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भाजपा ने खोया कमजोर वर्ग का भला करने का मौका

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक द्र की भाजपा सरकार ने समाज के कमजोर वर्ग का भला करने का एक अवसर खो दिया. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने सिफारिश की है कि 27 प्रतिशत मंडल आरक्षण को तीन भागों में बांट दिया जाये. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस सिफारिश को मानने से फिलहाल मना कर दिया है. […]

सुरेंद्र किशोर

राजनीतिक िवश्लेषक

द्र की भाजपा सरकार ने समाज के कमजोर वर्ग का भला करने का एक अवसर खो दिया. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने सिफारिश की है कि 27 प्रतिशत मंडल आरक्षण को तीन भागों में बांट दिया जाये. नरेंद्र मोदी सरकार ने इस सिफारिश को मानने से फिलहाल मना कर दिया है. तर्क यह है कि पिछड़ों के हालात के बारे में ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए वर्गीकरण से समस्याएं पैदा होंगी. याद रहे कि बिहार सहित दस राज्यों के पिछड़ों की सूची का पहले ही वर्गीकरण हो चुका है. उसी आधार पर उन राज्यों में आरक्षण मिलता है.

दरअसल पिछड़ों की केंद्रीय सूची का अब तक वर्गीकरण नहीं हुआ है. यह काम केंद्र सरकार भी प्राथमिकता के आधार पर करने की घोषणा सकती थी. राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार इस बीच उसे आयोग की सिफारिश को मान लेने के अपने निर्णय की घोषणा कर देनी चाहिए थी. इससे भाजपा की यह छवि बनती कि वह समाज के कमजोर वर्ग का भी पूरा ध्यान रखती है. अभी भाजपा की यह छवि बनी है कि वह समाज के मजबूत लोगों का ही अधिक ध्यान रखती है. बिहार विधान सभा के गत चुनाव में राजग की हार का यह एक बड़ा कारण माना गया. याद रहे कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव से ठीक पहले आरक्षण की समीक्षा करने की जरूरत पर बल दे दिया था. पिछड़ा आयोग की ताजा सिफारिश को ठुकराने के बाद भाजपा यानी राजग सरकार के बारे में कमजोर पिछड़ों में अच्छी धारणा नहीं बनेगी.

आयोग के सदस्य अशोक कुमार सैनी के अनुसार मंडल आरक्षण के तहत केंद्रीय सेवाओं में पिछड़ों के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण का अधिक लाभ उन पिछड़ों को मिलता है, जो अपेक्षाकृत तरक्की कर चुके हैं.

याद रहे कि पिछड़ा आयोग ने 27 प्रतिशत को तीन हिस्सों में बांट देने की सिफारिश की है. आयोग चाहता है कि नौ प्रतिशत ‘पिछड़ों’ को मिले. इतना ही प्रतिशत ‘अधिक पिछड़ों’ के लिए आरक्षित हो जाये. 27 में से बाकी 9 प्रतिशत ‘अत्यंत पिछड़ों’ के लिए निर्धारित किया जाये. राजग के कुछ नेताओं की यह राय रही है कि मजबूत पिछड़ों के वोट राजग को आम तौर पर नहीं मिलते।इसलिए वर्गीकरण करने के बाद कम से कम कमजोर पिछड़े राजग खास कर भाजपा की ओर आकर्षित होंगे. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस सिफारिश पर केंद्र सरकार ने विचार किया, पर तय पाया गया कि वर्गीकरण से समस्याएं पैदा होंगी. सिफारिश को मानने से इनकार कर देने के बाद एक समाज वैज्ञानिक ने कहा कि भाजपा समाज के अत्यंत कमजोर वर्ग की पीड़ा शायद कभी समझ नहीं पायेगी.

नशाबंदी के पक्ष यूपी में कांग्रेसी अभियान : कांग्रेस ने महिला कांग्रेस की उत्तर प्रदेश शाखा को निदेश दिया है कि वह प्रदेश में घर-घर जाकर नशाबंदी के पक्ष में माहौल तैयार करे. संभवत: कांग्रेस उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए जो घोषणा पत्र तैयार करेगी, उसमें नशाबंदी का भी वायदा किया जायेगा. कांग्रेस बिहार में सत्ता में है. उसने यहां नशाबंदी का पूर्ण समर्थन किया है.

हाल तक केरल में सत्ता में थी. केरल की कांग्रेस सरकार ने शराबबंदी लागू की थी. यानी इस मामले में कांग्रेस का रिकॉर्ड अच्छा है, पर देश के नेताओं के एक बड़े हिस्से का इस मामले में रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. केरल से बिहार तक नेताओं के एक हिस्से ने परोक्ष रूप से नशाबंदी का विरोध ही किया है. दरअसल शराब के व्यापार में पैसे बहुत हैं. विभिन्न दलों के कई राजनीतिक नेता शराब के व्यापार में हैं।राजनीति में गांधी युग की शुचिता तेजी से समाप्त होती जा रही है. कई साल पहले एक राष्ट्रीय दल के बड़े नेता ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि राजनीतिक कार्यकर्ता यदि टेरी-खादी पहनते हैं और अपने हाथ में बीयर का ग्लास लेते हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं है.

सही हो या गलत, पर अनेक लोगों में यह आम धारणा है कि अनेक बड़े नेता नशा करते हैं. इस माहौल में यदि कांग्रेस पार्टी तथा कुछ अन्य दल नशाबंदी के पक्ष में लोगों में जागरूकता फैलाने के काम में लगते हैं तो उससे राजनीति-नेताओं की छवि बेहतर होगी.

आत्म सुरक्षा का प्रशिक्षण : लेबर पार्टी की एमपी जो कॉक्स की गत जून मेंं एक अतिवादी ने हत्या कर दी थी. उस घटना के बाद ब्रिटिश सांसदों को आत्म रक्षा की ट्रेनिंग दी जा रही है.

भारत और उसकी संसद भी अतिवादियों के निशाने पर रहे हैं. क्या इस देश के सांसद भी आत्म रक्षा की ट्रंेनिंग लेंगे ? ऐसी कोई उम्मीद तो फिलहाल नजर नहीं आती.सासंदों की ओर से ऐसी किसी मांग की भी कोई खबर नहीं है. हां, नेताओं के लिए सुरक्षा बलों की संख्या और अधिक करने और कुछ अन्य मामलों में सुरक्षा की श्रेणी बढ़ाने की मांग जरूर होती रहती है. जो देश इतिहास से नहीं सीखता, वह इतिहास को दुहराने को अभिशप्त रहता है. भारत सैकड़ों साल तक गुलाम रहा. गुलाम बनने का एक बड़ा कारण यह भी था कि हमारे पास आधुनिक सुरक्षा तंत्र नहीं था. बाबर के पास तोपें थीं और राणा सांगा के पास तलवारें थीं. मुगल शासकों ने ताज महल तथा बड़े-बड़े अन्य महल-किले तो बनवाये, पर समुद्र की तरफ से देश की सुरक्षा पर ध्यान नहीं रखा.

एक अंग्रेज इतिहासकार ने लिखा है कि भारतीय शासक आपसी फूट के कारण इस्ट इंडिया कंपनी की फौज से हार गये थे. हाल के महीनों में जेएनयू हैदराबाद, पश्चिम बंगाल और कर्नाटका में राष्ट्र विरोधी ताकतों ने भारत विरोधी नारे लगाये. कश्मीर में तो यह काम और भी आपत्तिजनक तरीकों से हो रहा है. ऐसे मामलों में भी इस देश के कुछ नेता प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उन देश द्रोहियों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं.

जब अटल जी ने नानाजी के लिए बनाया आमलेट : सन 1974 की बात है. जनसंघ के बड़े नेता नानाजी देशमुख का पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के राजेंद्र सर्जिकल ब्लॉक में इलाज चल रहा था. उनकी बांह टूट गयी थी. उन्होंने 4 नवंबर को पटना में जेपी की ओर बढ़ी सीआरपीएफ की लाठी को अपनी बांह पर रोक लिया था. अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें देखने अस्पताल आये थे. लाठी चार्ज में घायल अन्य कई आंदोलनकारी भी वहां इलाज करा रहे थे.

उन में से कुछ घायल लोग रोज नानाजी से गपशप करते थे. एक पत्रकार के रूप में मैं भी वहां जाता था. अटल जी ने कहा कि मैं खुद आमलेट बना कर आप लोेगों को खिलाऊंगा. वे वार्ड के किचेन में चले गये. वहां जितने व्यक्ति थे, सबके लिए उन्होंने बारी-बारी से आमलेट बनाया और खिलाया. आज यह कथा दुहराने की जरूरत क्यों पड़ी, क्योंकि किसी दल के दो वरिष्ठत्तम नेताओं के बीच आज ऐसा सद्भाव शायद ही कहीं नजर आता है. अटल जी फिल्म स्टार की तरह लोकप्रिय थे. आज भी कुछ नेता लोकप्रिय हैं, पर वह बात अब कहां? रालोसपा छोटी पार्टी है, पर उसके दो नेता भी एक साथ नहीं रह सकते.

और अंत में : नशाबंदी लागू होने के बाद बिहार में प्रतिपक्ष के कुछ नेता कुछ अधिक ही सावधान हो गये हैं. वे अपने ड्राइवर से अब कह रहे हैं कि जब भी अपनी कार से अलग हटो, गाड़ी को पूरी तरह बंद करना मत भूलो. पता नहीं, कब कोई राजनीतिक विरोधी हमारी कार में शराब की बोतल रख दे!

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