पटना: बिहार बोर्ड के मेधा घोटाले की परत दर परत उघर रही है. लगातार चल रही जांच के बीच अब इंटर परीक्षा को लेकर खरीदी गयी उत्तर पुस्तिका को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. मथुरा प्रकाशन नाम के जिस एजेंसी से इंटर परीक्षा के लिए उत्तर पुस्तिका की खरीद की गयी, उसकी जानकारी बोर्ड के किसी कर्मी को नहीं है. जबकि उत्तर पुस्तिका की खरीददारी को लेकर ओपन टेंडर होता है. इंटर परीक्षा के लिए पिछले साल भी अध्यक्ष ने इसी एजेंसी से एग्रीमेंट किया था.
कागज पर एजेंसी !
समिति के कर्मचारियों और समिति के पूर्व कई अध्यक्षों की मानें तो मथुरा प्रकाशन नाम से कोई प्रकाशन या एजेंसी नहीं है. पिछले दो साल से मथुरा प्रकाशन के नाम से ही उत्तर पुस्तिका की छपाई करवायी जा रही थी, लेकिन इसका कोई रिकार्ड न तो समिति कार्यालय में मौजूद है और न ही किसी कर्मचारी को ही मथुरा प्रकाशन के बारे में जानकारी है. बोर्ड घपले का खुलासा होने के बाद कर्मचारी अब उत्तर पुस्तिकाओं की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने वाला सुनील कौन
बिहार बोर्ड के साथ हुए एग्रीमेंट में मथुरा प्रकाशन एजेंसी की तरफ से किसी सुनील कुमार ने एग्रीमेंट पेपर पर हस्ताक्षर किये हैं. मगर एग्रीमेंट पेपर उनके पद का कोई जिक्र नहीं है. यह प्रकाशन एजेंसी पटना की हीं है, या किसी दूसरे प्रदेश की, इसके बारे में भी किसी को नहीं पता. 2015 में एग्रीमेंट पर बोर्ड सचिव श्रीनिवास चंद्र तिवारी ने जबकि वर्ष 2016 में बोर्ड सचिव हरिहर नाथ झा ने हस्ताक्षर किया.
चार करोड़ की हुई थी उत्तर पुस्तिका की छपाई
2016 में उत्तर पुस्तिका की संख्या लगभग 84 लाख था. इसकी छपाई में चार करोड़ के लगभग खर्च आया था. लेकिन इसकी गुणवत्ता की जांच नहीं किया गया. समिति सूत्रों की माने तो उत्तर पुस्तिका की छपाई लोकल ही किया गया. छपाई का काम जनवरी में शुरू हुआ और फरवरी में पूरा कर लिया गया. ज्ञात हो कि उत्तर पुस्तिका की छपाई दिसंबर से शुरू हो जाता है. परीक्षा फाॅर्म भराने के बाद परीक्षार्थी की संख्या तय हो जाती है, इसके बाद उत्तर पुस्तिका छपाई के लिए कंपनी को दे दिया जाता है.
उत्तर पुस्तिका की छपाई का टेंडर होता है ओपेन
इंटर या मैट्रिक के परीक्षा के लिए उत्तर पुस्तिका का टेंडर ओपेन होता है. इस टेंडर में गुणवत्ता और मिनिमम रेट का ख्याल रखा जाता है. इस संबंध में समिति के पूर्व अध्यक्ष राजमणि प्रसाद ने बताया कि प्रश्न पत्र की छपाई के लिए गुप्त टेंडर निकलता है. लेकिन उत्तर पुस्तिका के लिए अोपेन टेंडर होता है. इसमें जो भी प्रकाशन आता है, उससे कम दाम पर छपाई का शर्त रखा जाता है. श्री प्रसाद ने बताया कि हमने दिल्ली के एक प्रकाशन से उत्तर पुस्तिका की छपाई करवायी थी.
बिहार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष बोले
उत्तर पुस्तिका की खरीदारी हमने रांची के एक प्रकाशन से करवाया था. इसमें कागज की गुणवत्ता और कम दाम का पूरा ख्याल रखा जाता है. कागज की गुणवत्ता की जांच हम सहारनपुर स्थित भारत सरकार की संस्था से करवाते थे, तभी उत्तर पुस्तिका की छपाई होती थी.
एकेपी यादव, पूर्व अध्यक्ष, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति
पूछताछ में दस्तावेज देख बच्चा की बोलती बंद
पटना. बिहार बोर्ड के इंटर घोटाले के मुख्य आरोपित वीआर कॉलेज के प्राचार्य बच्चा राय को एसआइटी ने दो दिनों के रिमांड पर लेकर पहले दिन शुक्रवार को लंबी पूछताछ की. छापेमारी में बरामद दस्तावेजों व सामान के आधार पर उससे पूछताछ गयी की. रिमांड पर लेने के बाद एसआइटी की टीम और बच्चा राय आमने-सामने बैठे और फिर सवालों का दौर शुरू हुआ. एसआइटी की टीम ने इंटर टॉपर्स घोटाले के संबंध में पूछा, तो उसने पहले की तरह रटा-रटाया जवाब दिया कि वह निर्दोष है और उसे फंसाया जा रहा है.
इस पर टीम ने वीआर कॉलेज परिसर व अन्य ठिकानों से बरामद दस्तावेजों की जानकारी देने के साथ ही उसे दिखाया, तो उसकी बोलती बंद हो गयी. बच्चा के मुंह से जवाब तक नहीं निकला. इसके बाद एसआइटी टीम ने सवालों की बौछार कर दी. एक तरह से एसआइटी टीम ने उससे पूछताछ के बाद मान लिया कि बच्चा राय ही इंटर घोटाले का मुख्य आरोपित है. साथ ही वह बिहार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह के साथ मिल कर गोरखधंधा कर रहा था. गौरतलब है कि जिस दिन बच्चा राय को पकड़ा गया था, उस समय पुलिस के पास उसके खिलाफ साक्ष्य नहीं था, तब वह खुद को निर्दोष बता कर निकल गया था.
पूछे गये प्रमुख प्रश्न
इंटर टॉपर्स घोटाला कब से चल रहा है?
लालकेश्वर प्रसाद से उसकी सांठ-गांठ कैसे हुई?
कितने पैसों पर हर परीक्षा में डील होती थी?
एक छात्र पर कितने पैसे खर्च होते थे और उसे कितना बचता था?
किस-किस तरह के लोग उससे लाभान्वित हुए?
उत्तर पुस्तिका उसके कॉलेज व घर से कैसे पहुंची?
अन्य सेंटरों के लिए छपी उत्तर पुस्तिकाएं उसके पास कैसे पहुंची?
शिवहर, मुजफ्फरपुर, पटना, वैशाली के अन्य सेंटरों की उत्तर पुस्तिकाएं उसके पास कैसे आयीं?
बरामद जेवरात कहां से लाये और किनके हैं.
सादा एडमिट कार्ड रखने का क्या उद्देश्य था?
कुछ लिखी हुई उत्तर पुस्तिकाएं उसके पास कैसे पहुंचीं, उसे बिहार बोर्ड को परीक्षा के बाद क्यों नहीं भिजवाया गया?
टॉपर बनाने के खेल में उसके साथ और किन लोगों की भूमिका है?
मिनी बोर्ड चला रहा था बच्चा
पटना. इंटर मेधा घोटाले का मुख्य आरोपित बच्चा राय मिनी बिहार बोर्ड चला रहा था. उसने इसका मुख्यालय वैशाली में स्थित अपने विशुन राय कॉलेज को बना रखा था. छापेमारी के बाद उसके पास से बरामद कई जिलों के स्कूलों व कॉलेजों के प्रधानाध्यापक की मुहर, सादी उत्तर पुस्तिकाएं, सादे एडमिट कार्ड व अन्य बरामद दस्तावेज ने इस बात की पोल खोल कर रख दी है.
बच्चा राय बिहार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर सिंह की मिलीभगत से विशुन राय कॉलेज से ही छात्रों को इंटर का आवेदन भरवा रहा था और उन्हें एडमिट कार्ड तक इश्यू कर रहा था. यही नहीं, वह परीक्षा केंद्र तो मैनेज कर ही रहा था, जो पैसे दे रहे थे, उनके बच्चों को अच्छे नंबरों से पास भी करवा रहा था. विशुन राय कॉलेज के कार्यालय कक्ष में पूरी सेटिंग होती थी और छात्रों को कहीं और जाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी.
वह किसी भी जिले के छात्रों का आवेदन विशुन राय कॉलेज कार्यालय में ही भरवाया जाता था. पुलिस के अनुसार ऐसे कॉलेजों के नाम पर उसने काेड प्राप्त कर रखे थे, जिसका कोई नामोनिशान भी नहीं है. इसके बाद उन छात्रों को उन कॉलेजों के कोड पर ही आवेदन भरवा कर रजिस्ट्रेशन प्राप्त कर लेता था और फिर परीक्षा फॉर्म भी भरवा लिया जाता था. छात्रों के इन आवेदनों पर फर्जी मुहर व हस्ताक्षर का इस्तेमाल किया जाता था. इसके बाद बिहार बोर्ड की मिलीभगत से एडमिट कार्ड इश्यू करवा
लेता था.