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साल भर में दोगुने से अधिक बढ़े एमडीआर टीबी के मरीज

स्टेट टीबी सेंटर के आंकड़ें से हुआ खुलासा विभाग में हड़कंप आनंद तिवारी पटना : मरीज की लापरवाही और डॉक्टरों की अनदेखी के कारण टीबी उन्मूलन की दिशा में काम कर रहे स्वास्थ्य विभाग को बड़ा झटका लगा है. पिछले साल के मुकाबले टीबी के एडवांस स्टेज (एमडीआर) के मरीजों की संख्या दोगुनी से अधिक […]

स्टेट टीबी सेंटर के आंकड़ें से हुआ खुलासा
विभाग में हड़कंप
आनंद तिवारी
पटना : मरीज की लापरवाही और डॉक्टरों की अनदेखी के कारण टीबी उन्मूलन की दिशा में काम कर रहे स्वास्थ्य विभाग को बड़ा झटका लगा है. पिछले साल के मुकाबले टीबी के एडवांस स्टेज (एमडीआर) के मरीजों की संख्या दोगुनी से अधिक बढ़ गयी है.
बिहार स्टेट टीबी सेंटर के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2015 में लगभग चार हजार मरीजों में एमडीआर की पुष्टि हुई है. जबकि, उसके पिछले साल यानी वर्ष 2014 में महज 1400 मरीजों में ही एमडीआर टीबी की पुष्टि हुई थी. इन आंकड़ों से स्वास्थ्य महकमा हैरान है, जबकि जिम्मेदार अधिकारी मौन साधे हुए हैं.
टीबी मरीज बीच में छोड़ देते हैं इलाज, कई डॉक्टर नहीं देते हैं सही खुराकएमडीआर टीबी के फैलाव का बड़ा कारण टीबी के मरीजों का दवा का कोर्स पूरा नहीं करना है. कई बार मरीज दवा बीच में ही छोड़ देते हैं. इसके अलावा मरीज कहीं भी जाकर बीमारियों का इलाज कराते हैं. यहां तक कि केमिस्ट से भी दवाइयां ले लेते हैं. यानी दवाइयों का बिना सोचे समझे इस्तेमाल होता है. ऐसे में मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है और उनके इलाज के लिए दवाइयों में विकल्प बहुत कम होते हैं.
डॉक्टर की अनदेखी
डॉक्टर भी मरीजों पर पूरा ध्यान नहीं देते हैं. पीएमसीएच जैसे बड़े अस्पताल में भी टीबी वार्ड एनजीओ के जरिये बहाल कुछ लड़कों के बदौलत चल रहा है. यहां डॉक्टर सुबह में कुछ देर के लिए तो बैठते हैं, लेकिन उनके जाने के बाद वार्ड को इन लड़कों के भरोसे छोड़ दिया जाता है. ये लड़के मरीजों की सही खुराक तय नहीं कर पाते हैं और टीबी की बीमारी एक दिन एमडीआर का रूप धारण कर लेती है.
प्राइवेट अस्पतालों में बढ़े एमडीआर के मरीज
स्वास्थ्य विभाग के स्टेट टीबी अधिकारियों की मानें तो बीच में दवा छोड़ने वाले मरीजों की संख्या कम नहीं हो रही है. सबसे ज्यादा मामले प्राइवेट अस्पताल से आ रहे हैं. उन अस्पतालों में मरीजों की अधिक निगरानी नहीं की जाती है. अस्पताल पैसे की लालज में मरीजों का इलाज तो करते हैं, लेकिन दवा की पूरी डोज नहीं देते हैं. इसी वजह से एमडीआर हो रहा है. इन मरीजों पर टीबी की समान्य दवा काम नहीं करती है.
क्या है एमडीआर टीबी
टीबी की दवा बीच में छोड़ देने वाले मरीजों को एमडीआर या बिगड़ी टीबी हो जाती है. यह सामान्य टीवी से कहीं अधिक खतरनाक है. अगर ठीक से इलाज न हो तो यह जानलेवा भी हो सकता है. सामान्य टीबी का इलाज छह महीने तक चलता है, लेकिन अगर उन दवाइयों से प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए तो फिर इलाज इलाज लंबा और ज्यादा महंगा होता है.
दो साल लंबे इस इलाज में हजारों रुपए खर्च हो सकते हैं. इसमें फेफेड़ाें के साथ ही हड्डी, ब्रेन और ग्रंथी कमजोर हो जाते हैं. डॉक्टरों की मानें तो दो सप्ताह से अधिक खांसी, शरीर में थकान, वजन कम होना, शाम को बुखार आना, रात में पसीना आना और कफ के साथ छाती में दर्द होता है तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.

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