होंने प्रभात खबर डॉट कॉम को बताया कि बहुत जल्द वैसे 100 गुमनाम नायकों का वह एक पैनल तैयार कर रहे हैं, जिसका विधिवत शुभारंभ 18 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार करेंगे. रजी अहमद कहते हैं कि बत्तख मियां ने अंग्रेज अधिकारी के प्रस्ताव को ठुकराते हुए जहर की बात गांधी जी को बता दी थी, वरना वे काल के गाल में समा गये होते. एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के वरिष्ठ प्रोफेसर अजय कुमार झा कहते हैं कि चंपारण सत्याग्रह में बत्तख मियां जैसे लोगों की अहम भूमिका रही है. हालांकि, बाद में सरकार और प्रशासन की ओर से उन्हें उतनी तवज्जो नहीं मिली. अजय कुमार कहते हैं कि आज भी बत्तख मियां का परिवार बदहाल है और यह बहुत बड़ी विडंबना है.

खेतिहर किसान थे बत्तख मियां

इतिहासकार अरशद कादरी की लिखी पुस्तक भारत स्वतंत्रता आंदोलन और चंपारण के स्वतंत्रता सेनानी पुस्तक में बत्तख मियां की विस्तार से चर्चा मिलती है. वहीं दूसरी ओर, आप अतीत और इतिहास के पन्नों को पलटेंगे, तो बत्तख मियां भले ही चंपारण के इस सत्याग्रह से गायब मिलें, लेकिन जब आप मोतिहारी स्टेशन पर उतरेंगे, तो आपको उनके नाम का एक बड़ा सा द्वार जरूर मिल जायेगा. बत्तख मियां की कहानी आज भी यहां के आम जनों की जुबानी सुनने को मिल जाती है. जानकार मानते हैं कि बत्तख मियां की चर्चा बिहार विधान परिषद कीकार्यवाही में और राष्ट्रपति भवन से जारी चिट्ठी में जरूर मिल जायेगी. बताया जाता है कि वह एक सामान्य से किसान थे. वे अंग्रेज अधिकारियों को पूर्वी चंपारण के सिवा से अजगरी गांव रोजाना दूध पहुंचाने जाते थे. इसी दौरान अंग्रेज अधिकारी इरविन ने बत्तख मियां को दूध में जहर मिलाकर गांधी को देने को कहा था. अंग्रेज अधिकारियों ने बत्तख मियां को उस समय करोड़ों की संपत्ति का लालच दिया था. साथ में उन्हें नहीं करने पर प्रताड़ित करने और यातना देने की बात कही गयी थी. बताया जाता है कि बत्तख मियां ने अंग्रेज अधिकारी के दबाव में दूध में जहर तो मिला दिया, लेकिन गांधी को दूध देने के बाद कह दिया कि इसमें जहर है.

अंग्रेजों ने किया प्रताड़ित

यह बात खुल जाने के बाद बत्तख मियां को अंग्रेजों ने बहुत सताया और उनकी संपत्ति को अवैध तरीके से नीलाम कर दिया. बत्तख मियां के घर को श्मशान की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा. तंग आकर बत्तख मियां का परिवार सिसवा अजगरी गांव छोड़कर पश्चिम चंपारण के अकवा परसौनी गांव में आकर बस गया. बाद में, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जब 1950 में मोतिहारी पहुंचे, तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर बत्तख मियां की सराहना की और लोगों को उनके बारे में बताया. उन्होंने वहां के जिलाधिकारी को आदेश दिया कि अंग्रेजों ने बत्तख मियां की सारी जमीन छीन ली थी. इसलिए उन्हें भी कम से कम 50 एकड़ गैर-मजरुआ जमीन दी जाये. बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद का वह आदेश पत्र के रूप में राष्ट्रपति भवन से जारी भी हुआ, लेकिन वह वक्त के थपेड़ों में कहीं खो गया.

आज भी अनदेखी का दंश झेल रहा बत्तख मियां का परिवार

बताया जाता है कि आज भी उस माटी के गुमनाम नायक का परिवार परेशान और बदहाल है. बत्तख मियां के पोते मो अल्लाउद्दीन अंसारी और मो असलम अंसारी मीडिया को गाहे-बगाहे यह बताते रहते हैं कि अब वे लोग निराश हो चले हैं. उनका कहना है कि सिर्फ और सिर्फ बत्तख मियां के नाम पर चंपारण में सियासत के दावं खेले जाते हैं. सबकुछ राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है. उनके नाम पर एक द्वार बना दिया गया. बत्तख मियां के पोतों की बेटे-बेटियां जवान हैं और वे सभी बेरोजगार हैं. बच्चों को पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं. गुजारा आज भी मुफलिसी में होता है. गांधी पर शोध करने वाले विंध्याचल कहते हैं कि जिस बत्तख मियां ने राष्ट्र के लिए अपनी एक-एक धूर जमीन लूट जाने दिया, आज उनका परिवार गरीबी और मजबूरी में जीवन गुजारने को मजबूर है.

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