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शिक्षा–परीक्षा में गिरावट को लेकर सर्वदलीय बैठक जरूरी

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक हार सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद परीक्षा में कदाचार रुक नहीं रहा है. कुछ कम जरूर हुआ है, पर बिहार या यूं कहें कि पूरे देश में ही शिक्षा-परीक्षा की जो हालत है, उसमें सर्वदलीय बैठक की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसी बैठकें न सिर्फ राज्य स्तर पर […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
हार सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद परीक्षा में कदाचार रुक नहीं रहा है. कुछ कम जरूर हुआ है, पर बिहार या यूं कहें कि पूरे देश में ही शिक्षा-परीक्षा की जो हालत है, उसमें सर्वदलीय बैठक की जरूरत महसूस की जा रही है. ऐसी बैठकें न सिर्फ राज्य स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी होनी चाहिए. शीघ्र ही कोई रास्ता निकलना चाहिए. पूरा देश मिल कर इस बुराई से लड़े. कुछ साल पहले बिहार के शिक्षा मंत्री ने कहा था कि परीक्षा में कदाचार एक सामाजिक बुराई है.
समाज ही उसे समाप्त कर सकता है. उनकी बात एक हद तक सही है, पर ऐसी बुराई में जब प्रशासनिक और राजनीतिक शह मिल जाती है तो मर्ज लाइलाज हो जाता है. प्रशासनिक और राजनीतिक शह का इलाज चाहें तो राजनीतिक दल कर सकते हैं. इसके लिए दलों के बीच आम सहमति जरूरी है. दलों में जो अच्छे तत्व हैं, वे बेहतर शिक्षा-परीक्षा के आग्रही हैं, पर उसे मूर्त रूप देने के लिए इस देश का भ्रष्टतंत्र तैयार नहीं है. करीब–करीब सभी राजनीतिक दल आज कहीं न कहीं सत्ता में हैं.
हर जगह शिक्षा-परीक्षा की कमोबेश दुर्दशा ही हो रही है. शिक्षा माफिया शैक्षणिक संस्थानों की शुचिता पर रोज–रोज हमला कर रहे हैं. यह किसी देश पर हमले से कम खतरनाक नहीं है. धन बटोरने के लोभ में शिक्षा माफिया अगली पीढ़ियों को अनपढ़ या अधपढ़ बना रहे हैं. सरकारें शालाओं को बेहतर संरचना व मानव संसाधन नहीं देकर उन माफियाओं के काम आसान कर रही हैं. अधिकतर शैक्षणिक संस्थाओं में अराजकता है.
वीसी तक लाचार हैं. कुछ सरकारें हिंसक छात्र आंदोलन के भय से शैक्षणिक संस्थाओं में बल प्रयोग नहीं कर रही हैं. क्या देश में यही होता रहेगा? देश का शिक्षा तंत्र ध्वस्त होता रहेगा और राजनीतिक दल टुकुर–टुकुर देखते रहेंगे? अपवादों को छोड़ दें तो कब तक मेडिकल और इंजीनियरिंग के छात्रगण परीक्षाओं में कदाचार कर-कर के पास होते रहेंगे?
क्या उनके हाथों मरीज और निर्माण संरचनाएं सुरक्षित रहेंगी ? अगली पीढ़ियों के लिए हमारे नेतागण कैसा देश छोड़कर जाना चाहते हैं? ठीक ही कहा गया है कि नेता अगला चुनाव देखता है, पर स्टेट्समैन अगली पीढ़ियों की चिंता करता है. क्या प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की आज की शिक्षा अगली पीढ़ियों की जरूरतें पूरी कर पायेंगी? कतई नहीं. ऐसे में सत्ता व विरोध में बैठे नेताओं को इतिहास माफ करेगा? मिल-जुल कर इस बुराई का उन्हें युद्ध स्तर पर मुकाबला करना चाहिए.
एक जानकारी यह भी : 2005 की इंटर परीक्षा में विशुन राय काॅलेज से विज्ञान संकाय में 477 परीक्षार्थी परीक्षा में शामिल हुए थे. गया काॅलेज में मूल्यांकन केंद्र था. वैशाली जिले के किरतपुर स्थित उस चर्चित कॉलेज के 473 परीक्षार्थियों ने तब प्रथम श्रेणी के अंक पाये थे. सिर्फ चार परीक्षार्थियों को द्वितीय श्रेणी मिली थी. राज्य के बीस टाॅपर छात्रों में अधिकतर इसी काॅलेज के थे. मूल्यांकन केंद्र मैनेज कर लिया गया था. रिजल्ट पर शक हुआ.
उत्तर पुस्तिकाओं का फिर से मूल्यांकन हुआ. रिजल्ट पूरी तरह बदल गया. दूसरी श्रेणी में 411 परीक्षार्थी पास हुए. प्रथम श्रेणी सिर्फ तीन परीक्षार्थियों को मिली.तीसरी श्रेणी में 54 परीक्षार्थी पास हुए. नौ परीक्षार्थी फेल हो गये. विशुन राय काॅलेज के ताजा प्रकरण से तो घोटाले के नये तरीके का पता चला. यानी सरकारी निगरानी के बावजूद कॉपियां ही बदल दी गयीं. लंबे समय से यह काॅलेज धंधे कर रहा है.
कोई शक्ति उसे रोक नहीं सकी या रोकना ही नहीं चाहती थी. एक बार फिर विशुन राय काॅलेज की दुनिया भर में चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया और टीवी के इस युग में लोगबाग खूब चटखारे ले रहे हैं. यह तो एक नमूना है. ऐसे उदाहरण और भी हैं. देखना है कि कदाचारमुक्त परीक्षा की सचमुच कोशिश में लगी बिहार सरकार इस चुनौती का अंतत: कैसे मुकाबला करती है.
इंटर परीक्षा पर विवाद पुराना : बिहार के सिसकते शिक्षा तंत्र पर प्रो नागेश्वर प्रसाद शर्मा ने शोधपूर्ण पुस्तक लिखी है.उसका एक प्रकरण मौजू है. प्रो.शर्मा लिखते हैं, इंटर काउंसिल की कार्य संस्कृति से राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का शिक्षा तंत्र बदनाम हुआ है. इसे शक की दृष्टि से देखा जा रहा है.
जून,1995 में राजस्थान के शिक्षा विभाग की एक टीम बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद की अंक तालिकाओं की जांच हेतु पटना आयी थी. टीम की एक रिपोर्ट का एक अंश इस प्रकार है–‘वहां पर परीक्षा व्यवस्था विश्वसनीय नहीं है. परीक्षा निजी कॉलेजों में संपन्न करवाई जाती है. सिवाय अंक तालिकाओं के किसी प्रकार के रिकॉर्ड का जैसे परीक्षा फार्म, उत्तर पुस्तिकाएं आदि का समुचित प्रकार से रख रखाव नहीं किया जाता है.
वहां पर पैसे लेकर फर्जर्ी अंक तालिकाएं जारी करना, परीक्षा में अन्य छात्रों को बिठा देना उत्तर पुस्तिकाओं को बदल देना, सामूहिक नकल करना, आदि आम बात है. अत: उक्त बोर्ड की विश्वसनीयता संदेहास्पद है.’इस विषय पर अपने पुस्तक लेखन का औचित्य बताते हुए बुजुर्ग प्रो. शर्मा ने अपनी पुस्तक में जमील मजहरी का निम्नलिखित शेर लिखा है. ‘हमने देखा है उजाले से अंधेरा होना.आंख रखकर हमें आता नहीं अंधा होना.’
भ्रष्टाचार के आरोप : आप फुटबॉल को जितना जोर से जमीन पर पटकेंगे, वह उतना ही ऊपर जायेगा.
उसी तरह भ्रष्टाचार के आरोप को जितना दबाने की कोशिश करोगे,वह उतना ही उछलेगा. ताजा इतिहास बताता है कि आम तौर पर नेताओं ने जब भी दबाने की कोशिश की,अगले चुनाव में उन्हें उसका खामियाजा भुगतना पड़ा. आज भी दबाने की कोशिश होती रहती है. जो इतिहास से नहीं सीखता है,वह इसे दुहराता है.
ऐसे नाम पड़ा मीसा भारती : देश के प्रमुख पत्रकार राम बहादुर राय के साथ मैं लालू प्रसाद से मिलने उनके पटना स्थित आवास पर गया था. तब राबड़ी देवी मुख्य मंत्री थीं. आपातकाल में लालू प्रसाद और राम बहादुर राय एक साथ जेल में थे. राय साहब विद्यार्थी परिषद में थे और छात्र संघर्ष संचालन समिति के सदस्य थे.
लालू जी ने राय साहब का राबड़ी देवी से परिचय कराया. उन्होंने कहा कि ‘इहे मीसा के नाम रखले रहस.’ इस पर राय साहब ने कहा कि ‘नहीं लालू जी, आपने मीसा रखा था, मैंने तो उसमें भारती जोड़ा था.’ याद रहे कि उन दिनों लालू प्रसाद सहित अधिकतर छात्र नेता मीसा के तहत जेलों में थे. उन्हीं दिनों मीसा भारती का जन्म हुआ था.
और अंत में : राम जेठमलानी ने गत साल कहा था कि अरुण जेटली, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘आपदा’ की तरह हैं.कई कारणों से भाजपा और खासकर जेटली से खार खाये जेठमलानी अब राज्यसभा में राजद का प्रतिनिधित्व करेंगे. जब वे भाजपा में थे, तो उनका आरोप था कि अरुण जेटली मनमोहन सरकार के प्रति नरम रुख अपनाते हैं. तीन साल पहले भाजपा से निष्कासित जेठमलानी राज्यसभा में अब कैसी भूमिका निभायेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. अनुमान लगाये जा सकते हैं. कभी जेटली और जेठमलानी आमने सामने होंगे, तो वह दृश्य देखने लायक होगा.दोनों नेता सूचनाओं और तर्कों के धनी हैं.

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