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कहीं दवा नहीं मिल रही, तो कहीं खाने का खर्च चलाना भी हो रहा मुश्किल

अनुपम कुमार पटना : नोटबंदी से केवल मरीजों की परेशानी नहीं बढ़ी है, बल्कि एटेंडेंट भी परेशान हैं. गुरुवार को प्रभात खबर की टीम ने शहर के सरकारी अस्पतालों और निजी नर्सिंग होम्स में इलाज करा रहे मरीजों और उनके परिजनों से बात की. ज्यादातर लोग नोटबंदी से परेशान दिखे. हालांकि, सबकी परेशानियों में अंतर […]

अनुपम कुमार
पटना : नोटबंदी से केवल मरीजों की परेशानी नहीं बढ़ी है, बल्कि एटेंडेंट भी परेशान हैं. गुरुवार को प्रभात खबर की टीम ने शहर के सरकारी अस्पतालों और निजी नर्सिंग होम्स में इलाज करा रहे मरीजों और उनके परिजनों से बात की. ज्यादातर लोग नोटबंदी से परेशान दिखे.
हालांकि, सबकी परेशानियों में अंतर था. कोई इलाज या समय पर ऑपरेशन नहीं होने से परेशान था, तो किसी को दवा और ब्लड नहीं मिलने की परेशानी थी. ऐसे भी मामले सामने आये, जिनमें मरीजों का तो ठीक से इलाज हो रहा था, लेकिन एटेंडेंट को परेशानी हो रही थी.
इलाज हो रहा, खाने का खर्च चलाना मुश्किल : भाभी की तबीयत खराब होने की सूचना मिलने के बाद दिल्ली से समस्तीपुर आया. चार-पांच दिनों तक स्थानीय चिकित्सक के इलाज के बाद भी बीमारी की वजह मालूम नहीं हुई. आइजीआइएमएस के जेनरल मेडिसीन विभाग के बेड संख्या 36 पर भरती 50 वर्षीय महिला उषा देवी के देवर श्रवन कुमार ने नोटबंदी से इलाज में आ रही परेशानी को बताने के क्रम में कहा कि उसके बाद मुजफ्फरपुर में भी एक महीने से ज्यादा तक इलाज चला.
लेकिन, वहां भी डॉक्टर न बीमारी का पता लगा सके और न ही इलाज से फायदा हुआ. मरीज की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती गयी. भाभी ने खाना-पीना छोड़ दिया था, कमजोरी के कारण बोल भी नहीं पा रही थीं. तीन नवंबर को परिचितों की सलाह पर मैं उन्हें आइजीआइएमएस ले आया. कमजोरी को दूर करने के लिए पिछले दो सप्ताह में उन्हें आठ यूनिट ब्लड और छह यूनिट प्लेटलेट चढ़ाये गये हैं. लेकिन न तो अबतक कमजोरी दूर हुई है और न ही बीमारी का पता चल पाया है.
इस बीच आठ नवंबर को मोदी जी ने नोटबंदी की घोषणा कर दी, जिससे परेशानी और भी बढ़ गयी. 500 और 1000 का पुराना नोट अस्पताल द्वारा लिया जा रहा है. लेकिन, ढाबा, चाय-नाश्ते की दुकान और फल वालों ने नौ नवंबर से ही पुराना नोट लेना बंद कर दिया है. इसके कारण मुझे यहां रहने में बहुत कठिनाई हो रही है. खाने के खर्च भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. ऑटो रिक्शा वाले भी पुराने नोट नहीं ले रहे हैं. इससे ब्लड और प्लेटलेट के लिए आने-जाने में भी परेशानी हो रही है. पुराने नोटों को नये नोट से बदलने के लिए बैंकों में लंबी लाइनें लगती हैं. उसमें लग कर पैसा निकालने में तीन-चार घंटे का समय लगेगा. मरीज की स्थिति ऐसी नहीं है कि उसे इतने लंबे समय तक अकेला छोड़ा जा सके. कल चार यूनिट प्लेटलेट चढ़ाने के लिए कहा गया था, लेकिन वह भी नहीं चढ़ सका. बोन मैरो टेस्ट किया गया है. रिपोर्ट देखने के बाद पता चलेगा कि कब तक लिए यहां रुकना पड़ेगा.
नाला रोड के एक नर्सिंग होम में अपने भाई का इलाज करवा रहे इस्लामपुर, बंगाल के तपन दास को खुदरा और सौ के नोटों के लिए अपने घर आदमी भेजना पड़ा. उन्होंने गुरुवार को प्रभात खबर को बताया कि सड़क दुर्घटना में उनके छोटे भाई 32 वर्षीय किरण दास के दायें पैर की हड्डी बुरी तरह टूट गयी है. 13 नवंबर को उन्हें लेकर वे नाला रोड के एक नर्सिंग होम में आये.
लेकिन, नर्सिंग होम द्वारा 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट नहीं लेने के कारण अब तक ऑपरेशन नहीं हो सका है. ऑपरेशन के लिए खून की व्यवस्था में भी परेशानी हुई. उन्होंने कल इस्लामपुर आदमी भेज कर 100 के नोट और खुदरा मंगवाये. पैसा जमा किया, उसके बाद कल ऑपरेशन का डेट मिला है.

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