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न टावर का पता न पैसे का हिसाब

मोबाइल कंपनियों को निगम की खुली छूट पटना : नगर निगम के चारों अंचलों में किस मोबाइल कंपनी का कितना टावर लगा है, इसकी जानकारी निगम प्रशासन के पास नहीं है. इतना ही नहीं मोबाइल टावर के पंजीकरण व नवीनीकरण से कितनी राशि निगम को मिली, इसका भी कोई ब्योरा नहीं है. इसका खुलासा निगम […]

मोबाइल कंपनियों को निगम की खुली छूट

पटना : नगर निगम के चारों अंचलों में किस मोबाइल कंपनी का कितना टावर लगा है, इसकी जानकारी निगम प्रशासन के पास नहीं है. इतना ही नहीं मोबाइल टावर के पंजीकरण व नवीनीकरण से कितनी राशि निगम को मिली, इसका भी कोई ब्योरा नहीं है. इसका खुलासा निगम की ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है.

वित्तीय वर्ष 2011-12 के बाद की जानकारी नहीं : वित्तीय वर्ष 2011-12 में सिर्फ 486 मोबाइल टावर का निबंधन हुआ. 2012-13 व 2013-14 में कोई निबंधन व नवीनीकरण नहीं हुआ. जबकि अंचल कार्यालय ने सर्वे किया, तो पाया कि चारों अंचलों में 31 मार्च, 2013 तक 736 मोबाइल टावर लगे हुए हैं.

इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. निगम क्षेत्र में मोबाइल टावर लगाने की स्वीकृति देने का अधिकार नगर मुख्य अभियंता का है. नगर मुख्य अभियंता स्थल निरीक्षण की जिम्मेवारी सर्वेयर को देते हैं. सर्वेयर की रिपोर्ट पर स्वीकृति मिलती है.

राजस्व की क्षति : मोबाइल टावर नियमावली, 2012 के अनुसार मोबाइल टावर का निबंधन शुल्क 50 हजार रुपये, नवीनीकरण शुल्क 15 हजार रुपये और एक मोबाइल टावर में एंटिना लगा है, तो प्रत्येक एंटिना का अतिरिक्त 60 प्रतिशत लिया जाना है.

इतना ही नहीं, मोबाइल कंपनियां अप्रैल तक नवीनीकरण शुल्क नहीं देती हैं,तो डेढ़ प्रतिशत ब्याज भी लिया जाता है. यदि 2011-12 के आंकड़ों पर गौर करें, तो 486 मोबाइल टावरों पर 1.87 करोड़ रुपया बकाया है. अंचल के सर्वे रिपोर्ट को भी शामिल कर लिया जाये, तो आंकड़ा 736 पहुंच जाता है.

इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि संचार कंपनियों ने निगम प्रशासन के सहयोग से सरकार को करोड़ों के राजस्व की क्षति पहुंचायी है. एक तरफ निगम प्रशासन जहां जनहित योजनाओं को पैसे की कमी बता कर टालने की कोशिश करता है, तो दूसरी ओर करोड़ों रुपये बकाया वसूली के लिए कोई प्रयास नहीं दिख रहा है.

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