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पटना नाव हादसा : इस मातम का दोषी कौन?

पटना : इसी महीने के पहले हफ्ते में हमारा पटना एक ऐसे भव्य उत्सव का गवाह बना था, जिसमें दूसरे राज्यों के भी लाखों लोग शरीक हुए थे. इंतजाम इतने शानदार, कि पंजाब और दिल्ली के मुख्यमंत्री ही नहीं, प्रधानमंत्री भी इसकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सके. ऐसे में यह सवाल बड़ा […]

पटना : इसी महीने के पहले हफ्ते में हमारा पटना एक ऐसे भव्य उत्सव का गवाह बना था, जिसमें दूसरे राज्यों के भी लाखों लोग शरीक हुए थे. इंतजाम इतने शानदार, कि पंजाब और दिल्ली के मुख्यमंत्री ही नहीं, प्रधानमंत्री भी इसकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सके. ऐसे में यह सवाल बड़ा है कि आखिर क्यों चंद दिन बाद ही प्रशासन के इंतजाम क्यों फेल हो गये? शनिवार को मकर संक्रांति पर गांधी घाट के सामने गंगा दियारे में पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित पतंग उत्सव में सिर्फ हजारों लोगों की मौजूदगी को प्रशासन क्यों नहीं संभाल सका?

दोनों आयोजनों के बीच का जो बड़ा अंतर स्पष्ट है, वह यह कि पहले आयोजन से संबंधित तैयारियों की निगरानी खुद मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य सचिव और डीजीपी कर रहे थे, जबकि पतंग उत्सव की तैयारियों को लेकर इस तरह का कोई दावा नहीं किया गया था. लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि क्या हर आयोजन की निगरानी मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के स्तर से संभव है? स्थानीय स्तर के आयोजनों में बेहतरीन इंतजाम स्थानीय प्रशासन की ओर से क्यों नहीं होने चाहिए?

दियारा जाने के लिए क्रूज की मुफ्त सवारी का पर्यटन विभाग का आमंत्रण पढ़ कर हजारों लोग गंगा के उस पार पहुंच गये. शाम होने पर लौटने के लिए लोगों का हुजूम नावों पर उमड़ पड़ा. नवंबर, 2012 में छठ के मौके पर हुए भयावह हादसे की यादें अभी बहुत से लोगों के जेहन में ताजी हैं. बावजूद इसके नावों पर क्षमता से तीन गुने तक लोग सवार हो गये. आखिर क्यों लोगों ने थोड़ा सब्र नहीं किया? क्यों प्रशासन को भी पिछले हादसे के सबक याद नहीं रहे और शाम के वक्त लोगों को सुरक्षित वापस लाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं किये गये थे?

जिन घरों के चिराग बुझ गये, मुआवजे से दोबारा नहीं जल पाएंगे. लेकिन, यदि आज के हादसे से सबक लिये जाएं, तो भविष्य में कई चिराग बुझने से बच सकते हैं.

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