पटना: बेऊर जेल की सुरक्षा भगवान भरोसे है. जेल के अंदर से माफिया सरगना अपने गिरोह का संचालन कर रहे हैं. मोबाइल का उपयोग कर अपराधी रंगदारी मांगते हैं. आका के आदेश पर उनके गुर्गे किसी की भी हत्या कर देते हैं. अपराधियों पर नजर रखने वाली अधिकांश सीसीटीवी पहले ही खराब हो चुकी है. ऐसे में आतंकी हमले की धमकी के बाद भी जेल की सुरक्षा बंदी रक्षकों के हवाले है.
यही है सच्चई : जेल प्रशासन का दावा है कि बेऊर जेल की सुरक्षा चाक-चौबंद है. 35 सीसीटीवी कैमरों से पूरे जेल की निगरानी होती है. इन कैमरों की मदद से जेल की हर छोटी-बड़ी गतिविधि पर निगाह रखी जाती है. मगर, सच्चई कुछ और ही है. जेल की सुरक्षा में लगे कैमरे पिछले तीन वर्षो से खराब है. इसके कारण जेल में होने वाली आपराधिक गतिविधियों पर किसी की नजर नहीं है. बंदियों से कौन मुलाकात करने आता है. इसका रिकार्ड जेल प्रशासन के पास केवल लिखित रूप से उपलब्ध है. सीसीटीवी नहीं होने से जेल के अंदर खाने-पीने की वस्तु के साथ मोबाइल फोन और नशीला पदार्थ आसानी से पहुंचाया जा सकता है.
आरटीआइ के तहत मिली जानकारी : जेल में सीसीटीवी खराब होने की जानकारी शाहजहांपुर के रहने वाले रवि कुमार मणि द्वारा मांगे गये आरटीआइ के आधार पर जेल अधीक्षक शिवेंद्र प्रियदर्शी ने दी. उन्होंने कहा कि 2011 से 2013 तक जेल में लगे सीसीटीवी खराब है, इसलिए रवि कुमार द्वारा मांगी गई कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकते हैं.
धड़ल्ले से होता मोबाइल का उपयोग : जेल परिसर में कर्मचारियों के साथ ही अधिकारियों के भी मोबाइल प्रयोग करने पर प्रतिबंध है. मगर बेऊर जेल प्रशासन की कथित पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए जेल के अंदर आसानी से मोबाइल पहुंच रहा है और जैमर न होने से उसका धड़ल्ले से उपयोग भी हो रहा है. पुलिस टीम जब भी छापेमारी करती है, चार-पांच से लेकर एक दर्जन मोबाइल फोन बरामद होता है. हाल में ही पुलिस ने छापेमारी में एक दर्जन मोबाइल फोन बरामद किया. इस साल जनवरी से लेकर सितंबर तक दो दर्जन से अधिक मोबाइल बरामद किया जा चुका है. पिछले तीन साल में बेऊर जेल के अंदर से सात सौ मोबाइल फोन बरामद किये गये थे.
इन मोबाइल फोन को आठ दिसंबर 2012 में नीलाम किया गया. ये मोबाइल फोन अनक्लेम्ड थे. 2002 में दिया गया था जैमर लगाने का आदेश : जेल से आपराधिक गतिविधियों के संचालन की खबर के बाद 2002 में सरकार ने जैमर लगाने का आदेश दिया था. लेकिन इतने साल जेल प्रशासन ने सरकार के आदेश का पालन नहीं किया.
जैमर लगाने में परेशानी : जेल सूत्रों की माने तो जैमर लगाने में तकनीकी परेशानी है. मोबाइल फोन के बदलते तरीके के कारण कुछ दिनों के बाद ही जैमर दिखावा बन कर रह जायेगा. किसी जेल में दो साल पहले लगने वाला जैमर अच्छी स्थिति में रहने के बाद कबाड़ की श्रेणी में गिना जायेगा. क्योंकि पहले मोबाइल 2जी था. उसके बाद 3जी आया और फिर 4जी मोबाइल सेवा शुरू हुई.
ऐसे में मोबाइल आधुनिक होते ही उसकी फ्रिक्वेंसी जैमर से बाहर हो जायेगी और वह सुचारू रूप से कार्य करेगा. इसके साथ ही जैमर लगने से जेल के समीप रहने वाले आमलोग के मोबाइल में परेशानी शुरू हो जायेगी. इससे स्थानीय लोगों को बात करने में परेशानी होगी.