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41 साल पुरानी दोस्ती में पड़ी दरार
उठा-पटक. इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन से अलग हुआ इंजीनियरिंग एसोसिएशन अगले साल होना है चुनाव, एक-दूसरे को पटखनी देने की बन रही है रणनीति आनंद तिवारी पटना : इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन और उसके सबसे बड़ा सहयोगी दल इंजीनियरिंग एसोसिएशन टूटने के कगार पर खड़ा हो गया है. इंजीनियरिंग एसोसिएशन के सूत्रों ने […]
उठा-पटक. इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन से अलग हुआ इंजीनियरिंग एसोसिएशन
अगले साल होना है चुनाव, एक-दूसरे को पटखनी देने की बन
रही है रणनीति
आनंद तिवारी
पटना : इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन और उसके सबसे बड़ा सहयोगी दल इंजीनियरिंग एसोसिएशन टूटने के कगार पर खड़ा हो गया है. इंजीनियरिंग एसोसिएशन के सूत्रों ने बताया कि दोनों का गंठबंधन टूटने की औपचारिक घोषणा जल्द ही की जा सकती है. दोनों यूनियनों के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण हालात अलगाव की हद तक पहुंच गयी है. यही वजह है कि दूसरा दल इस्ट सेंट्रल रेलवे इंजीनियर्स एसोसिएशन बनाया है, जिसका प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है. इधर दूसरी ओर तीन यूनियनों ने मिल कर महागंठबंधन बना लिया है, ताकि सत्ताधारी यूनियन के खिलाफ मैदान में उतरा जाये.
41 साल से थे साथ: इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन क्लास थ्री, फोर कर्मचारियों के साथ ही इंजीनियर क्लास के कर्मचारियों व अधिकारियों को मिला कर अपनी यूनियन खड़ी की है.
इस्टर्न रेलवे के समय से ही इनकी दोस्ती चल रही थी. इतना ही नहीं, 2002 में जब पूर्व मध्य रेलवे का गठन हुआ, उस दौरान भी इनका गंठबंधन था, जो दिसंबर, 2015 तक चला, लेकिन आपसी रंजिश के चलते इस यूनियन में दरार आ गयी और जनवरी, 2016 में नया इंजीनियरिंग एसोसिएशन के नाम से नयी यूनियन गठित हुई. 1976 से 2015 कुल 41 साल तक इनकी दोस्ती चलती रही.
क्यों हटी यूनियन, लगाये कई आरोप
पूमरे इंजीनियरिंग एसोसिएशन के सदस्याें की मानें ताे 1976 से लेकर अब तक तीन से चार बार इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन सत्ता में आयी. लेकिन, कुछ खास लेबर, कर्मचारी और अपना काम छोड़, इंजीनियर कर्मचारियों का एक भी काम नहीं किया गया.
इंजीनियरों का आरोप है कि पूमरे के महाप्रबंधक की ओर से आयोजित प्रेम ग्रुप की बैठक में न तो इंजीनियरों को शामिल किया जाता है और न ही मांगों को रेलवे बोर्ड तक भेजा जाता है. नतीजा आज तक इंजीनियरों को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा नहीं मिल पाया है. इसके अलावा कई ऐसे मांगें हैं, जो 41 साल गुजर जाने के बाद भी नहीं पूरा हो पाया है.
इस तरह बना महागंठबंधन
अगले साल होने वाले रेलवे यूनियन के चुनाव में सत्ताधारी यूनियन को मात देने के लिए महागंठबंधन भी तैयार हो गया है. रविवार को दानापुर मंडल कार्यालय में यूनियनों की बैठक आयोजित की गयी है. महागंठबंधन में पूर्व मध्य रेलवे मजदूर कांग्रेस यूनियन, मेंस कांग्रेस यूनियन और मजदूर यूनियन के तीनों गुट आपस में मिल गये हैं. मजदूर कांग्रेस के नेता जफर हसन, मेंस कांग्रेस के राममूरत सिंह यादव और मजदूर कांग्रेस के नेता बीके सिंह ने सहमति जता दी है.
क्या कहती है सत्ताधारी यूनियन
महागठबंधन बने या कोई भी बंधन यह सब जुमलेबाजी है. हमारी यूनियन हमेशा रेलवे कर्मचारियों के साथ रहती है. उनके परिवार की शिक्षा, स्वास्थ्य और सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहती है. यही वजह है कि नयी कॉलोनी, प्रमोशन सभी मिल रहा है. रही बात इंजीनियरिंग एसोसिएशन की, तो वे लोगों से हटना चाहते हैं, लेकिन हम आज भी उनके साथ हैं.
एसके पांडेय, महामंत्री, इस्ट सेंट्रल रेलवे कर्मचारी यूनियन.
इनका कहना है
41 साल से लेकर आज तक इंजीनियरों की मांग पूरी नहीं की जा रही है. सत्ताधारी यूनियन नेता हमारी बातों को न तो रेलवे के महाप्रबंधक एके मित्तल के पास पहुंचाते हैं और न ही रेलवे बोर्ड तक. नतीजा हम लोग इस्ट सेंट्रल रेलवे यूनियन से अलग हो गये हैं.
– अश्विनी कुमार, संयुक्त सचिव इंजीनियरिंग एसोसिएशन
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