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पांच कहानियों से जानें पांच दिनों की परेशानियां
1000 और 500 रुपये के नोट बंद होने के छठे दिन सोमवार को बहुत थोड़ी राहत लोगों को मिली. हालांकि इसके पहले पांच दिनों तक लोगों को काफी परेशानी कासामना करना पड़ा. प्रभात खबर की टीम ने समाज के अलग-अलग क्लास के लोगों से उनकी परेशानियों पर बातचीत की और उनका हाल जाना. इसके साथ […]
1000 और 500 रुपये के नोट बंद होने के छठे दिन सोमवार को बहुत थोड़ी राहत लोगों को मिली. हालांकि इसके पहले पांच दिनों तक लोगों को काफी परेशानी कासामना करना पड़ा. प्रभात खबर की टीम ने समाज के अलग-अलग क्लास के लोगों से उनकी परेशानियों पर बातचीत की और उनका हाल जाना. इसके साथ हीसर्राफा और कपड़ा बाजार, अस्पताल, रेस्टोरेंट से लेकर स्ट्रीट फूड बाजार तक का जायजा लिया. इन्हीं सब को लेकर एक रिपोर्ट.
दानापुर
शादी के लिए रिश्तेदारों ने मिलकर जोड़ी रकम
पटना : नोटबंदी का असर दानापुर के संजय किशोर प्रसाद और संगीता वर्मा का परिवार सबसे अधिक झेल रहा है. पिछले पांच दिनों में उनकी फैमिली ने रोज परेशानियां झेलीं. दरअसल नोट बंदी के साथ उनके घर में शादी भी आ गयी. अब शादी के लिए जिस दिन उन्होंने अपनी जमा पूंजी निकाली, उसी शाम नोट बंदी की घोषणा प्रधानमंत्री ने कर दी. अब बड़ी मात्रा में रुपये का क्या किया जाये?
पहले दिन तो परिवार के सभी सदस्यों ने एटीएम की राह पकड़ी और कुछ कुछ चेंज अपनी ओर से ले आये. लेकिन असल परीक्षा तो दूसरे दिन होने वाली थी. सोचा कि जो पैसा निकाले हैं, उसे एक्सचेंज करा लें. अब एक्सचेंज कराने की परेशानी आ गयी तो फिर से परिवार के सभी सदस्यों ने जिम्मेवारी थामी. बैंक खुलने के पहले ही लाइन में लग गये. शादी में आमंत्रित सदस्य वहां पर काम आये और सभी ने अपनी ओर से मशक्कत कर यह काम पूरा किया लेकिन जो राशि एक्सचेंज हुई वह काफी कम थी. एक बार फिर से पारिवारिक जुगाड़ रणनीति अपनानी पड़ी.
चौथे दिन जो रिश्तेदार आने वाले थे, उन्होंने अपनी ओर से विवेक का इस्तेमाल किया और जितना संभव हो सकता था राशि लेकर आये. इधर चौथे दिन को ही सभी को पेमेंट भी करना था, कैटरर्स से लेकर बैंड बाजा वाले और फूल-माला अरेंजर से लेकर सब परेशान किये हुये थे. इनको कुछ कुछ पेमेंट किया गया और काम करने के लिए आग्रह किया गया. उन्हें भी पता था कि किस प्रकार परिवार परेशानियों से जूझ रहा है, सभी मान गये और काम जारी है.
पांचवें दिन यह परिवार थोड़ा रिलैक्स महसूस कर रहा है. अपने घर के ड्राइंग रूम में सभी महिलाएं जहां मेहंदी आदि लगा रही है, वहीं सारा परिवार अब अपनी योजनाओं को अंतिम रूप देने में लगे हैं. पूरा परिवार कह रहा है कि जो उद्देश्य है वह सही है लेकिन प्रधानमंत्री और उनकी टीम को यह ध्यान देना चाहिए था कि शादी के मौसम को ध्यान देखते हुए उन्हें दूसरा वक्त तय करना चाहिए था. इनके पारिवारिक सदस्य अधिवक्ता शरद कुमार, अरुण कुमार वर्मा और अभिजीत कहते हैं कि काला धन रोकने की दिशा में यह बेहद सही कदम हैं, लेकिन बैंकों की व्यवस्था और दुरुस्त होनी चाहिए थी.
हथुआ मार्केट
जायका-ए-पटना हुआ फीका, शाम स्वादहीन
पटना : नोटबंदी ने पटना का जायका फीका कर दिया है. रेस्टोरेंट से लेकर स्ट्रीट फूड बाजार में मंदी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है. जहां हर शाम जायका प्रेमियों की भीड़ उमड़ती थी, आज वहां सन्नाटा छाया है. खुल्ले की परेशानी ने लोगों के खाने-पीने की आदतों को भी प्रभावित किया है. बच्चों की जिद तो पूरी कर दी जा रही है, लेकिन मां-बाप खुद बहाना कर पैसे बचाने की जुगत में लगे दिख रहे हैं.
खुद के खाने के पड़ गये लाले:
शहर के स्वाद प्रेमियों का अड्डा कहा जानेवाला मौर्या लोक में सोमवार को सन्नाटा छाया रहा. शाम के वक्त इक्का-दुक्का लोग ही जायके का आनंद लेते दिखे. कतारबद्ध दुकानों की कुरसियां खाल रहीं. मंदी का असर ऐसा कि आसपास से गुजर रहे लोगों को दुकानदार झपट्टा मारने के अंदाज में बुलाते दिखते हैं. एक दुकान में 500 व हजार के नोट नहीं लेने की सूचना लगा दी गयी है. एक दुकानदार कहता है, ‘नोटबंदी का असर ऐसा है कि अब दिनभर का खर्च तक नहीं निकल पा रहा है. जहां पहले हर दिन हजारों कमाते थे, आज खुद के खाने के लाले पड़ गये है.’
खुल्ला देने की शर्त पर खिलाया:
परिसर में ठेले की संख्या भी अन्य दिनों के मुकाबले कम दिखी. लिट्टी-चोखा बेचने वाले एक दुकानदार ने बताया कि उनका व्यापार पांच दिनों से प्रभावित है. लोग 20 रुपये की लिट्टी खाते हैं, बदले में 100 रुपये देते हैं. ऐसे में खुल्ले की परेशानी बढ़ गयी है.
सर्राफा बाजार में 60 फीसदी तक की आयी गिरावट
पटना. पुराने नोट बंद होने के बाद सबसे अधिक असर सर्राफा कारोबार पर पड़ा है. लगन का मौसम होने के बावजूद बाजार में ग्राहक नदारद हैं. कई छोटे ज्वेलर्स ने अपनी दुकान पिछले कई दिनों से बंद कर रखी है. शहर के ब्रांडेड और प्रतिष्ठित ज्वेलरी शोरूम पर ग्राहकों का टोटा है. काराेबारियों की मानें तो 60 फीसदी से अधिक का गिरावट बता रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार लगन के मौसम में शहर में सात से आठ करोड़ का कारोबार होता है, लेकिन आज आभूषण दुकान में सन्नाटा पसरा है. जो ग्राहक आ भी रहे है वह अपने बजट से काफी कम का खरीदारी कर रहे हैं. बाजार में अभी जो खरीदारी हो रही है वह कार्ड या चेक के माध्यम से. इस कारण मध्यम वर्ग के खरीदार बाजार में गायब है. तनिष्क शाेरूम के प्रबंधक उमेश टेकरीवाल ने बताया कि पुराने
नोट अमान्य होने के बाद कारोबार में 15 से 20 फीसदी का गिरावट आया है. लेकिन यहां कार्ड, चेक तथा भुगतान के अन्य साधन होने से लोग खरीदारी कर रहे है. लोगों ने अपने बजट में कटौती कर आभूषण खरीद रहे हैं. टीबीजेड के प्रमुख अमन सराफ ने कहा कि देखा जाये तो नोट बंद का असर इतना है कि लगन के बावजूद ग्राहक न के बराबर है. लोगों के पास पैसे है लेकिन उसे स्वीकार करने को कोई तैयार नहीं है. इसका असर लंबे समय तक रहेगा.
इस बारे में पाटलिपुत्र सर्राफा संघ के महासचिव भरत महेता नेबताया कि नोट बंदी के बाद सबसे अधिक बुरा असर पड़ा है तो सर्राफा कारोबार पर पड़ा है. इसे संभलने में महीनों लगेगा.
तीन दिनों तक बिना इंसुलिनके रहना पड़ा
पटना : जेब में पैसा रहते हुए भी मुझे तीन दिन तक बिना इंसुलिन के जीवन गुजारना पड़ा. दुवा दुकानदारों से लाख आग्रह किया, पर किसी ने नहीं दिया. मैं पिछले दस वर्षों से डायबिटीज का रोगी हूं. ये दर्द भरी घटना है. हथुआ मार्केट स्थित दी बिग शॉप के मालिक मुकेश जैन का. उन्होंने बताया कि जब देश में पुराने नोट बदलने की घोषणा हुई उससे पहले मैं लुधियाना जाने के लिए ट्रेन में था. इसी बीच घर से पत्नी का फोन आया कि सरकार ने 500-1000 रुपये का नोट अमान्य कर दिया है. इसके बाद मैं बेचैन हो गया.
समझ में नहीं अाया कि अब मैं क्या करू, किसी तरह लुधियाना पहुंचा. वहां कारोबार का काम किसी तरह निबटाया. लेकिन, लौटने वक्त मेरी तबीयत थोड़ी गड़बड़ायी, तो इंसुलिन खरीदने के लिए दवा दुकान गया, तो दवा दुकानदार ने 500-1000 रुपये लेने से साफ इनकार कर दिया. बार-बार आग्रह किया कि मुझे लगभग हर दिन इंसुलिन की जरूरत होती है. मैं बाहर से आया हूं फिर भी दुकानदार ने दवा नहीं दिया. होटल का तो भुगतान कार्ड से कर दिया. इतना ही नहीं पैसा रहते हुए एक एक दिन ट्रेन में बिना खाना खाये गुजारना पड़ा, किसी ने मदद नहीं की. जीवन में पहली बार एहसास हुआ कि पैसे का क्या महत्व है. पैसे के आगे अक्सर मानवता मौन साध लेती है. लेकिन, ऐसा नहीं होना चाहिए. नोट बंद होने के बाद लगता है कि ऐसी परेशानी मेरे साथ नहीं देश के लाखों लोगों के साथ हुई होगी.
घर के लोग भूखे रह कर एटीएम की लाइन में लगे
पटना : मित्रमंडल कॉलोनी की शोभा रानी ने बताया कि नोटबंदी की घोषणा के बाद का वक्त बहुत अजीब था. जब पीएम ने घोषणा की तब सबसे पहले हम लोग एटीएम की तरफ भागे, क्याेंकि कुछ दिनाें की मोहलत सरकार की तरफ से दी गयी थी और उसी पैसे से काम भी चलाना था.
जब नोट बंदी की बात हुई, उसके तुरंत बाद ही किराना दुकानदारों ने सामान देना ही बंद कर दिया. जब सामान खरीदने गयी, तो दुकानदारों का कहना था कि पूरे पैसे का ही सामान देंगे. एक-दो दिन तो उसी के सहारे गुजरा, लेकिन जब पैसे एक्सचेंज कराने की बात आयी, तो बेटे को भेजा. जहां तीन-चार घंटे लाइन में लगने के बाद रुपये एक्सचेंज हुआ. उन पैसों में सबसे पहले एक सप्ताह की राशन का सामान लाया गया, ताकि कोई दिक्कत न हो. अभी घर और रिश्तेदारी में कई शादी होनी है. किसी के लिए गिफ्ट नहीं खरीद पायी हूं. गिफ्ट देने में भी कटौती करने की बात है क्याेंकि पैसे ही नहीं है.
बच्चाें को उनकी पसंद की चीजें नहीं दिला पा रही हूं. बच्चे इन तकलीफों को कैसे समझेंगे? अभी एक-दो दुकानदारों को तैयार की हूं ताकि राशन का सामान मिलता रहे. बेटे ने ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी से कुछ सामान का ऑर्डर कर दिया था. उसमें उसने कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन चुना, तो कंपनी ने कैश ऑन डिलिवरी का ऑप्शन रिजेक्ट कर दिया. बाद में उसे डेबिट कार्ड से पेमेंट करना पड़ा. पीएम की जो पहल है, वह आनेवाले वक्त के लिए तो बेहतर है, लेकिन वर्तमान में सभी को दिक्कत है. थोड़ा सिस्टमेटिक तरीके से अगर इसे लागू किया गया होता, तो अाराम मिलता. घर के लोगों को भूखे रह कर एटीएम की लाइन में लगना पड़ रहा है. कुछ सहूलियत और मिलती, तो आराम मिलता. अब आने वाले दिनों पर ही उम्मीद टिकी है.
पांच दिनों में 500 नहीं मिला, पहले हर दिन इससे ज्यादा कमाता था
पटना : पहले हर दिन पांच सौ से ज्यादा कमाते थे. लेकिन, पिछले पांच दिनों में सब मिला कर भी पांच सौ नहीं मिला. नोटबंदी से होनेवाली परेशानी को प्रभात खबर की टीम के साथ साझा करते हुए बाल कटाई का काम करनेवाले एजी कॉलोनी के धनंजय कुमार ने बताया कि मोदी जी की घोषणा के साथ ही स्थिति बिगड़ गयी. नौ तारीख को तो पूरे दिन बोहनी भी नहीं हुई. शाम में पहला ग्राहक आया और उसने भी पुराना 500 का नोट होने का हवाला देते हुए पैसा उधार रख लिया. दूसरे दिन दो तीन लोग आये. उसमें एक को छोड़ कर बाकी ने पैसा बाद में देने की बात कहीं. पिछले चार दिनों में ग्राहकों का आना बढ़ा है.
लेकिन, ज्यादातर परिचित ग्राहकों ने एटीएम और बैंकों की लंबी लाइन का हवाला देते हुए बाद में पैसा देने की बात कही हैं. इससे हजार रुपये से ज्यादा का काम करने के बावजूद जेब में पांच सौ रुपये भी नहीं है. घर में पत्नी और बच्चे हैं, खर्च कहां मानता है. दो-तीन सौ रुपये हर दिन का फुट कर खर्च है. 500 का एक पुराना नोट किराना दुकानदार के पास जमा किये. तीन दिनों तक उसी से काम चला. उसके बाद बच्चे की स्कूल फीस के लिए बचा कर रखे दो पांच सौ के नोट में से एक बनिये को लेने के लिए कहा. लेकिन, नोट बदलने में हो रहे परेशानी बताते हुए उसने मना कर दिया और उधार काम चलाने की बात कही.
संयोग से मेरे पास सौ के चार नोट थे, एक दिन उसी के सहारे गुजरा
अनिसाबाद के डॉक्टर आरपी किरण ने बताया कि नोटबंदी के बाद जो हालात बने, उसके बाद का माहौल बहुत बेचैनी वाला है. जान पहचान के लोगों से उधार लेना पड़ा. बंदी के अगले दिन गांधी मैदान स्थित एसबीआइ के मेन ब्रांच में करीब तीन घंटे लाइन में लगे रहने पर चार हजार रुपये का एक्सचेंज कराया. तब जाकर गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ी. जो पैसे निकाल कर लाया था, उसमें ऑटोवाले को दिया. जिससे उधार लिया था, उसे दिया क्याेंकि उनको भी देना जरूरी था. करीब 1000 रुपये बचे, तो खाने-पीने का सामान लाया.
एटीएम की हालत ऐसी है कि नोटबंदी के दिन से लेकर अभी तक सभी जगहों के एटीएम में लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं. जब बंदी हुई, तो संयोग से मेरे पास सौ के चार नोट थे. एक दिन, तो उसी के सहारे गुजरा. अभी हालात को सुधरने में भी टाइम लगने की बात सुनने में आ रही है. जब तक नॉर्मल नहीं होगा, तब तक ऐसे ही चलने की उम्मीद है. नोटबंदी का असर ऐसा हुआ है कि खर्च पर बहुत असर पड़ा है. जो एकदम जरूरत का सामान है, उसी को खरीद रहे हैं. घूमने पर पाबंदी है. कई परिचितों के यहां शादियां हैं. किसी के लिए गिफ्ट नहीं खरीद पा रहा हूं. सरकार का यह कदम तो बेहतर है, लेकिन थोड़ा वक्त मिलता तो बेहतर होता. नोटबंदी से अपर क्लास या लोअर क्लास को कम परेशानी है.
अस्पतालों में इलाज कराना ‘जंजाल’
केस-1 : रूबी देवी के पथरी का ऑपरेशन हुआ है. वे 17 दिन से आइजीआइएमएस के फिमेल वार्ड में भरती हैं, लेकिन इस दशा में भी वह अस्पताल परिसर स्थित एक बैंक में पैसे एक्सचेंज कराने के लिए लाइन में लगी हुई थीं. वे कहती हैं कि अब लाइन में लगे नहीं तो क्या करें? देखिए जेंट्स वाले सेक्शन में कितनी भीड़ है. पांच दिन से परेशान हैं. यहां एक्सरे करने वाला 120 रुपये के एवज में 500 रुपये भी नहीं ले रहा है. पैसा है, लेकिन काम नहीं हो रहा है. बैंक में लेडीज वाली लाइन छोटी थी, तो यहीं आ गयी.
केस-2 : मिताली रॉय को अपने पति सुनील कुमार रॉय का इलाज पीजीआइ, चंडीगढ़ में कराना है. नये वाले नोट है नहीं, तो डेली इन दिनों पैसे जमा कर रही है. उनका कहना है कि रोज बैंकों में लाइन में लग रहे हैं, ताकि इलाज हो सके. मूल रूप से अररिया के रहनेवाले रॉय परिवार अभी अनिसाबाद में रहते हैं.
केस-3 : कोइलवर की रहनेवाली नीलम देवी इलाज कराने के लिए पीएमसीएच में आयी हुई हैं, लेकिन यहां पर उनका इलाज पैसे नहीं रहने की वजह से नहीं हो रहा है. दवा भी नहीं मिल रही है. पति ने होशियारी दिखायी और पुराने नोटों को बदलने के लिए बैंक में पत्नी को लगा दिया. पैसे मिलने के बाद नीलम देवी मुस्कुरा रही थीं.
केस-4 : नवादा की रहनेवाली भावना अपने पति राजेंद्र निराला के साथ पीएमसीएच में आयी हुई थीं. डॉक्टर ने देखने के बाद उनको दवाइयां लिखी थीं, लेकिन खुदरा पैसे नहीं रहने के कारण उसे खरीद नहीं पा रही थीं. खुद लाइन में लगीं, तो बैंक से पैसे मिले.
होल्डिंग टैक्स : 24 तक होंगे पुराने नोट स्वीकार
पटना : नगर निगम रोजाना तीन से चार लाख होल्डिंग टैक्स वसूलने में ही हांफने लगती है. लेकिन, पुराने पांच सौ और हजार रुपये के नोट बंद होने के बाद होल्डिंग टैक्स की वसूली में अचानक वृद्धि दर्ज की गयी है. स्थिति यह है कि रविवार और सोमवार को 54 लाख रुपये की वसूली होल्डिंग टैक्स के रूप में हुई है.
इसमें सोमवार को 27.75 लाख रुपये कर संग्राहक के माध्यम से और नौ लाख रुपये नागरिक सुविधा केंद्र के माध्यम से वसूले गये हैं. अब नगर आयुक्त ने 24 नवंबर की मध्यरात्रि तक पुराने बड़े नोट लेने का निर्णय लिया है. नगर आयुक्त अभिषेक सिंह ने चारों अंचलों के कार्यपालक पदाधिकारी व राजस्व पदाधिकारी को निर्देश दिया हैं कि 24 नवंबर तक पुराने बड़े नोट होल्डिंग टैक्स के रूप में वसूल सकते है.
300 से 25 हुआ लर्निंग लाइसेंस का आवेदन
पटना. नोटबंदी का असर सरकारी दफ्तरों पर भी देखा जा रहा है. जिला परिवहन कार्यालय में लर्निंग लाइसेंस के लिए आवेदकों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है. पहले जहां रोजाना लगभग 300 आवेदन कार्यालय को प्राप्त होते थे, आज वह घटकर सिर्फ 25 से 30 रह गये हैं.
जिला परिवहन पदाधिकारी अजय कुमार ठाकुर बताते हैं कि बुधवार से आवेदकों की संख्या एकाएक घट गयी, जबकि त्योहारों के बाद इनकी संख्या अचानक बढ़ जाती थी. कार्यालय से भीड़ गायब हो गयी है. सोमवार को इक्का-दुक्का लोग नजर आये. जिला परिवहन कार्यालय के कर्मियों को काम का बोझ एकाएक कम हो गया है. रोज जहां हजारों की संख्या में भीड़ कार्यालय में उमड़ती थी, आज वहां 300 से 400 ही आवेदन पहुंच रहे हैं.
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